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MP में महिलाएं 7 दिन 3 फीट की जगह में रहने को मजबूर, अजीबो-गरीब है ये गांव

जहां एक तरफ पूरे देश में महिलाओं के सशक्तिकरण की बातें कही जाती हैं, वहीं दूसरी तरफ आज भी देश में कुछ ऐसी महिला वर्ग हैं, जो समाज के ठेकेदारों द्वारा बनाए गए रिवाजों की वजह से आज भी प्रताड़ित हो रही हैं।

Shreya
Published on: 17 March 2020 7:32 AM GMT
MP में महिलाएं 7 दिन 3 फीट की जगह में रहने को मजबूर, अजीबो-गरीब है ये गांव
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MP में महिलाएं 7 दिन 3 फीट की जगह में रहने को मजबूर, अजीबो-गरीब है ये गांव

लखनऊ: जहां एक तरफ पूरे देश में महिलाओं के सशक्तिकरण की बातें कही जाती हैं, वहीं दूसरी तरफ आज भी देश में कुछ ऐसी महिला वर्ग हैं, जो समाज के ठेकेदारों द्वारा बनाए गए रिवाजों की वजह से आज भी प्रताड़ित हो रही हैं। आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के लोग आज भी रूढ़िवादी हैं और जहां पर महिलाएं 7 दिनों तक के लिए 3 फीट के कमरे में रहती हैं।

इस गांव में महिलाएं 7 दिनों तक रहती हैं 3 फीट के घर में

हम बात कर रहे हैं कि सूरजपुर की, जहां पंडो नगर में आज भी अंधविश्वास के चलते औरतें बदतर जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। यहां पर औरतें मासिक धर्म यानि periods में 7 दिनों तक एक 3 फीट की लंबाई वाले गुफा नुमा घर में रहती हैं। ये घर इतना छोटा है कि इसमें सही से चलना तो दूर बैठना भी मुश्किल रहता है। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पंडो जनजाति की महिलाएं समाज द्वारा बनाए गए इस नियम के चलते आज भी सामाजिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रही हैं।

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पुरानी परंपरा की वजह से ऐसे जी रहीं जिंदगी

यहां की रहने वाली एक महिला ने बताया कि पुरानी परंपरा की वजह से यहां पर औरतें ऐसी जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। यहां के स्तानीय लोगों को मानना है कि घर में देवी देवताओं का मंदिर होता है, और चूंकि औरतें मासिक धर्म के समय अपवित्र होती हैं, इसलिए ऐसा किया जाता है। लोगों का मानना है कि अगर वह पीरियड्स के दौरान घर में रहेंगी तो उनके देवी देवता नाराज हो जाएंगे। इसलिए यहां पर सभी के घरों में 2 दरवाजे बने हुए हैं।

परंपरा न मानने पर झेलना पड़ता है कष्ट

पीरियड्स के दौरान महिलाएं अपने घर के मुख्य द्वार से ना जाकर दूसरे दरवाजे से जाती हैं और वहीं अपने 7 दिन गुजारती हैं। औरतों के मासिक धर्म के समय घर के अन्य सदस्य उनके हाथ का न खाना खाते हैं और न ही पानी पीते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह परंपरा काफी पुरानी है जो लोग इस परंपरा को नहीं मानते उन्हें कष्ट झेलना पड़ता है।

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सरकार की तरफ से उत्थान के लिए खर्च किए जाते हैं करोड़ों

वहीं इस गांव की महिलाओं को भी इस परंपरा से कोई आपत्ति नहीं है। उनके मुताबिक, वो पिछले कई सालों से इस परंपरा को निभा रही हैं और अब उन्हें मासिक धर्म के समय इस समस्या को झेलने की आदत सी हो गई है। बता दें कि राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से इनके उत्थान के लिए हर साल करोड़ों रूपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन यहां पर आज भी महिलाओं की स्थिति जैसी की तैसी है।

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