TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

यहां चूहों पर खर्च कर दिए गये डेढ़ करोड़ रूपये, वजह जान रह जायेंगे दंग

पश्चिम रेलवे से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। रोज चूहों को मारने के लिए रेलवे ने तीन साल में 1.52 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च कर दिए। इस खुलासा एक आरटीआई रिपोर्ट में हुआ है।

Aditya Mishra
Published on: 11 Dec 2019 11:35 AM IST
यहां चूहों पर खर्च कर दिए गये डेढ़ करोड़ रूपये, वजह जान रह जायेंगे दंग
X

नई दिल्ली: पश्चिम रेलवे से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। रोज चूहों को मारने के लिए रेलवे ने तीन साल में 1.52 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च कर दिए। इस खुलासा एक आरटीआई रिपोर्ट में हुआ है।

मामला कुछ यूं है कि मुंबई में पटरियों पर दौड़ रही ट्रेनों के पीछे बड़ा जटिल तंत्र है। एक सिग्नल प्रणाली को चलाने के लिए हजारों बारीक तारें लगी होती हैं। इनमें से यदि एक भी कट हो जाए, तो सिग्नल ठप, मतलब मुंबई ठप हो जाएगी।

इस तरह ज्यादातर तारें चूहे काट देते हैं। इन चूहों का खात्मा करने के लिए रेलवे को रोडेंट कंट्रोल करना पड़ता है। इसके लिए पश्चिम रेलवे ने पिछले तीन सालों में 1.52 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। खास बात यह है कि इतना खर्च करके भी रेलवे तीन सालों में केवल 5,457 चूहों को ठिकाने लगा सकी है।

ये भी पढ़ें...रेलवे ने उठाया बड़ा कदम, दिया 32 अधिकारियों को जबरन रिटायरमेंट, जानिए पूरी बात

डेढ़ करोड़ खर्च कर रोजाना औसतन 5 चूहे मारे

तीन सालों में पश्चिम रेलवे ने रोडेंट कंट्रोल के लिए 1,52,41,689 रुपये खर्च किए हैं। यदि इसे प्रत्येक दिन के हिसाब से बांटे, तो रोजाना औसतन 14 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। इतने रुपये खर्च करने के बाद रोजाना औसतन 5 चूहे मरे हैं।

पश्चिम रेलवे से यह जानकारी आरटीआई से मांगी गई थी। जवाब में रेलवे ने बताया कि ट्रेनों के कोच और यार्ड में रोडेंट कंट्रोल का काम हुआ है। यह काम करने के लिए ठेकेदारों की नियुक्ति होती है।

पश्चिमी रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी रविंदर भाकर ने कहा कि इस तरह का निष्कर्ष निकालना अनुचित है। उन्होंने कहा, "कुल खर्च की मारे गए चूहों से तुलना करना अनुचित है।

अगर हम यह देखें कि कुल मिलाकर हमने क्या प्राप्त किया है तो यह आंकड़ा निर्धारित नहीं किया जा सकता है। इन सभी फायदों में से एक यह भी है कि पिछले दो सालों में पहले के मुकाबले चूहों के तार काट देने की वजह से सिग्नल फेल होने की घटनाओं में कमी आई है। "

ये भी पढ़ें...रेलवे के GM से मिलने जा रहे कांग्रेसियों पर RPF सिपाही ने भांजी लाठियां

चूहों के खतरे को नियंत्रित करने के लिए एजेंसियों की मदद

रेलवे कोच और यार्ड में कीटों और कुतरने वाले जानवरों जैसे चूहों के खतरे को नियंत्रित करने के लिए रेलवे विशेषज्ञ एजेंसियों की सेवाएं लेता है। ये एजेंसियां रेलवे रोलिंग स्टॉक, स्टेशन परिसर और आसपास के यार्ड में पेस्ट छिड़काव करके कीटों और चूहों की समस्या पर नियंत्रण रखती हैं।

कीटों और चूहों की समस्या पर प्रभावशाली नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न तकनीक अपनाई जाती है, जैसे- चमगादड़, गोंद बोर्ड, कुछ अप्रूव किए गए केमिकल और जाल आदि का इस्तेमाल किया जाता है।

कीटनाशक छिड़काव के उद्देश्य से प्रत्येक ट्रेन के लिए एक शेड्यूल तैयार किया गया है। कीटनाशक के छिड़काव से पहले ट्रेन के हर कोच में पहले ड्राई स्वीपिंग यानी झाड़ू लगाई जाती है।

पैंट्री कार को 48 घंटों के लिए किया जाता है सील

प्रभाव बढ़ाने के लिए तय समय पर केमिकल बदल दिया जाता है। पैंट्री कार के मामले में प्लेटफॉर्म पर पूरा कोच खाली करा लिया जाता है, अच्छे से सफाई की जाती है, कोच में धुआं किया जाता है और फिर पैंट्री कार को 48 घंटों के लिए सील कर दिया जाता है।

यह सब निश्चित समय के अंतराल पर किया जाता है। रेलवे को लगता है कि कीटों और चूहों की इस नियंत्रण प्रक्रिया के कारण उसे अब तक काफी फायदा हुआ है रेलवे का कहना है कि हाल के वर्षों में कीटों और चूहों की समस्या की वजह से आने वाली यात्री शिकायतों में लगातार कमी आई है।

इसके अलावा संपत्ति को नुकसान से बचाने में भी सफलता मिली है, जैसे कि रोलिंग स्टॉक, सिग्नलिंग इंस्टॉलेशन, यात्रियों के सामान आदि नुकसान से बचे हैं। रेलवे को यह सफलता पेस्ट कंट्रोल के जरिए मिली है।

ये भी पढ़ें...रायबरेली : रेलवे ट्रैक के पास मिला अज्ञात युवक का शव, हत्या की आशंका

रेलवे ने दिया ये जवाब

रेलवे का यह भी मानना है कि जगह- जगह पेस्ट कंट्रोल छिड़काव की वजह से चूहों और कीटों ने परिसर में प्रवेश नहीं किया है, इसलिए रेलवे के पास मारे गए चूहों की सही संख्या उपलब्ध नहीं है। यात्रियों को अब जो आसानी हो रही है, उसकी तुलना करने के लिए रेलवे के पास मारे गए चूहों के सही आंकड़े नहीं हैं।



\
Aditya Mishra

Aditya Mishra

Next Story