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कहां जाएंगे एनआरसी से बेदखल लोग?
असम: नेशनल सिटिजन्स रजिस्टर यानी एनआरसी की कवायद पूरी हो चुकी है। १९ लाख से ज्यादा लोग एनआरसी से बाहर रह गए हैं और इनका अब क्या होगा ये स्पष्टï नहीं है। केंद्र सरकार का कहना है कि एनआरसी सूची से बाहर रह गए लोगों को फिलहाल न तो डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा और न ही विदेशी माना जाएगा। इस वादे के बावजूृद संदेह जताया जा रहा है कि यह सूची देश की सबसे बड़ा मानवीय त्रासदी पैदा कर सकती है। हालांकि एनआरसी में शामिल होने की लड़ाई हार जाने के बाद ऐसे लोगों के समक्ष अब विदेशी न्यायधिकरणों में जाकर खुद को भारतीय साबित करने की बेहद जटिल चुनौती है।
इतनी बड़ी तादाद में लोगों के एनआरसी से बाहर रहने की वजह से ही सत्तारूढ़ बीजेपी से लेकर कांग्रेस और दूसरे तमाम गैर-सरकारी व मानवाधिकार संगठन एनआरसी में विसंगितयों के आरोप लगा रहे हैं। कुछ संगठन सुप्रीम कोर्ट जाने की भी तैयारी कर रहे हैं। अजीब बात ये भी है कि कोई भी पक्ष एनआरसी के अंतिम नतीजे से खुश नहीं है। न तो बीजेपी और न ही दूसरे दल या संगठन। बीजेपी का कहना है कि बड़ी संख्या में घुसपैठिए बच गए हैं जबकि दूसरे दलों का कहना है कि भारत के नागरिकों को सूची से बाहर कर दिया गया है। बीजेपी को एनआरसी की कवायद से बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम सामने आने की उम्मीद थी लेकिन इस सूची से बाहर रहने वालों में ज्यादातर हिंदू है।
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एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर हुए 19 लाख लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनकी नागरिकता का फैसला अब कब कैसे होगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय और असम सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि एनआरसी की सूची से बाहर हुए लोगों को हिरासत में नहीं लिया जाएगा। ऐसे लोग पहले विदेशी न्यायधिकरण में अपील कर सकते हैं और वहां अनुकूल फैसला नहीं होने की स्थिति में वे लोग हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की शरण में भी जा सकते हैं।असम सरकार ने एनआरसी से बाहर रहे लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता देने का एलान किया है। इन मामलों में आम लोगों की सहायता करने के लिए 200 वकीलों का एक समूह बनाया गया है। नागरिकता कानून 2003 के नियम संख्या आठ के तहत एनआरसी से बाहर रहे लोगों को फिलहाल विदेशी नहीं माना जाएगा। लेकिन सवाल ये भी है कि जब तमाम दस्तावेजों के बावजूद नागरिकता साबित नहीं हुई तो अब न्यायधिकरणों के सामने पेश करने के लिए नए दस्तावेज कहां से लाए जाएंगे।
बहरहाल, जिनके नाम एनआरसी से बाहर हैं सरकार ऐसे लोगों को नोटिस भेजेगी। नोटिस मिलने के 120 दिनों के भीतर वह लोग विदेशी न्यायाधिकरण के सामने अपील कर सकते हैं। जिन लोगों के पास वैध कागजात होंगे उनको मुफ्त कानूनी सहायता दी जाएगी। केंद्र व राज्य सरकार बार बार कहते रहे हैं कि एनआरसी से बाहर रहने वाले लोगों को तत्काल राज्यविहीन या विदेशी घोषित कर हिरासत में नहीं लिया जाएगा। असम सरकार अगले तीन महीने में दो सौ नए विदेशी न्यायधिकरणों की स्थापना करेगी। असम सरकार के गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि इस साल के आखिर तक राज्य में विदेशी न्यायधिकरणों की संख्या बढ़ा कर 521 तक की जाएगी। इस बीच, सरकार न्यायाधिकरणों में भी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाने वाले लोगों को रखने के लिए 11 नए डिटेंशन सेंटर बना रही है। राज्य की छह जेलों को पहले ही डिटेंशन सेंटरों में बदला जा चुका है। वहां नौ सौ से ज्यादा लोग रह रहे हैं। ग्वालपाड़ा के मतिया इलाके में लगभग 46 करोड़ की लागत से असम का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर बनाया जा रहा है। इसमें तीन हजार लोगों को रखने की व्यवस्था होगी।
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असम की एनआरसी से बाहर लोगों में ज्यादातर बंगाली हिंदू हैं। बाकी लोगों में नेपाली, मारवाड़ी और जनजातीय समुदाय के लोग भी शामिल हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा सरकार एक बार फिर से राज्य में नागरिकता बिल लाने की कोशिश करेगी, ताकि सूची से बाहर हुए हिंदू लोग राज्य के नागरिक बने रहें। पिछली बार राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण नरेंद्र मोदी सरकार ये बिल पास नहीं करा सकी थी। उस समय असम के लोगों ने इस बिल का विरोध किया था। 2016 का नागरिकता संशोधन बिल 1955 के बिल में संशोधन की बात करता है। इस बिल के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से गैर-कानूनी रूप से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी लोगों को भारत का नागरिक माना जाएगा। अगर यह बिल आ गया तो एनआरसी की सूची से बाहर हुए हिंदू लोगों को राज्य का नागरिक मान लिया जाएगा। जिसके बाद सिर्फ मुस्लिम लोगों को ही बाहरी कहा जाएगा।
असम में एनआरसी की अंतिम सूची बाद पश्चिम बंगाल में भी इसे लागू करने की चर्चा तेज हो गयी है। प्रदेश भाजपा का कहना है कि असम के बाद पश्चिम बंगाल दूसरा सबसे बड़ा प्रदेश है, जो मुस्लिम घुसपैठियों की समस्या से प्रभावित है। यह घुसपैठिये शुरू से ही पश्चिम बंगाल में राजनीति के अहम मुद्दे रहे है। पहले इन घुसपैठियों का राजनीतिक लाभ माकपा उठाती थी। इसके बाद यह लाभ तृणमूल कांग्रेस उठाने लगी है।
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी पर कड़ा रुख अपना लिया है। उन्होंने कहा कि राज्य की तृणमूल सरकार बंगाल में एनआरसी लागू करने की अनुमति नहीं देगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से एनआरसी को लागू किया है। उन्होंने विधानसभा में नियम 185 के तहत एनआरसी पर एक प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कहा कि हमलोग भाजपा को एनआरसी बंगाल में नहीं लागू करने देंगे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पूरे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को तहस-नहस करने में जुटी हुई है। इसके खिलाफ सभी विपक्षी दलों को एकजुट होकर आंदोलन छेडऩा होगा। विपक्ष के सामने भाजपा के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आंदोलन ही एकमात्र विकल्प है। मुख्यमंत्री ने एनआरसी के विरुद्ध विधानसभा में कांग्रेस और वाममोर्चा के समर्थन से सरकार की ओर से लाए गए संयुक्त प्रस्ताव पर बहस के जवाबी भाषण में केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला। इस मुद्दे पर बहस के बाद प्रस्ताव पारित हो गया।