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मजदूरों का दर्द : मौत भी आये तो अपने गाँव की मिट्टी में

SK Gautam
Published on: 18 May 2020 12:15 PM IST
मजदूरों का दर्द : मौत भी आये तो अपने गाँव की मिट्टी में
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लखनऊ : वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ, मैं था पागल जो इसको बुलाता रहा, चार पैसे कमाने मैं आया शहर गाँव मेरा मुझे याद आता रहा। ये दर्द है हर उस मजदूर का जो इस वक्त अपनी मिट्टी में वापस जाना चाहता है और इसके लिए बिना थके बिना रुके बस चलता जा रहा है।

मौत भी आये तो अपने गाँव की मिट्टी में

लेकिन सफ़र है कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। लेकिन फिर भी ये मजदूर चले जा रहे हैं कि अगर मौत भी आये तो अपने गाँव की मिट्टी में आये।

1- जोश और जूनून में कोई कमी नहीं, हर कदम के साथ हौसला और भी मजबूत होता है।

2- खाना सबको मिलना चाहिए।

3- जहां भी मिले पानी, पिया भी और स्टोर भी किया, जल ही जीवन है।

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4- खुद का ख़याल रखने के साथ भविष्य का भी रखना है ख्याल।

5- लटककर भी जाना पड़े तो हम जायेंगे अपने गाँव।

6- पूरा परिवार एक साथ।

7- सफ़र में विराम आवश्यक है क्योंकि तभी मिलेगा आराम और पूरी होगी नींद।

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8- सफ़र में कभी-कभी चक्के पे चक्का हो ही जाता है।

9- थकान में बहुत गहरी नींद आती है।

मजदूरों का पलायन नहीं रूक रहा

यह तस्वीरें उन प्रवासी मजदूरों की हैं जो शहरों को छोड़ अपने गाँव-घर के लिए निकल पड़े हैं। देश में लॉक डाउन का चौथा चरण आज से शुरू हो चुका है। फिर भी, अभी इन प्रवासी मजदूरों का पलायन नहीं रूक रहा है। उन सरकारों से, चाहे राज्य की हों या फिर स्टेट की, हजारों प्रश्न करती हुई इन तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया है हमारे कैमरामैन आशुतोष जी ने।

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