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Manipur Violence: क्यों सुलग रहा मणिपुर, हिंसा के पीछ कौन है? जानिए पूरी कहानी
Manipur Violence: उग्रवादी गतिविधियों के कारण यहां की धरती पहले भी लहूलुहान होती रही है। लेकिन विगत कुछ सालों से इस राज्य ने हिंसा छोड़ शांति और विकास का मार्ग अख्तियार कर लिया था। मगर 3 मई 2023 को राज्य में हिंसा का नया दौर शुरू हो गया।
Manipur Violence: उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर ने लंबे समय तक हिंसा का दौर देखा है। उग्रवादी गतिविधियों के कारण यहां की धरती पहले भी लहूलुहान होती रही है। लेकिन विगत कुछ सालों से इस राज्य ने हिंसा छोड़ शांति और विकास का मार्ग अख्तियार कर लिया था। मगर 3 मई 2023 को राज्य में हिंसा का नया दौर शुरू हो गया। बहुसंख्यक मैतेई और अल्पसंख्यक नागा एवं कुकी जनजातियों के बीच एसटी आरक्षण को लेकर काफी समय से चल रहा विवाद अचानक हिंसक हो गया। देखते ही देखते लगभग आधा राज्य हिंसा की आग में जलने लगा।
मणिपुर में इस जातीय हिंसा की भयावहता का आलम ये था कि कुल 16 जिलों में से 10 जिलों में अशांति फैल गई थी। उपद्रवियों ने ऐसा तांडव मचाया कि हजारों कर और गाड़ियां जलकर खाक हो गईं। हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित रहने वाला शहर चूराचंदपुर का मंजर इतना खौफनाक था कि मानो वह किसी युद्धग्रस्त देश का शहर लग रहा था। राज्य में हिंसा को शुरू हुए 1 महीने को होने को है, लेकिन स्थिति अभी भी सामान्य नहीं है। खासकर पहाड़ी जिले में जबरदस्त अशांति और तनाव का माहौल है।
अभी तक 80 लोगों ने गंवाई जान
राज्य में हुई हिंसा में अब तक 80 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। रविवार को भी राजधानी इंफाल से सटे इलाकों में हुई हिंसक वारदात में एक पुलिसकर्मी समेत 6 लोग मारे गए थे, जबकि 12 घायल हुए हैं। राज्य से अब तक करीब 40 हजार लोग पलायन कर चुके हैं। इनमें मैतेई और आदिवासी दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं। मणिपुर में आर्मी, अर्द्धसैनिक बल और पुलिस के जवान बड़ी संख्या में तैनात हैं। राज्य के कई जिलों में कर्फ्यू लगा हुआ है और 31 मई तक इंटरनेट को बैन कर दिया गया है।
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अमित शाह ने संभाली कमान
राज्य की स्थिति नाजुक होती देख केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राजधानी इंफाल पहुंच चुके हैं। आज वहां उनका दूसरा दिन है। वे यहां 1 जून तक रहेंगे। शाह ने मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह और अन्य अधिकारियों से राज्य के हालात के बारे में जानकारी ली। उनके साथ केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला और आईबी चीफ तपन डेका भी मणिपर में कैंप कर रहे हैं।
गृह मंत्री ने मंगलवार सुबह मैतेई और आदिवासी समुदाय के कई राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों से अलग-अलग मुलाकात की औऱ शांति बहाली के प्रयास में मदद करने को कहा। राज्य सरकार ने हिंसा को लेकर फेक न्यूज फैलाने वालों पर राजद्रोह का केस दर्ज करने को कहा है। उधर, दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिला और उन्हें ज्ञापन सौंपा। कांग्रेस नेताओं ने राज्य में हिंसा के लिए बीजेपी की विभाजनकारी राजनीति को जिम्मेदार ठहराया है।
पीड़ितों को दिया जाएगा मुआवजा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह के बीच हुई बैठक के बाद हिंसा में मारे गए लोगों के परिवार को मुआवजा देने का ऐलान किया गया है। केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से मृतकों के परिवार को 10 -10 लाख रूपये और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि मुआवजे की राशि केंद्र और राज्य सरकार बराबर-बराबर वहन करेंगी।
क्यों सुलग रहा है मणिपुर ?
मणिपुर में मैतेई समुदाय खुद को एसटी वर्ग में शामिल करने की मांग लंबे समय से करता रहा है। जिसके विरोध में नागा और कुकी जैसी जनजातीय समुदाय रही हैं। बीते 19 अप्रैल को मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि सरकार को मैतेई समुदाय को जनजातीय वर्ग में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। उच्च न्यायालय ने चार हफ्ते में सरकार को इस पर अपना जवाब दाखिल करने को आदेश दिया। इस फैसले के खिलाफ आदिवासी वर्ग सड़क पर उतर आए और प्रदर्शन करने लगे। ऑल इंडिया ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन इस प्रोटेस्ट को लीड कर रहा था।
3 मई को चूराचंदपुर जिले में प्रदर्शन के दौरान अचानक हिंसा भड़क गई। प्रदर्शन में शामिल लोगों पर मैतेई समुदाय के घरों और दुकानों को निशाना बनाने के आरोप लगे। देखते ही देखते आदिवासी बहुल 10 जिलों में हिंसा फैल गई। दरअसल, आदिवासी वर्ग हाईकोर्ट के इस फैसले का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अगर मैतेई समुदाय को जनजातीय वर्ग में शामिल कर लिया जाता है तो वे उनके जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे। मैतेई को मणिपुर की ताकवतर और पभावशाली समुदाय के तौर पर जाना जाता है, जिसकी आबादी राज्य में 53 प्रतिशत के करीब है।
राज्य की कुल 60 में से 40 सीटों पर मैतेई समुदाय के लोगों का दबदबा है। इसलिए राजनीतिक रूप से भी वे सश्कत हैं। ऐसे में नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय को लगता है कि मैतेई को एसटी मे शामिल किए जाने से उनके अधिकारों में सेंध लग जाएगी। पहले से मजबूत मैतेई और सशक्त हो जाएंगे। बता दें कि दोनों जातियों में धार्मिक विभाजन भी है। मैतेई अधिकांश हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हैं। जबकि नागा और कुकी ईसाई धर्म फॉलो करते हैं।