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अमृतसर से जुड़ा है महात्मा गांधी, मालवीय और तिलक का नाम
मृतसर रेलवे स्टेशन पर प्रशासन की ओर से लगवाए गए एक शिलालेख से पता चलता है कि इस अधिवेशन में गुजरात में हुए दंगे व दक्षिण अफ्रीका के लिए जहां प्रस्ताव पारित किए गए, वहीं जलियावाला बाग हत्याकाड की भर्त्सना की गई।
दुर्गेश पार्थ सारथी
अमृसर: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमृतसर की यह माटी देश की वह थाती है, जिसे संभाल कर रखने की जरूरत है। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार के करीब छह माह बाद 23 नवंबर 1919 को अमृतसर के गोलबाग (तत्कालीन एचिसन पार्क) में हुए भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस के 36वें अधिवेशन में पं. मोतीलाल नेहरू को पहली बार अधिवेशन की अध्यक्षता करने का मौका मिला था।
इसी अधिवेशन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व पं. मदन मोहन मालवीय सरीखे सर्वमान्य 'गरम दल व नरम दल' नेताओं का आगमन भी हुआ। हालाकि, इस अधिवेशन की तिथि जलियावाला बाग कांड के पहले से निर्धारित थी। अमृतसर रेलवे स्टेशन पर प्रशासन की ओर से लगवाए गए एक शिलालेख से पता चलता है कि इस अधिवेशन में गुजरात में हुए दंगे व दक्षिण अफ्रीका के लिए जहां प्रस्ताव पारित किए गए, वहीं जलियावाला बाग हत्याकाड की भर्त्सना की गई। इसके साथ ही संपूर्ण स्वराज की जल्द से जल्द प्राप्ति के लिए मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार को मान लेने के अलावा खिलाफत आंदोलन में सहयोग देने को मंजूरी दी गई।
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मॉर्डन हिस्ट्री ऑफ इंडिया के प्रोफेसर डॉ. इंद्रजीत सिंह गोगवानी व गुरुतेग बहादुर खालसा कॉलेज दिल्ली के प्रो. डॉ. अमनप्रीत सिंह गिल के अनुसार इसे भारत में ब्रिटिश सरकार की ओर से धीरे-धीरे भारत को स्वराज्य का दर्जा देने के लिए पेश किया गया था। संक्षिप्त में इसे मोंट-फोर्ड सुधार के नाम से भी जाना जाता है। डॉ. सिंह कहते हैं कि प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन राज्य सचिव रहे एडविन सैमुअल मोंटेग्यू व 1916 से 1921 के बीच भारत के वॉयसराय रहे लॉर्ड चेम्सफोर्ड के नाम पर इसका नाम रखा गया। वे कहते हैं कि इसे मान लेने से भारत में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना, लोक सेवा आयोग का गठन व पहली बार महिलाओं को सीमित मात्रा में मत देने का अधिकार मिला।
पंजाबियों के चहेते बने मालवीय
दिल्ली यूनिवर्सिट के श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज के पॉलिटिकल साइंस के प्रो. डॉ. अमनप्रीत सिंह गिल कहते हैं जलियावाला बाग काड के बाद जाच कमेटी बनाई गई थी। पं. मोतीलाल नेहरू के साथ पं मदन मोहन मालवीय भी इसमें शामिल थे। वे इसकी जाच के लिए पंजाब आए थे। वे कहते हैं कि अमृतसर अधिवेशन के दौरान ही मालवीय पंजाब के सिख नेताओं के करीब आए। इसके बाद वे 1925 में भी अमृतसर आए थे। उनके नाम पर अमृतसर में एमएम मालवीय रोड भी है।
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बालंगाधर तिलक ने अमृतसर में दिया था अपना अंतिम भाषण
डॉ. गिल कहते हैं कि काग्रेस के अधिवेशन में अमृतसर आए बाल गंगाधर लोक मान्य तिलक नरम पड़ गए थे। उन्होंन माटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के जरिये स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल के चुनावं के वहिष्कार की गाधी की नीतियों का विरोध नहीं किया। अमृतसर अधिवेशन के दौरान बालगंगाधर तिलक का दिया भाषण अंतिम मंचीय भाषण साबित हुआ, क्योंकि इसके दस माह बाद 1 अगस्त 1920 को तिलक का मुंबई में निधन हो गया ।
ऐकला चले गुरुदेव
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डीएवी कॉलेज होशियारपुर इतिहास के प्रोफेसर डॉ. रजनीश खन्ना बताते हैं कि जलियावाला बाग हत्याकाड से गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर इतने मर्माहत हुए कि उन्होंने नाइटहुड की उपाधि लौटा दी। यही नहीं 23 से 26 अप्रैल के बीच उन्होंने सीएफ एंड्रयूज को एक के बाद एक पाच खत लिखे। गुरुदेव चाहते थे कि महात्मा गाधी व जवाहर लाल नेहरू सहित काग्रेस सभी नेता हत्याकाड का व्यापक ढंग से प्रतिकार करें, लेकिन वे सहमत नहीं हुए। इससे आहत रविंद्रनाथ टैगोर ने एक गीत लिखा -'जोदी तोर डाक सुने केउ न आशे तोबे ऐकला चलो रे'। इसके बाद उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी राह अलग कर ली। डॉ. खन्ना कहते हैं कि अमृतसर अधिवेशन में यहा आए सभी नेताओं की जानकारी पट्टाभि सीतारमैया की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ इंडियन नेशनल काग्रेस वॉल्यूम वन में विस्तार से दी गई है।
दुर्भाग्य कि अमृतसर में नहीं है गांधी की निशानी
अमृसर में गांधी गेट, गांधी बाजार और गांधी की प्रतिमा तो है, लेकिन उस स्थन की किसी को जानकारी नहीं है, जहां कांग्रेस का 36वां अधिवेशन हुआ था। उस समय का एचिसन पार्क आज गोलबाग के नाम से जाना जाता है। लेकिन दुर्भाग्य कि इस ऐतिकासिक पार्क के बारे में शायद ही किसी को जानकारी हो। क्योंकि यहां पर न तो कहीं कोई बोर्ड लगाया हैं और ना ही शिलापट्ट।