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नागा विद्रोह फिरः उलझी शांति वार्ता, बिगड़ते जा रहे हालात

नागालैंड देश की आजादी के बाद से ही उग्रवाद की चपेट में रहा है। यहां के ज्यादातर लोग खुद को भारत का हिस्सा नहीं मानते। उनकी दलील है कि ब्रिटिश कब्जे से पहले यह एक स्वाधीन इलाका था।

Newstrack
Published on: 22 Aug 2020 3:48 PM IST
नागा विद्रोह फिरः उलझी शांति वार्ता, बिगड़ते जा रहे हालात
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नागा विद्रोह फिरः उलझी शांति वार्ता, बिगड़ते जा रहे हालात

नई दिल्ली: नागालैंड देश की आजादी के बाद से ही उग्रवाद की चपेट में रहा है। यहां के ज्यादातर लोग खुद को भारत का हिस्सा नहीं मानते। उनकी दलील है कि ब्रिटिश कब्जे से पहले यह एक स्वाधीन इलाका था। अंग्रेजों की वापसी के बाद इस राज्य ने खुद को स्वाधीन घोषित कर केंद्र के खिलाफ हिंसक अभियान शुरू कर दिया था। वर्ष 1947 में देश के आजाद होने के समय नागा समुदाय के लोग असम के एक हिस्से में रहते थे।

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नागा विद्रोह फिरः उलझी शांति वार्ता, बिगड़ते जा रहे हालात

संप्रभुता की मांग

देश आजाद होने के बाद नागा कबीलों ने संप्रभुता की मांग में आंदोलन शुरू किया था। उस दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुई थी जिससे निपटने के लिए उपद्रवग्रस्त इलाकों में सेना तैनात करनी पड़ी थी। उसके बाद वर्ष 1957 में केंद्र सरकार और नागा गुटों के बीच शांति बहाली पर आम राय बनी जिसके आधार पर असम के पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले तमाम नागा समुदायों को एक साथ लाया गया। बावजूद इसके इलाके में उग्रवादी गतिविधियां जारी रहीं। तीन साल बाद आयोजित नागा सम्मेलन में तय हुआ कि इस इलाके को भारत का हिस्सा बनना चाहिए।

वर्ष 1963 में इसे राज्य का दर्जा मिला और अगले साल यानी 1964 में यहां पहली बार चुनाव कराए गए। लेकिन अलग राज्य बनने के बावजूद नागालैंड में उग्रवादी गतिविधियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सका। वर्ष 1975 में तमाम उग्रवादी नेताओं ने हथियार डाल कर भारतीय संविधान के प्रति आस्था जताई। लेकिन यह शांति क्षणभंगुर ही रही। वर्ष 1980 में राज्य नें सबसे बड़े उग्रवादी गठन नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन) का गठन किया गया। बाद में यह दो गुटों में बंट गया।

शांति प्रक्रिया

राज्य के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आई-एम) और केंद्र सरकार ने ठीक 23 साल पहले वर्ष 1997 में युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट यानी समझौते के प्रारूप पर हस्ताक्षर करने के बाद शांति प्रक्रिया के मंजिल तक पहुंचने की कुछ उम्मीद जरूर पैदा हुई थी। बावजूद उसके इस प्रक्रिया में अकसर गतिरोध पैदा होते रहे हैं।

पड़ोसी राज्यों की चिंताएं

नागा समस्या पर बातचीत के अंतिम दौर में पहुंचने के साथ ही उसके पड़ोसी राज्यों की चिंताएं बढ़ गई हैं। इसकी वजह यह है कि एनएससीएन (आई-एम) शुरू से ही असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नागा-बहुल इलाकों को मिला कर नागालिम यानी ग्रेटर नागालैंड के गठन की मांग करता रहा है। इलाके के इन राज्यों ने केंद्र से कोई भी समझौता करने से पहले बाकी राज्यों की अखंडता बरकरार रखने को कहा है।

ताजा गतिरोध

एनएससीएन (आई-एम) ने राज्यपाल और शांति प्रक्रिया में मध्यस्थ आरएन रवि की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हुए उन पर इस प्रक्रिया को पटरी से उतारने का प्रयास करने का आरोप लगाया है और केंद्र से उनकी जगह कोई दूसरा मध्यस्थ नियुक्त करने की मांग की है। दरअसल, संगठन की नाराजगी बीते जून में रवि की टिप्पणियों से उपजी है। तब रवि ने राज्य सरकार को पत्र भेज कर संगठन पर अवैध गतिविधियों और वसूली में शामिल होने का आरोप लगाया था।

राज्यपाल के पत्र के जवाब में ही सरकार को एक सर्कुलर निकाल कर सरकारी कर्मचारियों से यह बताने को कहा कि किसी उग्रवादी संगठन से उनके परिजनों का कोई संबंध तो नहीं है या परिवार को कोई सदस्य एनएससीएन में शामिल तो नहीं है। शांति प्रक्रिया के तहत आखिरी दौर की बातचीत बीते साल अक्तूबर में ही खत्म होने का दावा किया गया था। लेकिन अब तक इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो सके हैं। दरअसल, केंद्र के तमाम दावों के बावजूद नागा संगठनों ने अब तक अलग संविधान और झंडे की मांग नहीं छोड़ी है।

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बढ़ी दूरियां

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीते कुछ महीनों के दौरान होने वाली घटनाओं ने दोनों पक्षों के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं। यही वजह है कि हर बार एक नया गतिरोध पैदा हो रहा है। देश में इससे पहले शायद ही किसी शांति प्रक्रिया में इतना लंबा समय लगा हो। लेकिन नागा शांति प्रक्रिया में अभी कई पेंच हैं। ऐसे में बहुत जल्दी कोई समाधान सामने आने की उम्मीद कम ही है।

विद्रोही नेता का बयान

नगा विद्रोही नेता टी. मुइवा के दिए गए ताज़ा बयान से लगता नहीं कि समझौते को अंतिम रूप दे पाना मुमकिन हो पाएगा। एनएससीएन (आई-एम) के प्रमुख टी. मुइवा ने कहा है कि नगा ध्वज और संविधान की मांग कायम रहेगी। मुइवा ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ नगालिम के 74 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर नगालैंड के लोगों को संबोधित करते हुए ये दावे किए हैं। मुइवा के लिए भाषण को सार्वजनिक करना भी असामान्य बात मानी जा रही है। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर पहले भी भाषण दिए हैं, लेकिन वे कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। मुइवा ने कहा, कि हम भारत के साथ सह-अस्तित्व की शक्तियों को साझा करेंगे लेकिन वे भारत में विलय नहीं करेंगे।

नागा सरकार से झंडा और संविधान नहीं मांग रहे थे

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नागा सरकार से झंडा और संविधान नहीं मांग रहे थे - दूसरी तरफ, ये हमेशा से उनके पास थे। हमारा अपना झंडा और संविधान है। झंडा और संविधान हमारी मान्यता प्राप्त संप्रभु इकाई और नगा राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। नगाओं को अपना झंडा और संविधान रखना चाहिए। मुइवा ने दावा किया कि गवर्नर रवि ने भी उनसे ऐसा ही वादा किया था। 31 अक्टूबर, 2019 को वार्ताकार आर एन रवि ने कहा था कि हम आपके ध्वज और संविधान का सम्मान करते हैं। हम यह नहीं कहते कि भारत सरकार ने उन्हें अस्वीकार कर दिया है, लेकिन हमें उन्हें जल्द से जल्द अंतिम रूप देना चाहिए। मुइवा ने कहा, हमने ध्वज और संविधान के बिना कोई सम्मानजनक समाधान नहीं देखते हुए अपना रुख दोहराया था।

इस समझौते में असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के सभी नागा बहुल क्षेत्रों के एकीकरण की शर्त बनी रहेगी। इस बयान से शांति प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है क्योंकि सरकार पहले अलग संविधान की माँग ठुकरा चुकी है और कह चुकी है कि असम, अरुणाचल और मणिपुर को ग्रेटर नागालिम के लिए विभाजित नहीं किया जाएगा। मोदी सरकार, जिसने फ्रेमवर्क समझौते को एक बड़ी सफलता के रूप में चिह्नित किया था, ने इस वर्ष सितंबर तक एनएससीएन (आई-एम) के साथ शांति समझौते की उम्मीद की थी।मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि एनएससीएन (आई-एम) ने यह भी स्पष्ट किया है कि रवि, जिन्होंने सरकार की ओर से 2015 के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हें आगे की बातचीत के लिए स्वीकार्य नहीं है।

ग्रेटर नागालिम

शांति वार्ता के जरिये औपनिवेशिक शासन के समय से चले आ रहे विवादों को निपटाने की कोशिश हो रही है। नागा एकल जनजाति नहीं है, बल्कि एक जातीय समुदाय है, जिसमें कई जनजातियाँ शामिल हैं, जो नागालैंड और उसके पड़ोस में रहते हैं। नागा समूहों की एक प्रमुख माँग ग्रेटर नगालिम की रही है जो न केवल नागालैंड राज्य बल्कि पड़ोसी राज्यों के हिस्सों और यहां तक कि म्यांमार के राज्यों को भी कवर कर सके।1826 में अंग्रेजों ने असम पर अधिकार कर लिया था, जिसमें बाद में उन्होंने नागा हिल्स ज़िला बनाया और अपनी सीमाओं का विस्तार किया। ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुआ नागा राष्ट्रवाद का जोर आज़ादी के बाद भी जारी रहा और नागालैंड राज्य बनने के बाद भी। इस तरह अनसुलझे मुद्दों ने दशकों के विद्रोह को जन्म दिया, जिसने नागरिकों सहित हजारों लोगों की जान ले ली।

1918 का नागा क्लब

नगा प्रतिरोध का सबसे पुराना संकेत नागा क्लब के गठन के साथ 1918 का है। 1929 में क्लब ने साइमन कमीशन को प्राचीन काल की तरह स्व-शासन निर्धारित करने के लिए खुद को अकेला छोड़ने के लिए कहा था।1946 में ए. जेड. फिज़ो ने नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) का गठन किया, जिसने 14 अगस्त, 1947 को नागा स्वतंत्रता की घोषणा की और फिर 1951 में एक जनमत संग्रह कराने का दावा किया, जिसमें भारी बहुमत ने एक स्वतंत्र राज्य का समर्थन किया।

नागा विद्रोह

1950 के दशक के प्रारंभ में एनएनसी ने हथियार उठा लिए और भूमिगत हो गया। एनएनसी 1975 में विभाजित हो गई। अलग हुआ समूह एनएससीएन कहलाया, जो बाद के वर्षों में फिर विभाजित हो गया। 1988 में एनएससीएन(आई-एम) और एनएससीएन (खापलांग) अस्तित्व में आए। 2015 से चल रहे वार्ता समझौते से पहले नगा समूहों और केंद्र के बीच दो अन्य समझौते हुए। 1975 में शिलांग में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए जिसमें एनएनसी नेतृत्व ने हथियार छोड़ने पर सहमति व्यक्त की। इसाक चिशी स्वू, थुइंगलेंग मुइवा और एस. एस. खापलांग सहित कई एनएनसी नेताओं ने समझौते को इनकार कर दिया। 1988 में एक और विभाजन हुआ, जिसमें खापलांग ने एनएससीएन (के) का गठन किया, जबकि इसाक और मुइवा ने एनएससीएन (आई-एम) का नेतृत्व किया।

नागा विद्रोह फिरः उलझी शांति वार्ता, बिगड़ते जा रहे हालात

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युद्ध विराम

एनएससीएन (आईएम) ने 1997 में सरकार के साथ एक युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए। प्रमुख समझौता यह था कि एनएससीएन (आईएम) के ख़िलाफ़ कोई उग्रवाद विरोधी आक्रमण नहीं होगा, जो बदले में भारतीय सेना पर हमला नहीं करेगा।

अगस्त 2015 में केंद्र ने एनएससीएन (आईएम) के साथ एक समझौता पर हस्ताक्षर किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत में सबसे पुराने उग्रवाद’ को निपटाने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता बताया था।इसने चल रही शांति वार्ता के लिए मंच तैयार किया। 2017 में नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स के बैनर के तहत छह अन्य नगा सशस्त्र संगठन बातचीत में शामिल हुए। सरकार ने अभी तक फ्रेमवर्क समझौते का सार्वजनिक रूप से विवरण नहीं दिया है। समझौते के बाद सरकार ने एक प्रेस बयान में कहा था कि भारत सरकार ने नागाओं के अद्वितीय इतिहास, संस्कृति और स्थिति और उनकी भावनाओं और आकांक्षाओं को मान्यता दी है।

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