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भारत की विशालता का प्रतिबिंब होगा नया संसद भवन, बढ़ेगी सांसदों की संख्या

नए संसद भवन का निर्माण अक्टूबर 2022 तक पूरा करने की योजना है। टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने नये भवन के निर्माण के लिए टेंडर हासिल किया है। इसका निर्माण सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत किया जा रहा है।

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Published on: 18 Dec 2020 10:57 AM GMT
भारत की विशालता का प्रतिबिंब होगा नया संसद भवन, बढ़ेगी सांसदों की संख्या
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भारत की विशालता का प्रतिबिंब होगा नया संसद भवन, बढ़ेगी सांसदों की संख्या

योगेश मिश्र

लखनऊ। तीन तलाक़, धारा-370 जैसे कई क़ानूनों में रद्दोबदल करने वाली नरेंद्र मोदी सरकार सांसदों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रही है! नये संसद भवन के निर्माण की यह भी एक वजह हो सकती है क्योंकि पुराने भवन में अब और सांसदों के लिए जगह नहीं है। सरकार संसद सदस्यों, ख़ास तौर से निचले सदन की संख्या में बढ़ोतरी करना चाहती है। क्योंकि भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में महिलाओं के लिए तैंतीस फ़ीसदी आरक्षण की पुरज़ोर वकालत की थी। यही नहीं, अभी लोकसभा में सांसदों की संख्या उन्नीस सौ इकहत्तर की जनगणना के मुताबिक़ तय है। तब से 2011 तक देश की जनसंख्या में लगभग दोगुने का इज़ाफ़ा हुआ है।

एक सांसद करीब 16 लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है

अब वर्ष 2021 में नयी जनगणना होगी। तब तक जनसंख्या के एक अरब 40 करोड़ पहुँच जाने का अनुमान है। ऐसे में सांसदों की संख्या बढ़ाने के लिए परिसीमन एक्ट पर लगी रोक हटाने की दिशा में सरकार काम करती नज़र आ सकती है। इसके लिए भाजपा को लोकसभा व राज्यसभा में किसी के मदद की ज़रूरत नहीं होगी। अकेले एनडीए के बदौलत वह इन संशोधनों को पारित करा सकती है। फिलवक्त एक सांसद करीब 16 लाख मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है। ये संख्या दुनिया में सर्वाधिक है। सन 51 में एक सांसद औसतन 3 लाख 54 हजार मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता था।

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अटका पड़ा है महिला आरक्षण विधेयक

महिलाओं को विधानसभाओं और संसद में एक तिहाई आरक्षण विधेयक 2010 से लटका पड़ा है। महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108वां विधेयक मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में 2008 में पेश हुआ था। 9 मार्च, 2010 को यह विधेयक राज्यसभा में पारित हुआ मगर लोकसभा में पारित नहीं हो पाया। उसके बाद 2014 में लोकसभा भंग हो गई। उसके बाद से इसे पास कराने की कवायद नहीं की गयी चूंकि राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा माना जा सकता है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की बात कही है। ऐसे में मुमकिन है अब इस दिशा में गंभीर प्रयास किया जाए।

कोई भी संविधान संशोधन बिल पास करने के लिए संसद के दोनों सदनों में 50 फीसदी से अधिक सदस्यों का मत संशोधन के पक्ष में होना चाहिए। इसके अलावा दोनों सदनों में दो तिहाई सदस्य उपस्थित होने चाहिए और उनकी वोटिंग होनी चाहिए। ताजा स्थिति के अनुसार लोकसभा में एनडीए के 334 सदस्य हैं जिसमें भाजपा के 302 सदस्य हैं। राज्यसभा में एनडीए सदस्यों की संख्या 118 है, जिसमें भाजपा के 93 सदस्य हैं। सो भाजपा को महिला आरक्षण विधेयाक पास कराने में तनिक भी दिक्कत नहीं होगी।

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जनसंख्या के हिसाब से संसद की सीटें

जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के अनुसार लोकसभा में सीटें देश की जनसंख्या के हिसाब से तय की जाती हैं। नए संविधान के तहत पहले आम चुनाव वर्ष 1951-52 में हुए। पहली लोकसभा 17 अप्रैल 1952 को गठित हुई थी। उस सदन में कुल 489 सीटें थीं। पहले आम चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 17.3 करोड़ थी। 1951 की 489 सीटें बढ़ते बढ़ते 1971 में 543 हो गयी। यही आज तक कायम हैं।

दरअसल, 42वें संविधान संशोधन के तहत लोकसभा सीटों में बढ़ोतरी पर रोक लगा दी गयी थी। यह रोक संविधान के 84वें संशोधन के बाद 2026 तक के लिए बढ़ा दी गयी। सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार संविधान में संशोधन करने पर विचार कर रही है ताकि लोकसभा सदस्यों की संख्या में इज़ाफ़ा किया जा सके। इसके लिए अगले लोकसभा चुनाव से पहले इस रद्दोबदल को अंजाम देने का काम तेज होने की उम्मीद की जानी चाहिए। इसके लिए 2001 की जनगणना के आधार पर परिसीमन जो हुआ है, उसे 2021 की जनगणना पर किया जायेगा।

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आखिरी बार परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर हुआ

अनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए परिसीमन (डीलिमिटेशन) एक्ट में संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह हर राज्य में सभी निर्वाचन क्षेत्र में सांसद - मतदाता अनुपात समानता से बनाये रखने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन कर सकती है। आखिरी बार यह काम 2001 की जनगणना के आधार पर किया गया था। इसके बाद परिसीमन एक्ट 2002 में इस काम पर 2026 के बाद तक के लिए रोक लगा दी गयी। लोकसभा सदस्यों की संख्या 1976 से नहीं बढ़ाई गयी है। उस समय सीटों की संख्या का फैसला 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था। उस समय जनसँख्या 54 करोड़ 80 लाख थी।

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लोकसभा की संरचना

संविधान के अनुच्छेद 81 में लोकसभा के गठन को पारिभाषित किया गया है। इसके अनुसार सदन में निर्वाचित सदस्यों की संख्या 550 से ज्यादा नहीं होगी। जिसमें केंद्र शसित क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों की संख्या 20 से अधिक नहीं होनी चाहिए। अनुच्छेद 331 के तहत यदि राष्ट्रपति को लगता है कि सदन में एंग्लो इंडियन समुदाय का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो वे इस समुदाय के अधिकतम दो सदस्य मनोनीत कर सकते हैं। वर्तमान में लोकसभा के सदयों की संख्या 543 है जिसमें से 530 राज्यों को तथा बाकी केंद्र शासित क्षेत्रों को प्रदान किया गए हैं।

अनुच्छेद 81 में यह भी कहा गया है कि किसी राज्य को आबंटित लोकसभा सीटों की संख्या उस राज्य की जनसँख्या के ऐसे अनुपात में होगी ताकि वह अनुपात सभी राज्यों के लिए सामान हो। ये सभी राज्यों का समानता से प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। लेकिन ये गणित 60 लाख से कम जनसँख्या वाले राज्यों पर लागू नहीं होता। सो प्रत्येक राज्य को कम से कम एक सीट अवश्य दी गयी है। भले ही वहां जनसँख्या और सीट का अनुपात नियम के अंतर्गत न आता हो।

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भविष्य में लोकसभा में सीटें बढ़ें तो दिक्कत न हो

लोकसभा की स्ट्रेंग्थ हमेशा से 543 नहीं रही है। मूल रूप से अनुच्छेद 81 में कहा गया था कि लोक सभा में 500 से ज्यादा सदस्य नहीं होने चाहिए। चूँकि संविधान में सीटों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में रखने की बात कही गयी थी। सो 1971 तक राज्यों को सीटों का आबंटन बदलता रहा। 1976 में डीलिमिटेशन पर रोक लगा दी गई जो 2001 तक रही। लम्बे समय से न तो परिसीमन हुआ है और न लोकसभा सदस्यों की संख्या बढ़ाई गयी है सो ये काम अब करने का वक्त आ भी गया है। लोकसभा की नई इमारत में सदन के अंदर सीटों की संख्या को इसलिए बढ़ाया जा रहा है ताकि भविष्य में लोकसभा में सीटें बढ़ती भी हैं तो किसी तरह की दिक्कत न हो।

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2022 तक बन जाएगा नया संसद भवन

नए संसद भवन का निर्माण अक्टूबर 2022 तक पूरा करने की योजना है। टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने नये भवन के निर्माण के लिए टेंडर हासिल किया है। इसका निर्माण सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत किया जा रहा है। नई बिल्डिंग में हर सांसद के लिए अलग ऑफिस होगा और हर ऑफिस सभी आधुनिक डिजिटल तकनीकों से लैस होगा। नए संसद भवन में कॉन्स्टिट्यूशन हॉल, सांसद लाउन्ज, लाइब्रेरी, कमेटी रूम, भोजनालय और पार्किंग की व्यवस्था होगी। इस भवन में 1400 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की जाएगी।

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निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है

वर्तमान संसद भवन 8838 वर्ग मीटर में बना हुआ है। नई इमारत बनाने के लिए परिसर के अंदर ही 8822 वर्ग मीटर खाली जगह उपलब्ध है। ऐसे में नया भवन बनाने के लिए बाहर के किसी भवन को गिराए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। हालाँकि इसके निर्माण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अदालत ने अभी केवल आधारशिला रखने की इजाज़त दी है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को इस बात का भरोसा दिया है कि इससे संबंधित याचिकाओं पर जब तक सुप्रीम कोर्ट अपना फ़ैसला नहीं दे देती तब तक सरकार किसी भी तरह के निर्माण या तोड़-फोड़ का काम नहीं करेगी।

नए संसद भवन के निर्माण की अनुमानित लागत 971 करोड़ रुपये

नए संसद भवन के निर्माण की अनुमानित लागत 971 करोड़ रुपये आएगी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि नई इमारत देश की सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन करेगी। उम्मीद है कि आजादी की 75 वीं वर्षगांठ 2022 में नए संसद भवन में आयोजित होगी। बिरला ने कहा कि नई इमारत भूकंपरोधी होगी और नए भवन के निर्माण में 2000 लोग सीधे तौर पर और 9 हजार लोग अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होंगे। उन्होंने कहा है कि नई इमारत में 1,224 सांसद एक साथ बैठ सकते हैं। भविष्‍य में सांसदों की संख्‍या को बढ़ने के मद्देनजर नया भवन बनाया गया है, जबकि दोनों सदनों के सभी सांसदों के लिए एक नया कार्यालय परिसर मौजूदा श्रम शक्ति भवन में बनाया जाएगा। नए भवन में लोकसभा सदस्यों के लिए लगभग 888 सीटें होंगी और राज्यसभा सदस्यों के लिए 326 से अधिक सीटें होंगी।

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1921 में रखी गई थी मौजूदा भवन की नींव

मौजूदा इमारत ब्रिटिश युग की इमारत है, जिसे एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर द्वारा डिजाइन किया गया था। मौजूदा संसद भवन का नींव का पत्थर 12 फरवरी, 1921 को रखा गया था। इसके निर्माण में छह साल लगे थे। उस समय संसद भवन की लागत 83 लाख रुपये आई थी। उद्घाटन समारोह 18 जनवरी, 1927 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन द्वारा किया गया था। मौजूदा इमारत 560 फीट व्यास की एक विशाल गोलाकार इमारत है। पार्लियामेंट हाउस एस्टेट एक सजावटी लाल बलुआ पत्थर की दीवार या लोहे के गेट से घिरा हुआ है, जिसे अवसरों की मांग के अनुसार बंद किया जा सकता है।

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मौजूदा संसद भवन का इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए होगा

भवन में कुल बारह द्वार हैं। नई इमारत बनने के बाद मौजूदा संसद भवन का इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए किया जाएगा। ऐसी संभावना भी है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और उनके आवास को साउथ ब्लॉक के पास ले जाया जा सकता है। वहीं उपराष्ट्रपति के आवास को नॉर्थ ब्लॉक के पास ले जाया जा सकता है। प्रोजेक्ट के तहत उपराष्ट्रपति का मौजूदा आवास उन इमारतों में आता है जिन्हें गिराया जाना है। साथ ही नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को संग्रहालयों में बदल दिए जाने की योजना है।

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गुजरात की कंपनी ने बनाया है डिजाइन

इस प्रोजेक्ट का खाका गुजरात की एक आर्किटेक्चर फ़र्म एचसीपी डिज़ाइन्स ने तैयार किया है। कंसल्टेंट नियुक्त करने का टेंडर सीपीडब्ल्यूडी ने पिछले साल सितंबर में निकाला था। कंसल्टेंसी के लिए 229.75 करोड़ रुपये का खर्च तय किया गया था और इस बोली में एचसीपी डिजाइन को जीत हासिल हुई। एचसीपी डिजाइन के पास गुजरात के गांधीनगर में सेंट्रल विस्टा और राज्य सचिवालय, अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट डिवेलपमेंट, मुंबई पोर्ट कॉम्प्लेक्स, वाराणसी में मंदिर कॉम्प्लेक्स के रीडिवेलपमेंट, आईआईएम अहमदाबाद के नए कैंपस के डिवेलपमेंट जैसे कामों का पहले से अनुभव है।

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