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एक पेड़ को बचाने के लिए बदलेगा हाईवे का नक्शा, जानिए क्यों लेना पड़ा यह फैसला

जानकार सूत्रों का कहना है कि 400 साल पुराना यह पेड़ 400 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। रत्नागिरी-सोलापुर हाईवे पर यह पेड़ येलम्मा मंदिर के पास है।

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Published on: 25 July 2020 4:10 PM GMT
एक पेड़ को बचाने के लिए बदलेगा हाईवे का नक्शा, जानिए क्यों लेना पड़ा यह फैसला
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अंशुमान तिवारी

मुंबई: महाराष्ट्र के सांगली जिले में एक पेड़ को बचाने के लिए हाईवे का नक्शा बदलने का फैसला किया गया है। 400 साल पुराने इस बरगद के पेड़ को बचाने के लिए सांगली के भोसे गांव के लोगों ने चिपको आंदोलन शुरू कर दिया था। स्टेट हाईवे के बीच में आने के कारण इस पेड़ को काटने का फैसला किया गया था मगर ग्रामीणों के प्रबल विरोध के बाद सरकार अब अपना फैसला बदलने को मजबूर हुई है और हाईवे का नक्शा बदलने का फैसला किया गया है।

400 साल पुराना है बरगद का पेड़

जानकार सूत्रों का कहना है कि 400 साल पुराना यह पेड़ 400 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। रत्नागिरी-सोलापुर हाईवे पर यह पेड़ येलम्मा मंदिर के पास है। यहां के लोगों की इस पेड़ से तमाम यादें जुड़ी हुई है और यह पेड़ यहां के लोगों की परंपरा से भी जुड़ा हुआ है। काफी पुराना और बड़ा पेड़ होने के कारण इस पर सैकड़ों तरह की चिड़ियों ने भी अपना बसेरा बना रखा है। सांगली में स्टेट हाईवे-166 के निर्माण के लिए इन दिनों जोर-शोर से काम चल रहा है।

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चूंकि यह पेड़ हाईवे के बीच में आ रहा था, इसलिए पेड़ को काटने का काम शुरू कर दिया गया था। इस बात की जानकारी मिलते ही सांगली के सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों में पेड़ काटने का विरोध करना शुरू कर दिया। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें जुलाई की शुरुआत में पेड़ काटने के बारे में जानकारी मिली।

पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन

महाराष्ट्र में कोरोना का जबर्दस्त संक्रमण होने के कारण भीड़ जुटाकर पेड़ काटने का विरोध नहीं किया जा सकता था। इस कारण ग्रामीणों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पेड़ बचाने की मुहिम शुरू की और 20 लोग पेड़ को घेरकर खड़े हो गए। ग्रामीणों की इस मुहिम को दूसरे वर्गों से भी भारी समर्थन मिला। ग्रामीणों ने सह्याद्रि नामक संगठन की मदद से फेसबुक पर इस पेड़ का फोटो अपलोड किया।

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साथ ही कई ऐसे वीडियो भी पोस्ट किए गए जिनमें दिखाया गया था कि यह पेड़ कितना विशाल और पुराना है और उसकी शाखाएं कितनी फैली हुई हैं। इसके बाद ऑनलाइन पिटिशन भी दायर की गई थी जिसे 14000 से अधिक लोगों ने अपना समर्थन दिया। लोगों के प्रबल विरोध को देखते हुए आखिर सरकार को इस मुद्दे पर ध्यान देना ही पड़ा।

गडकरी ने दिया नक्शे में बदलाव का निर्देश

महाराष्ट्र के पर्यटन और पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए इस मुद्दे पर केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को पत्र लिखा। इस पेड़ के प्रति लोगों की भावनाओं को देखते हुए अब गडकरी ने हाईवे के नक्शे में बदलाव का निर्देश दिया है। सूत्रों ने बताया कि अब यह हाईवे भोसे गांव की जगह आरेखन गांव से होकर गुजरेगा। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) का कहना है कि अब हाईवे को बनाने के लिए पेड़ को नहीं काटा जाएगा। हालांकि इसकी कुछ शाखाओं की छंटनी जरूर करनी पड़ेगी।

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चिपको आंदोलन की शुरुआत 1970 में चमोली जिले में हुई थी। इस समय यह जिला उत्तराखंड राज्य का हिस्सा है मगर उस समय यह उत्तर प्रदेश का हिस्सा था। इसकी अगुवाई करने वालों में पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट, गौरा देवी और गोविंद सिंह रावत शामिल थे। बाद में आंदोलन पूरे उत्तराखंड में फैल गया था। इस आंदोलन में पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलनकारी पेड़ों से चिपक जाया करते थे और इसीलिए इसे चिपको आंदोलन का नाम दिया गया था। महिलाओं ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

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