अब बनेगा हिमालय का पहला जियोथर्मल एनर्जी प्लांट, होगी बिजली ही बिजली

हिमालय की श्रृंखला में खूबसूरत झरनों की कोई कमी नहीं है। उत्तराखंड में इन्हीं झरनों से अब बिजली पैदा करने की तैयारी है। हिमालय और पर्वत श्रंखलाओं पर काम करने वाले प्रतिष्ठित संस्थान वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान ने ये योजना तैयार की है।

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Published on: 24 Sep 2020 7:59 AM GMT
अब बनेगा हिमालय का पहला जियोथर्मल एनर्जी प्लांट, होगी बिजली ही बिजली
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अब बनेगा हिमालय का पहला जियोथर्मल एनर्जी प्लांट, होगी बिजली ही बिजली (social media)

देहरादून: हिमालय की श्रृंखला में खूबसूरत झरनों की कोई कमी नहीं है। उत्तराखंड में इन्हीं झरनों से अब बिजली पैदा करने की तैयारी है। हिमालय और पर्वत श्रंखलाओं पर काम करने वाले प्रतिष्ठित संस्थान वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान ने ये योजना तैयार की है।

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ग्रीन इनर्जी के रूप में जियोथर्मल इनर्जी का प्लांट स्थापित करने की तैयारी भी कर ली है

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने जियोथर्मल तकनीक के आधार पर न सिर्फ ऐसे झरनों की खोज की है, बल्कि ग्रीन इनर्जी के रूप में जियोथर्मल इनर्जी का प्लांट स्थापित करने की तैयारी भी कर ली है। प्लांट की क्षमता पांच मेगावाट की होगी और यह हिमालयी क्षेत्र का पहला जियोथर्मल एनर्जी प्लांट भी होगा। हिमालयी क्षेत्र के इस पहले जियोथर्मल प्लांट की क्षमता 5 मेगावाट तय की गयी है।

वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साई ने मीडिया से बताया

वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साई ने मीडिया से जानकारी साझा करते हुए बताया कि पावर प्लांट लगाने के लिए चमोली के जोशीमठ स्थित तपोवन के झरने को चुना गया है। यहां पर सतह का तापमान करीब 93 डिग्री सेल्सियस है, जबकि जमीन के भीतर यही तापमान 150 डिग्री सेल्सियस तक है। पावर प्लांट लगाने के लिए जमीन में करीब 400 मीटर तक ड्रिल किया जाएगा। इससे गर्म पानी अधिक फोर्स के साथ बाहर निकलेगा। प्लांट के जरिये गर्म पानी की भाप से बिजली तैयार की जाएगी।

संस्थान जियोथर्मल एनर्जी की दिशा में 10 साल से शोध कर रहा था

पानी को महज 70 डिग्री तापमान में ही उबालने वाली स्थिति में पहुंचाने वाले प्रोपेन व बाइनरी लिक्विड के मिश्रण का प्रयोग किया जाएगा। इससे पहले से अधिक गर्म पानी बिजली उत्पादन के लिए जल्द अधिक भाप पैदा करेगा। निदेशक डॉ. कालाचंद ने बताया कि संस्थान जियोथर्मल एनर्जी की दिशा में 10 साल से शोध कर रहा था। जियोथर्मल तकनीक के जरिये इस काम को अंजाम देने में संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. संतोष कुमार राय व डॉ. समीर के तिवारी ने अहम भूमिका निभाई। प्रोजेक्ट तैयार करने की अवधि पांच साल रखी गई है।

electricity electricity (social media)

वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साई ने बताया

वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद साई ने बताया कि 1970 में तपोवन के पानी का जो तापमान था, वही आज भी बरकरार है। यहां के पानी में प्रति लीटर 30 मिलीग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड निकल रहा है।

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इतना ही नहीं इस बेहद ख़ास झरने के पानी में बोरोन (600 से 30 हजार माइक्रो इक्यूवेलेंट), हीलीयम (90 मिलीग्राम प्रतिलीटर) व लीथियम (50 से 3550 माइक्रो इक्यूवेलेंट) जैसे तत्व भी हैं जिसको संस्थान के वैज्ञानिक संरक्षित करने की तैयारी कर रहे हैं।

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