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नगालैण्ड की अनसुलझी गुत्थी

seema
Published on: 8 Nov 2019 12:39 PM IST
नगालैण्ड की अनसुलझी गुत्थी
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नगालैण्ड की अनसुलझी गुत्थी

नई दिल्ली: नगा शांति समझौते की फाइनल समय सीमा बीती ३१ अक्टूबर को समाप्त हो गई। अंतिम समय तक बस यही तय हो पाया कि दोनों पक्ष शांति वार्ता जारी रखेंगे। इस बातचीत में सबसे जटिल मसला एक पृथक नगा संविधान और नगा ध्वज के इस्तेमाल की मांग का है। नगा राष्ट्रवाद से जुड़े ये दोनों मसले बरसों से सुलझ नहीं पा रहे हैं। नगा गुटों का कहना है कि वे ध्वज और संविधान की मांग से कतई पीछे नहीं हटेंगे।

साइमन कमीशन

शुरुआती दौर की बात करें तो मामला अंग्रेजों के समय से शुरू हो गया था। अंग्रेजी हुकूमत ने भारत में संवैधानिक सुधार लागू करने तथा प्रांतीय स्वायत्तता के बारे में विचार करने के लिए १९२९ में साईमन आयोग भेजा था। इस आयोग के समक्ष नगा जनजातियों के प्रतिनिधियों ने मांग रखी थी कि भारत की आजादी के बाद नगाओं को मुक्त रखा जाए और उन्हें भारतीय संघ में नहीं रखा जाए। यानी वो भारत में शामिल नहीं रखना चाहते थे।

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नगा और भारतीय संघ

भारत की आजादी से पूर्व भारत सरकार और नगा नेशनल काउंसिल के बीच ९ बिंदुओं वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इनमें एक महत्वपूर्ण बिन्दु ये था कि 'नगा भारत में प्रायोगिक तौर पर दस साल तक रहेंगे। इस अवधि के बाद साथ साथ रहने के बारे में समीक्षा की जाएगी।' नगा काउंसिल ने भारत में बने रहने के प्रवाधान को अस्थाई समझते हुए ये मान लिया कि दस साल बाद उन्हें आत्मनिर्णय का अधिकार रहेगा। इतिहासकारों का मानना है कि भारत सरकार ने 'प्रायोगिक अवधि' के प्रावधान को ये मान लिया कि नगा भारतीय संघ के अविभाज्य हिस्सा बन गए हैं। यही आगे चल कर सारे विवाद की जड़ बना।

एक दिन पहले आजादी

नगा संघर्ष के सबसे बड़े नेता डॉ. ए.जेड. फिजो ने १९ जुलाई १९४७ को महात्मा गांधी से मुलाकात की। नगा इतिहासकारों के अनुसार गांधी इस बात पर राजी हो गए कि नगा लोग अपनी आजादी, भारत की आजादी के दिन से एक दिन पहले यानी १४ अगस्त १९४७ को मनाएंगे। तबसे लेकर आज तक नगालैंड, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश में नगा लोग १४ अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं।

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नगा ध्वज

हर साल १४ अगस्त को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (आईसाक-मुईवाह) या एनएससीएन (आई-एम) ही नहीं बल्कि विभिन्न नगा विद्रोही गुटों के शिविरों में और आम लोगों के घरों में नगा ध्वज फहराया जाता है। इस साल नगा शांति वार्ता की पृष्ठïभूमि में नगा ध्वज फहराने का अलग ही उत्साह नजर आया। जगह -जगह लोगों ने समूहों में एकत्र हो कर ध्वज फहराया, रैलियां निकालीं। मणिपुर के उखरुल जिले में सबसे ज्यादा उत्साह देखा गया। यहीं एनएससीएन (आई-एम) के मुखिया टी. मुइवाह का गांव है। नगा लोगों की मान्यता है कि उनका ध्वज किसी इनसान द्वारा नहीं बनाया है बल्कि ये दैवी है। कहा जाता है कि जब नगा गुट भारतीय सुरक्षा बलों से संघर्ष कर रहे थे तब नगा नेता फिजो और उनके सहयोगियों को एक अलौकिक आभास हुआ जिसमें उन्होंने एक नीले आसमान में इंद्रधनुष को देखा। इसे ईशवरीय उपहार माना गया हौर यही नगा ध्वज बना। नगा जनजाति रेंगमा की एक महिला को ध्वज बुनने की जिम्मेदारी दी गई। पहली बार नगा ध्वज २२ मार्च १९५६ को रेंगमा के पाराशेन में फहराया गया। इस ध्वज में नीली पृष्ठïभूमि है जो आसमान का द्योतक है। बीच में लाल, पीला व हरे रंग का इंद्रधनुष है। ध्वज के ऊपरी बाएं कोने पर बेतेलहम का सितारा बना है। ये इसलिए कि नगा बहुतायत से ईसाई हैं। २०० साल पहले ही अमेरिकी धर्म प्रचारकों ने यहां बहुतायत से धर्म परिवर्तन कराया था।

आज का नगा ध्वज

नगा अपने ध्वज को सतत 'संघर्ष' धार्मिक विश्वास, आकांक्षाओं व अपनी पहचान का प्रतीक मानते हैं। सभी नगा जनजातियां इस झंडे तले एकजुट हैं। नगालैंड राज्य में आज इस ध्वज की महत्ता पर अलग अलग राय हैं। कुछ वर्ग मानते हैं कि भारत से अलग होना अब मुमकिन नहीं है सो नगा ध्वज की प्रासंगिकता नहीं है। इनका मानना है कि राज्य के विकास का ज्यादा जरूरी है। वहीं एक वर्ग अब भी नगाओं की अलग पहचान बनाए रखने के विचार का पक्षधर है।

नगा शांति वार्ता

नगा शांति वार्ता अंग्रेजी शासन से चली आ रही है। दरअसल नगा कोई एक जनजाति नहीं हैं बल्कि इनमें करीब ६५ अलग-अलग जनजातियां हैं। नगा गुटों की एक बड़ी मांग ये है कि एक वृहत 'नगालिम' बनाया जाए जिसमें नगालैंड, पड़ोसी राज्य और म्यांमार तक के हिस्से शामिल हों।

अंग्रेजों ने १८२६ में असम को अपने अधीन किया था। इसमें एक अलग नगा पर्वतीय जिला बनाया गया। बाद में इसकी सीमाएं और विस्तारित की गईं। लेकिन नगा समूहों ने कभी भी अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके। वे लगातार आजादी की मांग करते रहे। आजादी समेत अन्य अनुसलझे मसलों पर दशकों तक सशस्त्र संघर्ष चलता रहा जिसमें हजारों लोगों की जानें चली गईं।

कहां से कहां तक पहुंची बात

नगा प्रतिरोध का पहला उदाहरण १९१८ का है जब नगा क्लब की स्थापना हुई थी। इस क्लब ने साइमन कमीशन से कहा था- 'हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए। प्राचीन काल की तरह हम अपना फैसला खुद करेंगे।'

१९४६ में ए.जेड. फिजो ने नगा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) की स्थापना की जिसने १४ अगस्त १९४७ को नगा स्वतंत्रता का एलान कर दिया।

एनएनसी का दावा था कि उसने १९५१ में एक जनमत संग्रह किया था जिसमें बहुमत ने एक स्वतंत्र नगा राज्य का समर्थन किया।

पचास के दशक में एनएनसी ने सशस्त्र संघर्ष का एलान कर दिया और इसके नेता भूमिगत हो गए।

१९७५ में शिलांग में केंद्र सरकार और एनएनसी के बीच एक समझौता हुआ जिसमें एनएनसी नेतृत्व हथियार डालने के लिए राजी हो गया। लेकिन आइसा छिशी स्वू, टी. मुइवाह और एस.एस. खापलांग ने समझौता मानने से इनकार कर दिया और वे एनएससीएन से अलग हो गए। १९८८ में एनएनसी फिर दो हिस्सों - एनएससीएन (आई-एम) व एनएससीएन (खापलांग) में बंट गया।

१९९७ में एनएससीएम (आई-एम) ने सरकार के साथ युद्ध विराम का समझौता किया। समझौते की प्रमुख बातें ये थीं कि एनएससीएन (आई-एम) के खिलाफ न तो सुरक्षा बल कोई कार्रवाई करेंगे और न ही विद्रोही सुरक्षा बलों पर हमला करेंगे।

२०१५ के अगस्त में केंद्र सरकार ने एनएससीएम (आई-एम) के साथ एक समझौते की रूपरेखा पर हस्ताक्षर किए। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे भारत में सबसे पुराने विद्रोह को समाप्त करने वाला एतिहासिक समझौता करार दिया। वर्तमान शांति वार्ता इसी करार के आलोक में जारी है।

२०१७ में नगा नेशनल पोलीटिकल ग्रुप के बैनर तले छह अन्य विद्रोही गुट वार्ता में शामिल हो गए।

अब सबसे सीनियर नगा विद्रोही नेता टी. मुइवाह ही बचे हैं।

२०१६ में इसाक स्वू का तथा एनएससीएन (के) के नेता खापलांग का २०१८ में निधन हो गया।

२०१५ के समझौते में क्या क्या बातें हैं, सरकार ने इसका खुलासा नहीं किया है। प्रेस के लिए जारी एक बयान में सिर्फ इतना कहा गया कि-भारत सरकार नगाओं के अद्वितीय इतिहास, संस्कृति और स्थिति को तथा उनकी भावनाओं व आकांक्षाओं को मान्यता देती है। एनएससीएन भारतीय राजनीतिक प्रणाली और शासन प्रणाली को समझता है व उसकी कद्र करता है। दूसरी ओर एनएससीएन ने एक बयान में कहा - 'नगालैंड राज्य, नगा लोगों के राष्ट्रीय निर्णय का न तो प्रतिनिधित्व करता है और न ही करेगा। ये बयान नगालैंड में रजिस्टर ऑफ इंडीजिनस (मूल) इनहैबिटेंट्स ऑफ नगालैंड (आरआईआईएन) बनाने के प्रस्ताव के विरोध में था।

नगा जनसंख्या करीब ४० लाख है। जिनमें से १८ लाख नगालैंड में रहते हैं। इसके बाद ७ लाख नगा मणिपुर में हैं।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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