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पंजाब में 35 साल पहले हुआ था ऑपरेशन ब्लू स्टार, जानिए पूरी कहानी

आज यानी 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी है। सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए साल 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था।

Dharmendra kumar
Published on: 6 Jun 2019 8:51 AM GMT
पंजाब में 35 साल पहले हुआ था ऑपरेशन ब्लू स्टार, जानिए पूरी कहानी
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नई दिल्ली: आज यानी 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 35वीं बरसी है। सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए साल 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया था। इसके बाद से धार्मिक प्रार्थनाएं आयोजित होती है।

भारतीय सेना ने 5 जून को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश किया था। सिखों के इस सर्वाधिक पूजनीय स्थल पर सेना के अभियान को आपरेशन ब्लू स्टार नाम दिया गया था।

दरअसल देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देश के सबसे खुशहाल राज्य पंजाब को उग्रवाद के दंश से छुटकारा दिलाना चाहती थीं, लिहाजा उन्होंने यह सख्त कदम उठाया और खालिस्तान के प्रबल समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले का खात्मा करने और सिखों की आस्था के पवित्रतम स्थल स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त करने के लिए यह अभियान चलाया।

समूचे सिख समुदाय ने इसे हरमंदिर साहिब(स्वर्ण मंदिर) की बेअदबी माना और इंदिरा गांधी को अपने इस कदम की कीमत अपने सिख अंगरक्षक के हाथों जान गंवाकर चुकानी पड़ी।

भारत का सबसे संपन्न राज्य पंजाब दो साल से सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहा था। तेजतर्रार ग्रंथी जरनैल सिंह भिंडरांवाले के नेतृत्व में सिखों के एक विद्रोही गुट ने जंग छेड़ रखी थी। 37 साल के भिंडरांवाले के हथियारबंद साथी 1984 तक 100 से ज्यादा आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की जान ले चुके थे।

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भारतीय खुफिया एजेंसी को सूचना मिली थी कि बड़ी संख्या में इन आतंकवादियों में ऐसे थे जिन्होंने पाकिस्तान में रहकर सेना के साथ हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली थी। पाकिस्तान ने भी भारत सरकार के खिलाफ शुरू हुए इस आंतरिक विद्रोह को मौका समझकर इन अलगाववादियों की खूब मदद की।

इस बीच 1983 में जरनैल सिंह भिंडरेवाला आतंकियों का धर्मगुरु पूरी तरह स्वर्ण मंदिर को अपने कब्जे में ले चुका था। उसी के संरक्षण में सरकार से लड़ाई की पूरी रणनीति चल रही थी। भिंडरावाले ने हरमंदिर साहब को पूरी तरह अपना अड्डा बना लिया।

फरवरी 1984 में स्पेशल ग्रुप के सदस्य श्रद्धालुओं और पत्रकारों के वेश में स्वर्ण मंदिर में घुसकर आसपास का सारा नक्शा देख आए।

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अप्रैल 1984 में खुफिया तंत्र से सूचना के बाद इंदिरा गांधी ने पंजाब और असम में आतंकवादियों से मुकाबला के लिए गुप्त रूप से स्पेशल ग्रुप या एसजी नाम की एक यूनिट तैयार की। सेना के छह जांबाज अधिकारियों को इजरायली कमांडो फोर्स सायरत मतकल के खुफिया अड्डे पर पहुंचाया गया। तेलअवीव के पास स्थित इस अड्डे पर इन सैनिक अधिकारियों की सड़कों, इमारतों और गाडिय़ों के बड़ी सावधानी से बनाए गए मॉडलों के बीच आतंक से लड़ने की 22 दिन तक ट्रेनिंग चली।

ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले सेना ने प्रोजेक्ट ऑपरेशन सनडाउन की तैयारी की थी। इसके तहत सेना के ब्लैक कमांडोज़ सूरज ढ़लने के बाद खुफिया तरीके से स्वर्ण मंदिर में घुसकर वहां आतंकियों का खात्मा कर देते। हेलिकॉप्टर में सवार कमांडोज को स्वर्ण मंदिर के पास गुरु नानक निवास गेस्ट हाउस में उतारने की योजना थी। उसके बाद वहां से भिंडरावाले को उठा ले जाते। पर इंदिरा गांधी ने उस दौरान इस प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी। इसके बाद शुरू हुई ऑपरेशन ब्लू स्टार की तैयारी।

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1 जून 1984 को सीआरपीएफ और बीएसएफ ने गुरु रामदास लंगर परिसर पर घुसकर फायरिंग शुरू कर दी। सेना के आदेश पर हुई इस फायरिंग में 8 लोग मारे गए।

2 जून, 1984 को इंडियन आर्मी ने सभी अंतरराष्ट्रीय सीमा सील कर दी। पंजाब के गांवों में सेना के 7 बटालियन को तैनात कर दिया गया। मीडिया कवरेज पर रोक लगा दी गई। पंजाब में रेल, रोड और हवाई सेवाएं ठप हो गईं। पानी और बिजली की सप्लाई तक रोक दी गई। किसी के भी बाहर जाने या अंदर आने की पाबंदी थी।

3 जून, 1984 को पूरे पंजाब में कर्फ्यू था। सेना और पैरामिलिट्री गश्त बढ़ाने लगी। मंदिर परिसर से लगे सभी रास्ते सील हो गए थे।

4 जून, 1984 को सेना ने एतिहासिक रामगढिया बंगा पर बमबारी शुरू की। इस दौरान 100 से ज्यादा लोग मारे गए। एसजीपीसी के पूर्व प्रमुख गुरुचरण सिंह तोहड़ा को भिंडरवाले से बातचीत के लिए भेजा गया। बातचीत नाकाम रही और फायरिंग फिर शुरू हुई।

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5 जून, 1984 को सुबह होते ही हरमंदिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर परिसर के भीतर गोलीबारी शुरू हो गई। सेना की 9वीं डिविजन ने अकाल तख्त पर सामने से हमला कर दिया। इंतजार सूरज ढलने का था। रात साढ़े दस बजे के बाद 20 ब्लैक कमांडोज चुपचाप स्वर्ण मंदिर में दाखिल हुए। उन्होंने नाइट विजन चश्मे, एम-1 स्टील हेल्मेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहनी थीं। सभी के पास एमपी-5 सबमशीनगन और एके-47 राइफल थीं। हर कमांडो शार्पशूटर, गोताखोर और पैराशूट के जरिए विमान से छलांग लगाने में माहिर था और 40 किलोमीटर की रफ्तार से मार्च कर सकता था। उनमें से कुछ ने गैस मास्क पहन रखे थे और योजना आंसू गैस, सीएक्स गैस के गोले छोड़ने की थीं। ताकि कम से कम नुकसान में इस ऑपरेशन को खत्म किया जा सके।

6 जून, 1984 को सुबह चार बजे तीन विकर-विजयंत टैंक को भी तैनात कर दिया गया। उन्होंने 105 मिलिमीटर के गोले दागकर अकाल तख्त की दीवारें उड़ा दीं। फिर कमांडो और पैदल सैनिक धरपकड़ के लिए घुस गए।

सुबह छह बजे रक्षा राज्यमंत्री केपी सिंहदेव ने आरके धवन के निवास पर फोन किया। उन्होंने इंदिरा गांधी तक यह संदेश पहुंचाने को कहा कि ऑपरेशन कामयाब रहा, लेकिन बड़ी संख्या में सैनिक और असैनिक मारे गए।

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7 जून 1984 को सेना ने हरमंदिर साहिब परिसर यानी स्वर्ण मंदिर पर पूरी तरह कब्जा कर लिया।

10 जून 1984 को दोपहर तक पूरा ऑपरेशन सेना खत्म कर चुकी थी। 31 अक्टूबर, 1984: देशभर में सिखों के अंदर विद्रोह की आग लग चुकी थी। इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद सिख विरोधी दंगे देशभर में हुए।

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