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पकड़ी बापू की लाठी: कौन है ये छोटा सा बच्चा, बड़ा होकर बनाया अपना नाम

बापू के बारे में कौन नहीं जानता। अपने चमत्कारिक व्यक्तित्व के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगें। गांधी जी के संपर्क में रहने वाले अपने को बहुत धन्य और खुशनसीब समझते हैं, कि उनके ऊपर गांधी जी की छत्रछाया थी कभी।

Newstrack
Published on: 30 Sep 2020 7:30 PM GMT
पकड़ी बापू की लाठी: कौन है ये छोटा सा बच्चा, बड़ा होकर बनाया अपना नाम
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Mahatma Gandhi

रायपुर। बापू के बारे में कौन नहीं जानता। अपने चमत्कारिक व्यक्तित्व के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगें। गांधी जी के संपर्क में रहने वाले अपने को बहुत धन्य और खुशनसीब समझते हैं, कि उनके ऊपर गांधी जी की छत्रछाया थी कभी। उनके जीवन के सिध्दांत, उनकी बातें और शिक्षाएं लोगों के जीवन जीने का नजरिया बिल्कुल बदल देता थी। ऐसे में आधुनिक भारत के महानतम संत के रूप में महात्मा गांधी को लोग जानते हैं। दुनियाभर में करोड़ों-लाखों लोग अहिंसा और सच्चाई के रास्ते पर चलने के लिए उन्हें अपना मार्गदर्शक मानते हैं। एक बात सुनकर आपको हैरानी होगी, कि एक समय था, जब एक छोटा सा बच्चा महात्मा गांधी का मार्गदर्शक बना था।

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गांधी जी की लाठी पकड़कर चलता

अक्सर एक पुरानी तस्वीर में एक बच्चे को गांधी जी की लाठी पकड़े हुए उनके आगे-आगे चलते देखा जाता है। ये गांधी जी की कुछ बेहद खास तस्वीरों में से एक है। इस तस्वीर में एक छोटा सा बच्चा गांधी जी की लाठी का एक छोर पकड़कर आगे- आगे चल रहा है और गांधी जी लाठी का दूसरा छोर पकड़कर उसके पीछे चल रहे हैं।

ये तस्वीर 1933 की बताई जाती है, और उस समय ये बच्चा 4 साल का था। उन दिनाें महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ आए थे और इस बच्चे ने उन्हें बेहद प्रभावित किया था। यह बच्चा जिसका नाम रामेश्वर था आगे चलकर स्वामी आत्मानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज संत आत्मानंद की पुण्यतिथि है।

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संस्कार की ज्योति जगाई

महात्मा गांधी और फिर स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर संत आत्मानंद ने ब्रम्हचारी रहकर मानव सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने छत्तीसगढ़ में मानव सेवा, कुष्ठ उन्मूलन, शिक्षा और संस्कार की ज्योति जगाई।

इन्होंने हिन्दु धर्म के पवित्र ग्रंथों और उपनिषदों की तात्विक व्याख्या की। इनके मुख से धार्मिक साहित्यों की व्याख्या सुनकर कई लोगों का जीवन बदल गया और इस तरह रामेश्वर, संत आत्मानंद बन गए।

ऐसे में छत्तीसगढ़ के एक बुजुर्ग बताते हैं कि जब वे रामनाम कीर्तन करते थे तो उसे सुनना दैविय अनुभव देता था। संत आत्मानंद की गीता चिंतन पर व्याख्या से जुड़ी ऑडियो रिकॉर्डिंग आज भी उपलब्ध हैं। इनका जन्म 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर जिले के बरबंदा गांव में हुआ था।

उनके पिता मांढर के सरकारी स्कूल में शिक्षक और माता गृहिणी थीं। उनके पिता धनिराम वर्मा ने उच्च शिक्षा के लिए वर्धा में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित हिन्दी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और पूरे परिवार के साथ वर्धा आ गए थे।

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गांधी जी का बहुत प्रिय

इसके बाद वर्धा के सेवाग्राम आश्रम मे वर्मा परिवार रोजाना आने- जाने लगा। यहां बालक रामेश्वर, गांधी जी का मनपसंद रघुपति राघव राजाराम भजन गाया करते थे और लोग उन्हें मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। फिर धीरे-धीरे बालक रामेश्वर गांधी जी का बहुत प्रिय हो गया।

महात्मा गांधी जी उस बालक के काफी नजदीक हो गए थे और ज्यादातर उसे अपने साथ ही रखते थे। कुछ समय बाद धनिराम परिवार सहित वापस रायपुर आ गए। यहां सेंट पॉल स्कूल से बालक रामेश्वर ने हाई स्कूल की परीक्षा पास की फिर नागपुर विश्वविद्यालय से एमएससी की पढ़ाई की।

पढ़ाई के चलते वे आईएएस की लिखित परीक्षा में शामिल हुए और इसमें सफल भी हो गए। लेकिन इंटरव्यू में शामिल नहीं हुए। वे रामकृष्ण आश्रम से जुड़े और जीवन पर्यंत मानव सेवा को अपना लक्ष्य बनाया। फिर 27 अगस्त 1989 को राजनांदगांव के पास एक सड़क दुर्घटना में संत आत्मानंद का निधन हो गया, पर आज भी एक संत के रूप में उनके विचार जिंदा हैं।

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