×

हिंदू ही नहीं बौद्ध भी पूजते हैं पीपल

बोधि वृक्ष पीपल भारती जीवनशैली में अनादि काल से पुज्‍य रहा है। इसकी पूजा हिंदू ही नहीं बल्कि बौद्ध धर्मावलंबी भी करते हैं। वेदों में वर्णित इसकी महिमा, गुण व उपयोगिता वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरी उतरती है।

Roshni Khan
Published on: 13 Feb 2020 5:42 AM GMT
हिंदू ही नहीं बौद्ध भी पूजते हैं पीपल
X
हिंदू ही नहीं बौद्ध भी पूजते हैं पीपल

दुर्गेश पार्थ सारथी

अमृतसर: बोधि वृक्ष पीपल भारती जीवनशैली में अनादि काल से पुज्‍य रहा है। इसकी पूजा हिंदू ही नहीं बल्कि बौद्ध धर्मावलंबी भी करते हैं। वेदों में वर्णित इसकी महिमा, गुण व उपयोगिता वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरी उतरती है। दस पेड़ को ईश्‍वरीय विभूतियों व दैवीय शक्तियों से युक्‍त बताया गया है। देश के हर हिस्‍से में पाए जाने वाले इस वृक्ष को सभी जगह अपने-अपने विधि-विधान से पूजा जाता है। कई नामों जैसे अश्‍वत्‍थ, पिपल, चलपत्र, गजासन, बोधि तरु, चैत्‍यवक्ष, याज्ञिक, नागबंधु, पीपल अरली, देवसदन आदि नामों से जाना जाने वाला यह वृक्ष अंग्रेजी में सक्रेडफिगट्री के नाम भी पहचाना जाता है।

ये भी पढ़ें:PSA पर उमर अब्दुल्ला की सुनवाई से जज ने खुद को अलग किया, अगली सुनवाई कल

ऐतिहासिक प्रमाणों से स्‍पष्‍ट होता है कि मौर्य काल में इस वृक्ष को बहुत सम्‍मान दिया जाता था। हर गांव, नगर, कस्‍बे में स्थित देव स्‍थान पर पीपल का वृक्ष लगाया जाता था और उसके नीचे ऊंचा चबूतरा बनाया जाता था। उसके चबूतरे को थान की संज्ञा दी जाती थी। इसली थान पर लोग देवताओं की पूजा-उपासना किया करते थे। आज भी उत्‍तर प्रदेश, बिहार आदि राज्‍यों में यह परंपरा बर्करार है। पीपल की पूजा लोक आस्‍था के रूप में प्रचलित है।

बौद्ध, जैन एवं वैष्‍ण परंपरा में भी है पीपी का महत्‍व

लोक आस्‍था पर नजर डाले तो बौद्ध, जैन और वैष्‍णव परंपरा में पीपल की पूजा लोक आस्‍था के रूप में प्रचलित है। क्‍योंकि बोध गया में उरुवेला के निकट निरंजना नदी के तट पर पीपल के नीचे ही महात्‍मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

शनि देव निवास माना जाता है पीपल

यही नहीं शनि ग्रह की वक्र दृष्टि से पीडि़त व्‍यक्ति को ज्‍योतिषि और पंडित-पुजारी शनिवार के दिन पीपल को जल देने और पूजा करने की सलाह देते हैं। वर्तमान परिवेश में इसके प्रति लोगों में इतनी आस्‍था है कि इसे काटना या जलाना धार्मिक अपराध माना जाता है। मान्‍यता के अनुसार मात्र हवन करने के लिए ही इसका उपयोग किया जाता है।

गीता में कृष्‍ण ने बताया है महत्‍व

पीपल की महत्‍ता का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्‍ण ने गीता के दसवें अध्‍याय के २६वें श्‍लोक में कहा है- 'अश्‍वत्‍थ सर्व वृक्षाणाम।'

इसी प्रकार अथर्व वेद के अनुसार पीपल का वृक्ष देवों के रहने का स्‍थान है। कहीं-कहीं इसे ब्रह्माण्‍ड, विश्‍व, ज्ञान वृक्ष के रूप में भी वर्णित किया गया है। प्राचीन काल में आर्य लोग अपने शत्रुओं के विनाश के लिए इसकी विशेष रूप से उपासना किया करते थे।

ये भी पढ़ें:फिर जली मुंबई: 6 लोग बुरी तरह झुलसे, मौके पर मची अफरातफरी

पुराणों ने भी माना है पीपल का महत्‍व

शास्‍त्रों एवं पुराणों में इस वृक्ष को देववृक्ष बताया गया है। अत- स्‍पष्‍ट है कि यह सभी वृक्षों में पवित्र और श्रेष्‍ठ माना गया है। इसी कारण इसे हमारे ऋषि-मुनियों ने पूज्‍य बताया है।

पीपल के पत्‍ते की आकृति का है भारत रत्‍न भी

जनमानस में प्रचलित है कि इसकी पूजा से जहां मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं यह भूत बाधा और शनि प्रकोप से भी बचाता है। और तो और दिया जाने वाला देश का सर्वोच्‍च पुरस्‍कार भारत रत्‍न (चिह्न) भी पीपल के पत्‍ते की आकृति का होता है।

Roshni Khan

Roshni Khan

Next Story