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एंटीलिया केस में रहस्यमयी सचिन वाजे, चेहरे के पीछे कई नकाब, ऐसे शुरु हुआ बुरा दौर

महाराष्ट्र पुलिस बल में शामिल होने के कुछ सालों में ही सचिन क्रिमिनिल केसों की बेहतरीन जांच करने वाले पुलिस ऑफिसर के रूप में पहचाना जाने लगा। सचिन एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर मशहूर हुए थे। लेकिन बुरा वक्त शुरू हुआ आरोपी ख्वाजा यूनुस की हत्या के साथ।

Shreya
Published on: 20 March 2021 8:30 AM GMT
एंटीलिया केस में रहस्यमयी सचिन वाजे, चेहरे के पीछे कई नकाब, ऐसे शुरु हुआ बुरा दौर
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एंटीलिया केस में रहस्यमयी सचिन वाजे, चेहरे के पीछे कई नकाब, ऐसे शुरु हुआ बुरा दौर

नीलमणि लाल

लखनऊ: मुकेश अंबानी के आवास एंटीलिया के पास मिले विस्फोटक के मामले में गिरफ्तार पुलिस अफसर सचिन एक रहस्यमय शख्स है। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट, लेखक, आईटी स्पेशलिस्ट, बिजनेसमैन, नेतागीरी- ये सब काम वो कर चुका है। ढेरों चेहरे वाले इस असिस्टेंट इंस्पेक्टर के हाथ बहुत लम्बे हैं और पहुंच बड़े बड़े नेताओं तक है।

1990 में जुड़ा महाराष्ट्र पुलिस बल के साथ

सचिन वाजे 1990 में एक सब-इंस्पेक्टर के रूप में महाराष्ट्र पुलिस बल में शामिल हुआ था। सचिन वाजे की पहली पोस्टिंग गदरौली के माओवाद प्रभावित क्षेत्र में थी और दो साल बाद ठाणे शहर पुलिस में शिफ्ट कर दिया गया था। कुछ ही सालों में सचिन क्रिमिनिल केसों की बेहतरीन जांच करने वाले पुलिस ऑफिसर के रूप में पहचाना जाने लगा।

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उसके बाद उसे ठाणे पुलिस की अपराध शाखा के विशेष दस्ते में शामिल किया गया जहां उसने एक एनकाउंटर के दौरान ख्याति प्राप्त की। इसके बाद कई ऐसे एनकाउंटर सचिन वाजे ने किये। उस दौरान प्रदीप शर्मा, दया नायक और सचिन एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर मशहूर हुए थे। बताया जाता है कि सचिन वाजे करीब 60 एनकाउंटर कर चुका है।

sachin-waze (फोटो- सोशल मीडिया)

ख्वाजा यूनुस मामला

सचिन वाजे का बुरा वक्त 2002 में शुरू हुआ जब वो मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की पवई इकाई में था। उस दौरान सचिन और तीन अन्य पुलिसवालों पर घाटकोपर बम कांड के आरोपी ख्वाजा यूनुस की हत्या का आरोप लगा। 27 वर्षीय ख्वाजा यूनुस सॉफ्टवेयर इंजीनियर था जिसे 2002 में घाटकोपर में हुए बम धमाके के मामले में गिरफ्तार किया गया था और बाद में पुलिस हिरासत में ही उसकी मौत हो गई थी।

सीआईडी ने इस बात का खुलासा किया कि पुलिस कस्टडी में पिटाई के दौरान उसकी मौत हुई है। उसके बाद सीआईडी ने सचिन वाजे पर और तीन अन्य पुलिसकर्मियों राजेंद्र तिवारी, राजाराम निकम और सुनील देसाई पर 3 मार्च 2004 को हत्या और सबूत नष्ट करने का आरोप लगाया।

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इसके बाद सचिन वाजे को मार्च 2004 में सस्पेंड कर दिया गया था। सस्पेंशन के दौरान ही सचिन ने 30 नवंबर 2007 में महाराष्ट्र पुलिस से इस्तीफा दे दिया जिसे मंजूर नहीं किया गया। इसके बाद एक साल बाद 2008 में सचिन वाजे शिवसेना में शामिल हो गया।

पुलिस में बहाली

सस्पेंड होने के 16 साल बाद 6 जून, 2020 को सचिन वाजे को फिर से पुलिस में बहाल किया गया। ये बहाली पुलिस आयुक्त की अध्यक्षता में हुई बैठक के निर्णय के आधार पर हुई। सचिन वाजे को क्राइम ब्रांच की खुफिया इकाई क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन यूनिट में सहायक पुलिस निरीक्षक के पद पर बैठाया गया। सचिन वाजे उस पुलिस टीम का हिस्सा था जिसने अन्वय नाइक की आत्महत्या के मामले में नवंबर 2020 में पत्रकार अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार किया था।

इसके अलावा 28 दिसंबर, 2020 को सचिन वाजे ने स्पोर्ट्स कार डिजाइनर दिलीप छाबड़िया को भी गिरफ्तार किया था। सचिन वाजे उस केस को भी देख रहा था जो 2016 से कंगना रनौत और ऋतिक रोशन के बीच चल रहा है।

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waze sachin (फोटो- सोशल मीडिया)

नहीं जानते होंगे सचिन वाजे के बारे में ये बातें

सचिन वाजे को लेटेस्ट गैजेट्स का शौक है। सस्पेंशन के दौरान उसने एक मेसेजिंग ऐप और सर्च इंजन बनाया। इस मैसेजिंग और कम्युनिकेशन ऐप का नाम था - डायरेक्ट बात। इसे उद्यमियों, सरकारी एजेंसियों और हाई-प्रोफाइल लोगों के लिए खासतौर पर डिजाइन किया गया था।

सचिन वाजे ने इसके अलावा एक सर्च इंजन भी बनाया, और यूजर्स को मुफ्त और पेड सर्विस प्रदान कीं।

फेसबुक की तर्ज पर सचिन ने 2010 में मराठी भाषी लोगों के लिए एक लोकल सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म का अपना वर्जन लॉन्च किया था। इसे मराठी फेसबुक कह कर प्रचारित किया गया।

सचिन वाजे ने कानून, सुरक्षा, कंप्यूटर हार्डवेयर और सोशल नेटवर्किंग से जुड़ी सेवाओं के लिए अपने नाम से छह ट्रेडमार्क दावे दायर किए थे।

उसने 26/11 के मुंबई आतंकी हमले पर दो किताबें भी लिखीं। 2012 में उसने मराठी में एक किताब ‘जिन्कुन हरेली लढाई’ लिखी थी। अपनी दूसरी किताब ‘द स्काउट’ को एक अन्य पूर्व पुलिस अफसर शिरीष थोरात के साथ मिलकर लिखा था। इस किताब में आतंकी हमलों का जिक्र किया गया था।

सचिन कम से कम 6 कम्पनियां बना कर बिजनेस में भी उतर चुका है। बताया जाता है कि उसके भागीदार शिव सेना से जुड़े लोग थे।

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