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रहस्यमयी मंदिर: आखिर हर कोई क्यों हो रहा देख कर हैरान
हमारा देश भारत अपनी सभ्यता और संस्कृति की वजह से दुसरे देशों के लिए मिसाल है। भारत अपने प्राचीन मंदिरों के लिए भी काफी फेमस है। यहां लोग विदेश से मंदिरों की भव्यता देखते आते हैं। सबका ये भी मानना है की इन मंदिरों में रहस्यमयी खजाना भरा पड़ा है।
पटना: हमारा देश भारत अपनी सभ्यता और संस्कृति की वजह से दुसरे देशों के लिए मिसाल है। भारत अपने प्राचीन मंदिरों के लिए भी काफी फेमस है। यहां लोग विदेश से मंदिरों की भव्यता देखते आते हैं। सबका ये भी मानना है की इन मंदिरों में रहस्यमयी खजाना भरा पड़ा है। लेकिन आज तक कोई खजाना निकाल नहीं पाया। पुरातत्वद विज्ञानियों ने कई बार कोशिश की लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी।
आज हम आपको बतातें बिहार के औरंगाबाद जिले के एक रहस्यदमयी मंदिर की। ऐसा कहा जाता है की ये एक अद्भुत मंदिर है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इसने खुद ही अपनी दिशा बदल दी थी। आइए इस बारे में विस्तारर से जानते हैं।
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औरंगाबाद का यह देव सूर्य मंदिर है अनोखा
औरंगाबाद जिले में एक देव नाम का स्थाोन है। यह रहस्य मयी मंदिर भी इसी स्थाबन पर स्थालपित है। यह सूर्य देवता का मंदिर है और देव नामक जगह पर है तो इसलिए इसे देव सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण छठीं या आठवीं सदी के बीच हुआ होगा। मंदिर की नक्कााशी बेजोड़ है। यही वजह है कि स्था नीय निवासी इस मंदिर को त्रेता और द्वापर युग के बीच का मंदिर बताते हैं।
इसलिए बदल दी थी मंदिर ने अपनी दिशा
कथा मिलती है कि एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ता हुआ औरंगाबाद के देव पहुंचा। वह मंदिर पर आक्रमण करने ही वाला था कि वहां के पुजारियों ने उससे काफी अनुरोध किया कि वह मंदिर को न तोड़े। कहते हैं कि पहले तो औरंगजेब किसी भी कीमत पर राजी नहीं हुआ लेकिन बार-बार लोगों के अनुरोध को सुनकर उसने कहा कि यदि सच में तुम्हाकरे भगवान हैं और इनमें कोई शक्ति है तो मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में हो जाए। यदि ऐसा हो गया तो मैं मदिर नहीं तोड़ूंगा।
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पुजारियों की विनती सुन पिघले सूर्य देव
वहां के निवासी बताते हैं कि औरंगजेब पुजारियों को मंदिर के प्रवेश द्वार की दिशा बदलने की बात कहकर अगली सुबह तक का वक्तक देकर वहां से चला गया। लेकिन इसके बाद पुजारीजन काफी परेशान हुए और वह रातभर सूर्य देव से प्रार्थना करते रहे कि वह उनके वचन की लाज रख लें। कहते हैं कि इसके बाद जब पुजारीजन अगली सुबह पूजा के लिए मंदिर पहुंचे तो उन्होंकने देखा कि मंदिर का प्रवेश द्वार तो दूसरी दिशा में हो गया है। तब से देव सूर्य मंदिर का मुख्या द्वार पश्चिम दिशा में ही है।
मन मांगी मुरादें होती हैं पूरी
देव सूर्य मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां सदियों से भक्तू जन आते हैं और मन मांगी मुराद पाकर ही जाते हैं। यहां मन्न त पूरी होने के बाद भक्त् सूर्य देव को अर्घ्यं देने आते हैं। वहां के निवासी बताते हैं कि भारत के कोने-कोने से लोग यहां प्रभाकर देव की आराधना करते हैं और मुरादों को झोली भरकर ले जाते हैं।
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यह भी है मान्यता
ऐसा बताया जाता है कि सतयुग में इक्ष्वा कु के पुत्र राजा ऐल जो कि कुष्ठी रोग से पीड़ित थे वह शिकार खेलने गए थे। तभी उन्हेंं भयंकर प्याेस और गर्मी लगी। तब राजा ऐल ने अपनी प्यास बुझाने के लिए देव स्थित तालाब का जल पीकर उसमें स्ना न किया। मान्यीता है कि स्ना्न के बाद उनका कुष्ठल रोग पूर्ण रूप से ठीक हो गया। राजा खुद भी इससे काफी हैरान हुए। लेकिन उसी रात राजा को स्विप्नर में श्री सूर्य देव के दर्शन हुए कि वह उसी तालाब में हैं जहां से उनका कुष्ठन रोग ठीक हुआ है। इसके बाद राजा ने उसी स्था न पर सूर्य मंदिर का निर्माण करवा दिया। कहते हैं कि उस तालाब से ब्रह्मा, विष्णुश और महेश की भी मूर्तियां मिली, जिन्हें राजा ने मंदिर में स्थाहपित करवा दिया।
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देव सूर्य भी महोत्सतव मनाते हैं
देव सूर्य मंदिर की महिमा इतनी भारी है कि यहां पर देव सूर्य महोत्सतव का भी आयोजन किया जाता है। हालांकि पहले तो यह छोटे स्तार पर ही होता था लेकिन बाद में साल 1998 में यह वृहद स्तार पर आयोजित होने लगा। यहां बसंत पंचमी के दूसरे दिन यानी कि सप्तेमी के दिन पूरे शहर के लोग नमक का त्या ग करते हैं और सूर्य देव महोत्सनव मनाते हैं। इसके अलावा सूर्य देव की विशेष पूजा का भी आयोजन होता है। इसमें शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं।