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One Nation One Election: मोदी सरकार के लिए संसद की परीक्षा पास करना आसान नहीं, आखिर क्या है लोकसभा और राज्यसभा का गणित
One Nation One Election: इसी साल शीतकालीन सत्र में पीएम मोदी संसद में एक देश एक चुनाव बिल ला सकती है।
One Nation One Election: मोदी सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ के लिए कमर कस ली है। इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इससे जुड़े विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसके बाद माना जा रहा है कि मोदी सरकार संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में ही विधेयक से जुड़े कानूनी मसौदे को पेश कर सकती है। विभिन्न दलों के बीच व्यापक सहमति बनाने के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जा सकता है।
वैसे विपक्षी दलों के तेवर को देखते हुए लोकसभा और राज्यसभा में इस विधेयक को पारित कराना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं होगा। लोकसभा में इसे पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत के हिसाब से 362 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी जबकि एनडीए के पास 293 सांसदों का ही समर्थन है। इसी तरह राज्यसभा में इसे पारित करने के लिए 154 सांसदों का समर्थन जरूरी होगा जबकि सत्तारूढ़ खेमे के पास 6 मनोनीत और दो निर्दलीय सांसदों को मिलाकर कुल 121 सांसदों का ही समर्थन है। ऐसे में मोदी सरकार को इस विधेयक को पारित कराने के लिए बड़ी परीक्षा देनी होगी।
पीएम मोदी सबसे बड़े पैरोकार
भाजपा देश में एक साथ चुनाव कराने की सबसे बड़ी पैरोकार रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने पिछले कार्यकाल से ही ‘एक देश एक चुनाव’ पर जोर देते रहे हैं। इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए मोदी सरकार ने पिछले साल दो सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने कई बैठकों के बाद गत मार्च में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। सरकार ने सितंबर महीने के दौरान इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया था।
अब तीन महीने बाद मोदी कैबिनेट की ओर से इस महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दी गई है। सरकार की ओर से विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद इसे लेकर हलचल तेज हो गई है। इसके पक्ष और विपक्ष में तरह-तरह के तर्क दिए जाने के बाद इस मुद्दे को लेकर बहस तेज हो गई है।
One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे और नुकसान
लोकसभा में सरकार के सामने क्या है मुश्किलें
वैसे यह विधेयक जेपीसी को भेजे जाने की उम्मीद है जिसके जरिए सरकार विपक्ष की शंकाओं का निवारण करने की कोशिश करेगी। वैसे इस विधेयक को संसद में पारित कराना आसान नहीं माना जा रहा है। कोविंद कमेटी के सामने जिन पार्टियों ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के कदम का समर्थन किया था उन पार्टियों के सांसदों की संख्या 271 ही है। वैसे केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार के पास 293 सांसदों की ताकत है। इनमें चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई वाले टीठीपी के सांसद भी शामिल हैं।
इस संख्या बल के आधार पर इस विधेयक का लोकसभा में पारित होना नामुमकिन है। अगर वोटिंग के समय सभी सांसद मौजूद रहते हैं तो लोकसभा में इस विधेयक को पारित कराने के लिए दो तिहाई संख्या बल यानी 362 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी। ऐसे में मोदी सरकार के लिए 69 सांसदों का समर्थन जुटाना आसान नहीं होगा। वैसे यह तय माना जा रहा है कि विधेयक को रोकने के लिए विपक्ष की ओर से वोटिंग के समय लोकसभा में पूरी ताकत लगाई जाएगी।
राज्यसभा का गणित भी सरकार के पक्ष में नहीं
दूसरी ओर राज्यसभा का गणित भी सरकार के पक्ष में नहीं दिख रहा है। राज्यसभा की कुल संख्या 245 सदस्यों की है जबकि मौजूदा समय में राज्यसभा में 234 सदस्य हैं। मौजूदा समय में भाजपा के पास 96 सांसदों की ताकत है। यदि एनडीए की बात की जाए तो उसके पास कुल 113 सांसद है। इन सदस्यों के अलावा छह मनोनीत सदस्य हैं जिन्हें सरकार समर्थक माना जाता है। सरकार को दो निर्दलीय सांसदों का भी समर्थन हासिल है।
ऐसे में राज्यसभा में सरकार समर्थक सांसदों की संख्या 121 है। ‘एक देश,एक चुनाव’ विधेयक को दो तिहाई बहुमत से पारित कराने के लिए सरकार को 154 सांसदों के समर्थन की जरूरत है। इसका मतलब है कि सरकार को राज्यसभा में 33 वोटों की व्यवस्था करनी होगी।
बीजू जनता दल, बीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों एनडीए और इंडिया दोनों खेमों में शामिल नहीं है। इन पार्टियों के पास 19 सांसदों की ताकत है। अगर यह मान लिया जाए कि इन पार्टियों के सांसद विधेयक का समर्थन करेंगे तो भी सरकार दो तिहाई बहुमत की संख्या से पीछे रह जाएगी। दूसरी ओर इंडिया ब्लॉक की बात की जाए तो उसके पास 85 सांसदों की ताकत है। विपक्ष को निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल का समर्थन भी हासिल हो सकता है। एडीएमके के चार सांसदों के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। बसपा मुखिया मायावती के रुख को देखते हुए बसपा के एक सांसद की ओर से भी इसका विरोध किए जाने की संभावना है।
One Nation One Election: भारत में पहले भी हुए हैं एकसाथ चुनाव
कौन पार्टी है पक्ष में और कौन खिलाफ
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कहना है कि ‘एक देश एक चुनाव’ के मुद्दे पर चर्चा के दौरान 32 राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 15 पार्टियों ने विरोध जताया था। कोविंद के मुताबिक इन 15 दलों में से कई ने अतीत में कभी न कभी एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया था।
पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराने के समर्थन में सत्ताधारी एनडीए में शामिल पार्टियों के अलावा बीजू जनता दल (बीजद), अकाली दल और गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी ने राय दी थी। मोदी सरकार के इस कदम का विरोध करने वाले प्रमुख दलोः में कांग्रेस, आप, डीएमके, सीपीआई, सीपीएम, बीएसपी, टीएमसी और सपा शामिल थीं।
विरोध करने वाले दलों ने आशंका जताई कि इसे अपनाने से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन हो सकता है और यह लोकतंत्र विरोधी और संघीय व्यवस्था के विरुद्ध हो सकता है। उन्होंने यह आशंका भी जताई थी कि इससे क्षेत्रीय दल हाशिए पर जा सकते हैं। हालांकि भाजपा और मोदी सरकार की ओर से इन विचारों को पूरी दमदारी से खारिज किया जाता रहा है।
पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने खोला मोर्चा
एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर विपक्ष शासित पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी मुखिया ममता बनर्जी ने मोदी सरकार पर तीखा हमला करते हुए इस कदम को असंवैधानिक और संघीय व्यवस्था के खिलाफ बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सत्ता को केंद्रीय कृत करने और भारत के लोकतंत्र को कमजोर बनाने के लिए यह कदम उठाया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि विशेषज्ञ और विपक्षी नेताओं की हर वैऋ चिंता को केंद्र सरकार ने नजरअंदाज कर दिया है। उन्होंने कहा कि संसद में उनकी पार्टी के सांसद इस काले कानून का जमकर विरोध करेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने कहा कि सरकार पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात करती है मगर वह दो राज्यों में ही एक साथ चुनाव कराने में असमर्थ है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि केंद्र सरकार का यह कदम अव्यवहारिक और लोकतंत्र विरोधी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे भाजपा का एजेंडा बताते हुए कहा कि इसके निहितार्थों को देखे जाने की जरूरत है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने ‘एक देश एक चुनाव’ को संसदीय लोकतंत्र और देश के संघीय ढांचे पर हमला बताया है। उन्होंने कहा कि यह कदम राज्यों के अधिकारों पर अंकुश लगाने की भयावह साजिश है।