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विभाजन का दर्द: इधर भी, उधर भी

बेशक भारत को आजाद हुए 73 साल हो गए लेकिन, इसी के साथ वह गहरा जख्‍म मिला जिसे देश के इतिहास में भारत विभाजन के नाम से जाना जाता है।

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Published on: 21 July 2020 1:33 PM GMT
विभाजन का दर्द: इधर भी, उधर भी
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दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: बेशक भारत को आजाद हुए 73 साल हो गए लेकिन, इसी के साथ वह गहरा जख्‍म मिला जिसे देश के इतिहास में भारत विभाजन के नाम से जाना जाता है। जब-जब 15 अगस्‍त आता है तब-तब पंजाब, राजस्‍तान बंगाल और गुजरात के लोगों के वह जख्‍म हरे हो जाते हैं जो पाकिस्‍तान के काएदे आजम जिन्‍ना की जिद की वहज से मिला था।

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ऐसा नहीं है कि इस जख्‍म से सरहद के इस पार के लोग ही कराह रहे हैं। यह जख्‍म सरहद के उसपार भी है। अपनी और उनकी कराह को भारत विभाजन पर बनी फिल्‍मों में महसूस कर सकते हैं। खास तौर से वह लोग जो दोनों देशों में 1947 के बाद पैदा हुए।

1949 में बनी पाकिस्‍तानी फिल्‍म 'फेरे'

भारत विभाजन के करीब दो साल बाद एक 1949 में पाकिस्‍तानी फिल्‍मकारों ने फिल्‍म 'फेरे' का निर्माण किया। संभवत: बटवारे के बाद यह पाकिस्‍तान की पहली फिल्‍म थी । कहा जाता है कि उस समय 65000 रुपये में बनी 'फरे' पाकिस्‍तान की पहली ऐसी फिल्‍म थी जिसने सिल्‍वर जुबली मनाया। इस फिल्‍म के मुख्‍य किरदारों में स्‍वर्ण लता और नजीर थे। स्‍वर्ण लता के बारे में कहा जाता है कि वह सिख परिवार से थीं जिन्‍होंने बाद में इस्‍लाम कबूल कर सईदा बन गईं थी।

हलांकि इससे पहले 7 अगस्त, 1948 को रिलीज हुई फिल्‍म 'तेरी याद' को पहली पाकिस्‍तानी फिल्‍म कहा जाता है। दाउद चंद द्वारा निर्मित इस फिल्‍म में दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर खान और आशा पोसले ने मुख्‍य भूमिका निभाई थी। कहता जाता है कि ये दोनों फिल्‍में भारत-पाक विभाजन पर आधारित थीं।

''लाहौर'' थी विभाजन पर बनी भारत की पहली फिल्‍म

विभाजन की विभिषिका को भारतीय फिल्‍मकारों ने पहली बार 1949 में सिल्‍वर स्‍क्रीन पर दिखाया। एमएल आनंद के निर्देश में बनी फिल्‍म ''लाहौर'' में नरगिस और करन दिवान ने मुख्‍य भूमिका निभाई थी। इस फिल्‍म की कहानी एक प्रेमी-प्रेमिका के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें दिखाया जाता है कि देशविभाजन के वक्‍त एक लड़की का कुछ बलवाई अपहरण कर उसे पाकिस्‍तान में रख लेते हैं जबकि उसका प्रेमी भारत आ जाता है। बाद में वह अपनी प्रेमिका (नरगिस) को लेने पाकिस्‍तान चला जाता है।

1959 में बनी पंजाबी फिल्‍म ''करतार सिंह''

पाकिस्‍तानी फिल्‍म 'फेरे' और भारतीय फिल्‍म 'लाहौर' के करीब दस साल बाद पाकिस्‍तानी सिनेमाघरों में '' करतार सिंह'' रिलीज हुई। पाकिस्‍तान में बनी यह फिल्‍म मूलत: पंजाबी भाषा की फिल्‍म थी। सैफुद्दीन के निर्देशन में बनी यह फिल्‍म्‍ा भारत पाकिस्‍तान बटवारे पर बनी कुछ फिल्‍मों में से एक है जिसे लोगों ने काफी पंसद किया। बता दें कि पाकिस्‍तान के अधिकांश हिस्‍सों में आज भी पंजाबी बोली जाती हैं और वहां भी भारत की ही तरह पंजाब एक सूबा है। 'करतार'' का कथानक भी भारतीय फिल्‍म '' बजरंगी भाई जान'' से कुछ-कुछ मिलती है। या यूं कहें कि 'करतार सिंह'' की कहानी से ' बजरंगी भाईजान' की कहानी प्रेरित है। पाकिस्‍तानी फिल्‍म '' करतार सिंह' में अविभाजित भारत पंजाब के एक गांव की कहानी को रेखांकित किया गया है। इस गांव में विभाजन से पहले हिंदू, सिख और मुसलमान मिल-जुल कर शांति से रहते हैं। इस गांव का सबसे सम्मानित व्यक्ति वहां का वैद्य प्रेम नाथ (ज़रीफ़) है।

द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल होने वाला उमर दीन जो एक मुसलमान है और छोटी-मोटी चोरी और फसाद करने वाला करतार सिंह इस गांव के कुछ अन्य मुख्य लोग हैं। गांव में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के बाद उमर दीन और और उसकी प्रेमिका (मसरत नज़ीर) को पाकिस्तान पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है। करतार सिंह की उमर दीन से, जो अब बॉर्डर पुलिस में काम कर रहा है, हाथापाई होती है। उमर दीन उसे ज़ख्मी कर देता है, लेकिन उसे जाने देता है। उमर दीन का भाई भारत में फंस जाता है। उसे प्रेम नाथ पनाह देता है।

करतार सिंह दोनों भाइयों को मिलाने के लिए उसे लेकर सरहद पर जाता है. लेकिन वहां उमर दीन यह सोचकर उसे गोली मार देता है कि करतार सिंह फिर कोई फसाद करने के लिए आया है।

इसी तरह 1967 में एक और पाकिस्‍तानी फिल्‍म आई '' लाखों में एक'। इस फिल्‍म का निर्देश रजा मीर ने किया था। इस फिल्‍म में विभाजन के 20 साल बाद की कहानी को दिखाया गया है।

मुस्‍लमानों के अंतर द्वंद्व को दिखाती गर्म हवा

देश विभाजन की टीस भारतीय साहित्‍यकारों के साथ-साथ फिल्‍मकारों इस कदर थी कि उन्‍होंने सिनेमा और समाज को एक से बढ़ कर एक फिल्‍में दी। इनमें से 1973 में बनी फिल्‍म 'गर्म हवा' थी। पूरी तरह से देश विभाजन पर आधारित इस फिल्‍म में एक तरफ प्रेम कहानी दिखाई गई तो दूसरी तरफ एक नया देश पाकिस्‍तान बनने के बाद भारत में रह गए मुस्‍लमानों के अंतर द्वंद्व व दंश को प्रदर्शित किया गया है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि किसी जिन्‍ना की जिद के आगे पाकिस्‍तान बनने के बाद दो प्रेमी भी सरहद के इसपार-उसपार में बंट जाते हैं।

'तमस' में दिखी दंगों की तस्‍वीर

वर्ष 1987 में आई हिंदी फिल्‍म 'तमस' भारत-पाकिस्‍तान विभाजन पर आधारित थी। यह फिल्‍म प्रसिद्ध लेखक भिष्‍म साहिनी के उपन्‍यास 'तमस' पर अधारित थी। तमस मूलत: पंजाबी उपन्‍यास है। इसका हिंदी में भी रूपांतरण भी किया जा चुका है। मशहूर फिल्‍मकार गोबिंद निहलानी के निर्देशन में बनी इस फिल्‍म में दिखाया गया है कि देश विभाजन के दौरान किसी तरह से कुछ तथाकथित लोग दंगों को भड़काते हैं। इस फिल्‍म में खुद भिष्‍म साहिनी, ओम पुरी और एके हैंगल ने शानदार अभिनय किया है। देश विभाजन पर बनी फिल्‍मों में इस फिल्‍म को काफी सराहा जाता है। हलांकि इससे पहले 1986 में इसी नाम (तमस) से गोविंद निहलानी दूरदर्शन के लिए धारावाहिक भी बना चुके हैं।

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'गांधी' और 'हे राम' भी दिखाती हैं विभाजन का दर्द

बेन किंग्‍सले अभिनित 1982 में आई 'गांधी' और साल 2000 में रिलीज हुए कमल हासन के निर्देशित में बनी 'हे राम' भी देश विभाजन पर आधारित थी। फिल्‍म गांधी में देश के आजादी आंदोलन से लेकर देश विभाजन और महात्‍मा गांधी हत्‍या तक को दिखाया गया है। इस फिल्‍म बेन किग्‍सले हूबहू गांधी की तरह लगते हैं। इसमें गांधी और पटेल के बीच उभरे मतभेद और नाथू राम गोडसे से गांधी की हत्‍या को भी दिखा गया है।

जबकि ' गांधी ' के करीब 18 साल बाद आई हेमा मालीनी, रानी मुखर्जी और शहरूख खान अभिनित 'हे राम' में भी देश विभाजन के दर्द को महसू किया गया है।

रावलपिंडी के दंगों पर आधारित 'ट्रेन टू पाकिस्‍तान'

यह फिल्‍म प्रसिद्ध पत्रकार स्‍वर्गीय खुशवंत सिंह के अंग्रेजी उपन्‍यास पर आधारित है। पंजाबी पृष्‍ठभूमि पर बनी 'ट्रेन टू पाकिस्‍तान' में भी भारत विभाजन की तस्‍वीर को पर्दे पर उतारा गया है। कहा जाता है कि यह उपन्‍यास विभाजन के दौरान रावलपिंडी (अब पाकिस्‍तान) में हुए दंगों और वहां से ट्रेनों में भर अमृतसर भेजी गई लाशों को केंद्रित कर लिखा गया था। इस फिल्‍म में भी विभाजन के दंश के साथ-साथ एक जुलाहे की लड़की और सिख युवक की प्रेम कहानी दिखाई गई है।

महिलाओं के कसक की कहानी है 'पिंजर'

डॉ: चंद्र प्रकाश द्विवेदी के निर्देश में बनी यह फिल्‍म पंजाबी की मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के उपन्‍यास 'पिंजर' पर आधारित है। उर्मिला मांतोडकर, मनोज बाजपेयी और संजय सूरी अभिनित यह फिल्‍म देश विभाजन पर आधारित है। पंजाब की पृष्‍ठभूमि पर आधारित इस फिल्‍म की कहानी में दिखाया गया है कि देश के बटवारे के वक्‍स एक युवती किसी तरह से अपने परिवार से बिछड़ जाती है। उसे किसी धर्म का युवक अपने पास रखता है और उससे शादी करता। इस पूरी फिल्‍म में बटवारे की विभिषीका झेल रही महिलाओं के अंतरद्वंद्व की कहानी है। आज भी पंजाब में बहुत औरतें मिल जाएंगी जिनके परिजन बटवारे के वक्‍त पाकिस्‍तान चले गए थे और उन्‍हे सिख या हिंदू परिवारों में रहना पड़ा।

फिल्‍म 'गदर एक प्रेम कथा' जिसने भी देखी होगी उसे आज भी इस फिल्‍म के डॉयलाग, गीत और कहानी याद होगी। इस फिल्‍म की शूटिंग लखनऊ, अमृतसर और पठानकोट में हुई थी। सनी देयोल और अमीसा पटेल अभिनित यह फिल्‍म भी भारत-पाकिस्‍तान बटवारे पर आधारित है। इसमें यह दिखाया जाता है कि बटवारे के समय मचे कत्‍ल-ओ-गारद के बीच एक सिख युवक किसी तरह से मुस्लिम युवती को बचाता है बाद में उनदोनो का प्रेम होता है।

इसी तरह भारत विभाजन पर ही आधारित गुरिंदर चड्ढा के निर्देशन में बनी फिल्‍म ' पार्टीशन 1947'' आई थी। हिंदी और अंग्रेजी में बनी यह फिल्‍म मूल रूप से 'फ्रिडम एट मिडनाइट'' किताब पर आधारित थी। करीब एक घंटे 46 मिनट की इस फिल्‍म में भारत विभाजन की दास्‍तान को दिखाया गया है। इस फिल्‍म के मुख्‍य कलाकारों में हुमा कुरैशी, ह्मुबोनविल, मनीष दयाल गिलियन एडरसन, ओम पुरी और राज जुत्‍शी जैसे कलाकारों ने अभिनय किया था। इसी फिल्‍म को अंग्रेजी में '' द वायसरॉय हाउस'' नाम से बनाया गया है। इस फिल्‍म में आलिया और जीत सिंह के बीच प्रेम कहानी को दिखाया गया है। फिल्‍म मुख्‍य हुमाखान कहती हैं कि उनके दादा भी भारत विभाजन के दौरान लाहौर से इधर आए। उनका घर लाहौर के पास ही एक गांव में था।

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दोनो देशों में रिलीज हुई थी 'खामोश पानी'

साल 2003 में एक बार फिर भारत-पाकिस्‍तान संबंधों पर आधारित फिल्‍म आई ''खामोश पानी''। यह फिल्‍म दोनों देशों में एक साथ रिलीज की गई थी। इस फिल्‍म का निर्देशन किया था साहिब सुमर ने। इस फिल्‍म की भी काफी सराहना हुई थी।

हलांकि भारत-पाकिस्‍तान विभाजन पर जितने अधिक नावल और कहानियां ऊर्दू और पंजाबी क‍थाकारों ने लिखी है शायद फिल्‍में उतनी नहीं बन पाई हैं। भारत विभाजन पर फिल्‍में बनना इस लिए जरूरी हो जाता है कि भारत विभाजन के बाद जन्‍मे लोग खास तौर आज के युवा उस दौर की विभिष्किा को देखें । क्‍योंकि आज देख विभाजन के गवाहर रहे लोग उम्र के आखिरी पायदान पर हैं जो उस उस समय का आंखों देखा हाल हमें सुनाते हैं।

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