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भाजपा ने महाराष्ट्र में झोंकी पूरी ताकत

केशव मौर्या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के सह प्रभारी भी हैं। महाराष्ट्र में बसे 40 लाख से ज्यादा हिंदी भाषी, उत्तर-भारतीयों का वोट पाने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के जिलास्तरीय नेताओं तक को यहां जनसंपर्क अभियान में लगाया गया है।

SK Gautam
Published on: 31 Aug 2023 10:43 AM GMT
भाजपा ने महाराष्ट्र में झोंकी पूरी ताकत
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मुम्बई: भाजपा ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। तमाम बड़े नेताओं को राज्य में चुनाव प्रबंधन के लिए लगाया गया है। शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या लगातार महाराष्ट्र में डटे हुए हैं।

केशव मौर्या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के सह प्रभारी भी हैं। महाराष्ट्र में बसे 40 लाख से ज्यादा हिंदी भाषी, उत्तर-भारतीयों का वोट पाने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के जिलास्तरीय नेताओं तक को यहां जनसंपर्क अभियान में लगाया गया है।

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भाजपा के बड़े नेताओं में दो राष्ट्रीय महासचिवों, भूपेंद्र यादव और सरोज पांडेय ने एक महीने से भी अधिक समय से राज्य में डेरा डाल रखा है। भूपेंद्र यादव महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव प्रभारी हैं और सरोज पांडेय राज्य प्रभारी हैं। भूपेंद्र यादव को पार्टी आम तौर पर संकट वाले राज्यों में लगाती है। ऐसे में महाराष्ट्र में उनकी तैनाती की अहमियत समझी जा सकती है। केंद्रीय मंत्रियों में नितिन गडकरी, पीयूष गोयल और स्मृति ईरानी भी चुनाव में हैं।

दरअसल, महाराष्ट्र मेंं भाजपा को सीधे तौर पर कांग्रेस-राकांपा गठबंधन से मुकाबला करना है साथ ही अपने साथी शिवसेना को दबाए रखना है। भाजपा जानती है कि अगर शिवसेना पिछली बार से ज्यादा सीटें पा गई तो वह सरकार में अपनी हिस्सेदारी को लेकर मोलभाव पर उतर आएगी। इस स्थिति से बचने के लिए भाजपा का पूरा फोकस इस बात पर है कि किसी तरह वह अकेले पूर्ण बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाये।

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महाराष्ट्र का पिछला चुनाव

2014 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन टूटने पर सभी 288 विधानसभा सीटों पर अलग-अलग लडऩे पर भाजपा को 122 सीटें मिलीं थीं, वहीं शिवसेना को सिर्फ 63 हासिल हुईं थीं। कांग्रेस को ४२ व राकांपा को 41 सीटें मिलीं थीं। पूर्ण बहुमत से 20 सीटें कम होने के कारण तब भाजपा को शिवसेना के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी थी।

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2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन के कारण सिर्फ 150 सीटों पर खुद लड़ रही है। 14 सीटों पर उसके ही सिंबल पर अन्य सहयोगी दल लड़ रहे हैं। शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में भाजपा को लगता है कि इस बार कम सीटों पर चुनाव लडऩे के कारण अगर पिछली बार से कम सीटें आईं और शिवसेना की सीटें बढ़ीं तो भाजपा के लिए मुश्किलें होंगी।

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