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विरोध की आड़ में अपनी जमीन मजबूत कर रहे हैं नीतीश कुमार

जेडीयू के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने के फैसले पर बिहार में सियासत गर्म है। बिहार के सीएम और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने केंद्र में मोदी सरकार के अंदर अब कभी भी मंत्री पद नहीं लेने की बात कह कर संकेत दिया कि अब उनका दिल्ली नहीं, बल्कि पटना निशाना है।

Dharmendra kumar
Published on: 3 Jun 2019 4:45 PM IST
विरोध की आड़ में अपनी जमीन मजबूत कर रहे हैं नीतीश कुमार
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शराबबंदी के बाद नितीश का मास्टरस्ट्रोक, अब न कोई बेटी जलेगी, ना ही बाल विवाह होगा

पटना: जेडीयू के मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने के फैसले पर बिहार में सियासत गर्म है। बिहार के सीएम और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने केंद्र में मोदी सरकार के अंदर अब कभी भी मंत्री पद नहीं लेने की बात कह कर संकेत दिया कि अब उनका दिल्ली नहीं, बल्कि पटना निशाना है। वह अब पटना में बिग ब्रदर की भूमिका निभाए रखना चाहते हैं।

नीतीश कुमार ने मोदी मंत्रिमंडल में शामिल न होकर दूर का दांव खेला है। उनका यह दांव अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में बहुत काम आ सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट कहा है कि भविष्य में भी उनकी पार्टी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगी। ये मान कर चलिए कि विधानसभा चुनाव तक तो इसकी कोई संभावना नहीं हैं।

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हालांकि नीतीश कुमार ने बीजेपी से किसी भी नाराजगी को सिरे से खारिज कर दिया है। और कहा कि बिहार में हम साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर इसका कोई असर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि बिहार में भी गठबंधन की पहले भी और आज भी सरकार चल रही है।

पिछड़ों के पैरोकार बनना चाहते हैं नीतीश

कैबिनेट विस्तार के मुताबिक नीतीश कुमार पिछड़ों और अति पिछड़े वोटरों के बीच अपनी पकड़ मजबूत रखने के लिए सियासी संदेश देना चाह रहे हैं। राज्य में 50 फीसदी से अधिक पिछड़ा और अति पिछड़ों का वोट है। बीजेपी ने केंद्र में जिन पांच नेताओं को मंत्री बनाया है, उसमें चार मंत्री सवर्ण हैं और नित्यानंद राय के रूप में एकमात्र पिछड़े समुदाय के नेता हैं, जो यादव जाति से आते हैं।

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केंद्र में मात्र एक पद मिलने के बाद जेडीयू ने कैबिनेट में शामिल होने से मना कर दिया था। इसके बाद नीतीश कुमार ने मंत्री पद में आनुपातिक रूप से भागीदारी के साथ अपरोक्ष रूप से पिछड़ों को और जगह दिए जाने की वकालत की। जेडीयू के एक सीनियर नेता के अनुसार उनके 22 एमपी (16 लोकसभा और 6 राज्यसभा ) हैं और उन्हें उचित जगह मिलती तो वे पिछड़ों का अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व कर जिन वोटरों के समर्थन से जीत मिली उनका अभिवादन कर सकते थे।

बीजेपी और जेडीयी में इन मुद्दों पर मतभेद

बीजेपी और जेडीयू के बीच कई मुद्दों पर मतभेद है। लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने जो वायदे किए हैं चाहे वो धारा 370 हो या 35 ए हो या फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कराना। अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद ये तो साफ हैं कि मोदी सरकार इन मुद्दों के लेकर कितनी गंभीर है। जबकि जेडीयू और नीतीश कुमार को इन मुद्दों से परहेज है।

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सेक्युलर छवि बरकरार रखना चाहती है जेडीयू

बिहार में जेडीयू ने लोकसभा चुनाव-2019 में जो सीटें जीती हैं, उनमें से 9 सीटें ऐसी हैं जिन पर 2014 के आम चुनावों में बीजेपी को हार मिली थी। उन 9 सीटों में से 8 सीटें जेडीयू ने इस बार अपना परचम लहराया सिर्फ एक सीट किशनगंज कांग्रेस के खाते में गई। इनमें से ज्यादातर सीटें वो हैं जिन पर अल्पसंख्यकों की संख्या अच्छी खासी है। इसलिए जेडीयू नहीं चाहती है कि उसकी सेक्युलर छवि को नुकसान पहुंचे। अगर विधानसभा चुनाव के समय मुद्दों के आधार पर अगर गठबंधन का बदलाव होता है तो उसमें भी कोई दिक्कत न हो।



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Dharmendra kumar

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