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कोरोना संकट: सरकार ने माना, खतरे में 10 करोड़ नौकरियां
कोरोना और लॉकडाउन के कारण भारत में क़रीब 10 करोड़ नौकरियों पर ख़तरा पैदा हो गया है। लेकिन ये नहीं बताया गया कि कौन-कौन से सेक्टर ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
नई दिल्ली: कोरोना महामारी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गयी है। सरकारी कर्मचारियों के अलावा बाकी सभी पर घोर संकट छाया हुआ है। हालांकि रोजागर खोने वालों के लिए सरकार के पास अभी कोई योजना या मदद नहीं है। जानकारों का कहना है कि सरकार 'अनलॉक' करके अर्थव्यवस्था और रोजगार की स्थिति को स्वतः संभलने देना चाहती दिख रही है। सरकार ने माना है कि कोरोना के कारण 10 करोड़ नौकरियों पर खतरा पैदा हो गया है।
10 करोड़ नौकरियों पर संकट
वाणिज्य मंत्रालय से जुड़ी संसदीय स्थायी समिति की बैठक में सरकार के प्रतिनिधि ने कोरोना काल के दौरान देश में रोज़गार के हालात पर बताया है कि कोरोना और लॉकडाउन के कारण भारत में क़रीब 10 करोड़ नौकरियों पर ख़तरा पैदा हो गया है। लेकिन ये नहीं बताया गया कि कौन-कौन से सेक्टर ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं। बैठक में बताया गया कि भारत के बहुत लोग विदेशों में काम करते हैं और यहां पैसा भेजते हैं लेकिन कोरोना में इसकी कड़ी टूट गई है।
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इसका नतीज़ा ये होगा कि भारत को भेजे जाने वाले पैसों में कमी आएगी। बैठक में सरकार की ओर से बताया गया कि भारत की अर्थव्यवस्था काफ़ी हद तक अमेरिका, यूरोप और चीन से होने वाले निवेश और व्यापार पर निर्भर करती है। लेकिन कोरोना के कारण इन देशों से व्यापार और निवेश मे कमी आने की आशंका है। सरकार की कोशिश अब मेडिकल उपकरणों समेत अन्य महत्वपूर्ण सामानों के आयात की निर्भरता कम करने की है।
आई एल ओ की चेतावनी
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बैठक में बताया गया कि चीन ने अपने यहां बड़े पैमाने पर सामानों का स्टॉक जमा कर लिया है और उसकी कोशिश इन सामानों को निर्यात करने की है। इसके लिए चीन अपने निर्यातकों को सब्सिडी देने का भी फ़ैसला कर सकता है और भारत इसके बारे में काफ़ी सतर्क है। इस बीच, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने चेतावनी दी है कि अगर इस साल की दूसरी छमाही में कोरोना की एक और लहर आती है तो विश्व में करीब 34 करोड़ नौकरियां जाने का खतरा हो सकता है।
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आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक, साल की दूसरी तिमाही में वैश्विक कामकाजी घंटों में 14 फीसदी की गिरावट आई है, जो करीब 40 करोड़ नौकरियां खोने के बराबर है। यही नहीं, दूसरी छमाही में भी स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी रहेगी। क्षेत्रीय तौर पर देखें तो दूसरी छमाही में अमेरिका में 18.3 फीसदी, यूरोप व मध्य एशिया में 13.9 फीसदी, एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र में 13.5 फीसदी, अरब देशों में 13.2 फीसदी और अफ्रीका में 12.1 फीसदी कामकाजी घंटों का नुकसान हुआ है।