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इस सैनिक के डर से भागी पाकिस्तानी सेना, हर चाल हो गई फेल
मेजर होशियार सिंह ने युद्ध में युद्ध खत्म होने के दो घंटे पहले तक घायल होने के बावजूद दुश्मनों से लड़ते रहे। घायल होने और खून से लथपथ होने के बावजूद वह अपने सैनिकों का हौंसला बढ़ाते रहे।
नई दिल्ली: भारत वीरों की धरती है यहां एक से बढ़कर एक योद्धा पैदा हुए हैं। इन वीरों ने अपने जज्बे और साहस से पूरी दुनिया में मान बढ़ाया है और देश के लिए अपनी कुर्बानी दी है। एक ऐसे ही वीर थे मेजर होशियार सिंह। 1971 के भारत-पकिस्तान के युद्ध में मेजर होशियार सिंह ने अदम्य साहस का परिचय दिया। मेजर होशियार सिंह को उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनको जीते जी वीरता के सबसे बड़े पदक परमवीर चक्र से नवाजा गया। होशियार सिंह ब्रिगेडियर रैंक से सेवानिवृत्त हुए।
मेजर होशियार सिंह ने युद्ध में युद्ध खत्म होने के दो घंटे पहले तक घायल होने के बावजूद दुश्मनों से लड़ते रहे। घायल होने और खून से लथपथ होने के बावजूद वह अपने सैनिकों का हौंसला बढ़ाते रहे। उन्होंने युद्ध में दुश्मनों का डटकर मुकाबला किया और एक के बाद एक दुश्मन देश के सैनिकों को ढेर कर रहते रहे।
होशियार सिंह का जन्म 5 मई 1936 को हरियाणा के सोनीपत जिले के सिसाना गांव में हुआ था। होशियार सिंह के पिता हीरा सिंह किसान थे। होशियार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सोनीपत के स्थानीय स्कूल से पूरी की। इसके उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए जाट हायर सेकेंडरी स्कूल और जाट कॉलेज में ऐडमिशन लिया। वालीबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे और बाद में पंजाब टीम के कप्तान बनाए गए। इसके बाद वह राष्ट्रीय टीम में शामिल हो गए।
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होशियार सिंह 1957 में सेना के 2, जाट रेजीमेंट में सिपाही के तौर पर शामिल हुए। 6 साल बाद परीक्षा पास कर वह सेना में अधिकारी बन गए। उनको 30 जून 1963 को ग्रेनिडियर रेजीमेंट में कमीशन मिला। नॉर्थ इस्ट फ्रंटियर एजेंसी में तैनाती के दौरान उनकी बहादुरी के किस्से सेना में खूब हुई। सेना के बड़े अधिकारियों की पंसद बन गए। 1965 में भारत-पाकिस्तान लड़ाई में उन्होंने बीकानेर सेक्टर में बड़ी भूमिका निभाई।
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पाकिस्तान और भारत के बीच 1971 में छिड़ा युद्ध
1971 की लड़ाई में पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा जंग छेड़ दी। होशियार सिंह की अगुवाई वाली ग्रेनेडियर रेजीमेंट की तीसरी बटालियन को शकरगढ़ भेज दिया गया। ग्रेनेडियर रेजीमेंट की तीसरी बटालियन ने बहादुरी दिखाते हुए दुश्मनों को सबक सिखाना शुरू कर दिया। बटालियन को 15 दिसंबर को रावी की सहायक नदी बसंतर पर पुल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। पाकिस्तान ने भारतीय सेना को रोकने के पूरे इलाके में बारूदी सुरंग बिछा दी थी।
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इस विपरीत हालत में भी मेजर होशियार सिंह की टीम ने आगे बढ़ने का निर्णय लिया। होशियार सिंह की नेतृ्त्व में भारतीय सेना की टुकड़ी ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित जारपाल गांव पर कब्जा कर लिया। होशियार सिंह के सूझबूझ के सामने पाकिस्तान की हर चाल फेल हो गई। इस युद्ध में भारत की जीत हुई। होशियार सिंह को उनकी वीरता के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया। 6 दिसंबर 1998 को दिल का दौरा पड़ने के कारण 62 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।
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