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अल्लाह पर मचा घमासान! अब एंटी हिंदू होने की होगी जांच, ये है पूरा मामला
नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में इस कविता का इस्तेमाल हो रहा है, इस बीच आईआईटी कानपुर ने एक जांच कमेटी बनाई है। ये कमेटी इस बात को जांचेगी कि क्या फैज़ की ये नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं? ये जांच नज्म की ‘बस नाम रहेगा अल्लाह का…’ की पंक्ति की वजह से हो रही है।
नई दिल्ली: बात बहुत पुरानी है, बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान में सियासत उभरने लगी तो शुरुआत से ही आम लोगों पर जुल्म होने लगा, तभी से फैज पाकिस्तान की सत्ता के खिलाफ लिखते रहे। लेकिन साल 1977 में जब पाकिस्तान में तख्तापलट हुआ और सेना प्रमुख जियाउल हक ने सत्ता को अपने कब्जे में ले लिया तब फैज़ की कलम से निकली ‘हम देखेंगे’।
बता दें कि पाकिस्तानी शायर फैज़ अहमद फैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे’ पर इन दिनों काफी विवाद हो रहा है। नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ जारी प्रदर्शनों में इस कविता का इस्तेमाल हो रहा है, इस बीच आईआईटी कानपुर ने एक जांच कमेटी बनाई है। ये कमेटी इस बात को जांचेगी कि क्या फैज़ की ये नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं? ये जांच नज्म की ‘बस नाम रहेगा अल्लाह का…’ की पंक्ति की वजह से हो रही है। जानें कि फैज ने ये कविता क्यों लिखी थी।
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फैज पाकिस्तान की सत्ता के खिलाफ लिखते रहे
फैज अहमद फैज की नज्म, शायरी और गजलों में बगावती सुर दिखते हैं। बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान में सियासत उभरने लगी तो शुरुआत से ही आम लोगों पर जुल्म होने लगा, तभी से फैज पाकिस्तान की सत्ता के खिलाफ लिखते रहे। लेकिन साल 1977 में जब पाकिस्तान में तख्तापलट हुआ और सेना प्रमुख जियाउल हक ने सत्ता को अपने कब्जे में ले लिया तब फैज़ की कलम से ‘हम देखेंगे’ निकली।
बता दें कि फैज़ अहमद फैज़ के पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ अच्छे संबंध थे, जब वह विदेश मंत्री बने तो उन्हें लंदन से वापस लाया गया। इसके बाद पाकिस्तान में उन्हें कई बड़ी जिम्मेदारियां दी गईं, जिनका संबंध लिटरेचर से था। उन्हें कल्चरल एडवाइज़र भी बनाया गया। लेकिन जब 1977 में तत्कालीन आर्मी चीफ जिया उल हक ने वहां तख्ता पलट किया तो फैज़ अहमद फैज़ काफी दुखी हुए।
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जिया उल हक को तब हिरासत में लिया गया, उसके बाद काफी वक्त तक वह जेल में ही रहे। कुछ समय बाद वो बाहर निकले तो चुनाव की तैयारियां शुरू हुईं, लेकिन जिया उल हक देश में चुनाव की तारीखों को टालते रहे। कुछ साल बाद 1979 में जुल्फीकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गई। जब फैज ने 'हम देखेंगे' को कागज पर उतारा।
यहां पढ़ें फैज अहमद फैज की नज्म-
हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
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इकबाल बानो ने अमर कर दी फैज की नज्म
फैज अपने जाने के बाद और भी ज्यादा पढ़े गए। उनकी जिस नज्म पर हिंदुस्तान में सवाल हो रहे हैं वह नज्म उनकी मौत के एक साल बाद पाकिस्तान में जुल्मी हुकूमत के खिलाफ बगावत और प्रतिरोध का नारा बन गई थी। लाहौर के स्टेडियम में पाकिस्तान की मशहूर गजल गायिका इकबाल बानो ने 50 हजार लोगों की मौजूदगी में 'हम देखेंगे' नज्म को गाकर इसे अमर कर दिया था। तब से लेकर आज तक इसे हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों मुल्कों के कई गायक अपनी आवाज दे चुके हैं।