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'महामना' ने दिया था BHU से भी बड़ा ये तोहफा, आज भी है गरीबों के लिए वरदान
मदन मोहन मालवीय (Madan Mohan Malviya), एक ऐसा नाम जो शिक्षा के क्षेत्र में और युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के साथ हमेशा याद किया जाएगा। जिन्होंने न केवल युवाओं को बेहतर शिक्षा देने का सपना देखा, बल्कि भारतीय परम्परा को बरकार रखने का भी लक्ष्य तय किया। वहीं जब बात गरीब और हरिजन की आई तो उनको भविष्य के लिए एक बड़ा तोहफा भी दिया।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय भारत की धरोहर को संजोकर रहने का केंद्र है। हर कोई जानता है कि बनारस में स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय शिक्षा का एक ऐसा केंद्र जो पूरी दुनिया में प्राचीन भारतीय परम्पराओं और संस्कृत शिक्षा को आधार बनाकर तकनीकी प्रगति की ओर युवाओं को अग्रसर करने का काम कर रहा है।
आज महामना मदन मोहन मालवीय की जयंती:
अहम बात ये हैं कि इस विश्वविद्यालय का सपना जिसने देखा, जिसने युवाओं को भारतीय संस्कृति से जोड़े रखने का काम किया, उसे कितने लोग जानते हैं..? दरअसल इसका श्रेय जाता है, भारत रत्न मदन मोहन मालवीय को।
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बुधवार यानी 25 दिसंबर, ये ख़ास दिन लोग क्रिसमस और अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के तौर पर याद रखते हैं लेकिन कम ही लोगों को पता है कि आज मदन मोहन मालवीय की भी जयंती हैं।
कौन है मदन मोहन मालवीय:
25 दिसंबर 1861 में बनारस में पंडित ब्रजनाथ के घर में जन्मे मालवीय संस्कृत के ज्ञाता थे। हिन्दू महासभा के शुरूआती और असरदार नेताओं मे उनका नाम रहा। ये उनकी लोकप्रियता का ही उदाहरण है कि जनमानस में उन्हें 'महामना' की उपाधि दे दी। उन्होंने बीएचयू का सपना देखा और गुलाम भारत यानी 1916 में बनारस में स्थापना के साथ ही पूरा किया।
86 सालों से मुफ्त शिक्षा दे रही पाठशाला
गौरतलब है कि मालवीय जी ने केवल देश के भविष्य को बीएचयू ही नहीं, बल्कि नींव मजबूत करने के लिए एक स्कूल की भी स्थापना की थी, जहां छात्रों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है। 86 सालों से पाठशाला ने मालवीय के सपने को बरकरार रखते हुए गरीब बच्चों को शिक्षा देने का काम कर रही है।
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हरिजन व सफाईकर्मियों के बच्चों के लिए की थी पाठशाला की स्थापना
इस स्कूल को शुरू करने के पीछे भी एक अलग कहानी है। उन दिनों सफाईकर्मियों के बच्चों का स्कूलों में दाखिला नहीं होता था। उन्होने इस बारे में विचार कर गरीबों, हरिजन और सफाईकर्मियों के बच्चों के लिए हरिजन पाठशाला की शुरुआत की, जिसका नाम साल 1996 में 'लाला लाजपत राय पाठशाला' पड़ा।