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सोने के अंडे देने वाली मुर्गी है पेट्रोल-डीजल, GST के बदले मुआवजा चाहते हैं राज्य
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के तहत लाने का सुझाव दिया लेकिन राज्यों ने इसका खुलकर विरोध किया।
नीलमणि लाल
लखनऊ। पेट्रोल और डीजल की आसमान छोटी कीमतों को नीचे लाने के लिए इन उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की वकालत की जा रही है। चूँकि राज्य पेट्रोल-डीजल पर अपने हिसाब से टैक्स लगाते हैं सो उनकी बम्पर कमाई होती है, ऐसे में क्या वो इनको जीएसटी के अंतर्गत लाने को तैयार होंगे, ये बहुत बड़ा सवाल है।
जब 2017 में पेट्रोल-डीजल के दाम तेजी से बढे थे और खूब हल्ला मचा था तब भी यही मांग उठी थी। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के तहत लाने का सुझाव दिया था लेकिन राज्यों ने इसका खुलकर विरोध किया था। राज्यों का कहना था कि ऐसा कदम उठाने से उनके राजस्व पर बहुत विपरीत असर पड़ेगा।
पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के तहत लाने की योजना
पहली जुलाई 2017 से देश में जीएसटी व्यवस्था लागू हुई थी और उसके पहले राज्य के वित्त मंत्रियों के साथ पेट्रोल-डीजल के मसले पर विस्तृत चर्चा हुई थी। राज्यों के वित्त मंत्री इस बात पर सहमत हुए थे कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स और शराब को जीएसटी व्यवस्था से बाहर रखा जाये। ये आइटम राज्यों के राजस्व का आधा हिस्सा लाते हैं।
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उसी समय पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में शामिल किया गया था लेकिन पांच पर जीएसटी नहीं लगाई गई थी, जिनमें कच्चा तेल, प्रकृतिक गैस, विमानन ईंधन, डीजल और पेट्रोल शामिल है। इसका मतलब यह हुआ कि जीएसटी परिषद जब भी चाहेगी इसे जीएसटी के दायरे में ला सकती है और इसके लिए संविधान में संशोधन भी नहीं करना होगा।
राज्य फ्यूल को GST के दायरे में लाने का शुरू से विरोध कर रहे
2017 में राजस्थान में भाजपा की सरकार थी और वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री थीं और उनके पास वित्त का भी पोर्टफोलियो था। सितम्बर 2017 में राजस्थान के प्रतिनिधि राजपाल सिंह शेखावत ने कहा था कि पेट्रोलियम पदार्थों और शराब को जीएसटी के तहत लाना न तो प्रासंगिक और और न उपयुक्त है।
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उत्तर प्रदेश की बात करें तो तत्कालीन कमर्शियल टैक्स कमिश्नर ने ईंधन पर टैक्स घटाने की संभावना से इनकार किया था। उनका तर्क था कि अन्य राज्यों की तुलना में यूपी में पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम है। उन्होंने स्वीकार किया था कि कम टैक्स का मतलब राज्य को नुक्सान है। अब 2021 में भी यूपी सरकार का यही तर्क है कि अन्य राज्यों की अपेक्षा यूपी में पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम है।
राज्य सरकारों ने केंद्र से GST के बदले मुआवजा चाहा
महाराष्ट्र ने भी उस समय पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने का विरोध किया था जबकि केरल के वित्त मंत्री टीएम थॉमस ने कहा था कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के तहत लाने के केंद्र के प्रस्ताव को स्वीकार करने का सवाल ही नहीं उठता है। इसी तरह बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक ने भी विरोध किया था और कहा था कि जब तक केंद्र, राज्यों की पर्याप्त क्षतिपूर्ति नहीं करेगा वे पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को जीएसटी में लाने की बात नहीं मानेंगे।
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क्या है ताजा स्थिति
2017 में जब से जीएसटी देश में लागू हुआ है तभी से पेट्रोल और डीजल को इसके दायरे में लाने की बात हो रही है और राज्यों का विरोध जैसा तब था वैसा ही अब भी है। यूं तो राज्य सरकारों को पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर आपत्ति नहीं हैं लेकिन इसके लिए वे केंद्र से समुचित मुआवजा तंत्र चाहते हैं।
केंद्र राज्यों की तुलना में पेट्रोल से दोगुनी कमाई कर रहा
पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा है कि इस मुद्दे पर चर्चा की जा सकती है लेकिन केंद्र संभवत: इस पर इच्छुक नहीं होगा क्योंकि वह पेट्रोल और डीजल पर करों से काफी ज्यादा कमाई कर रहा है और इसे राज्यों के साथ साझा भी नहीं करना होता है।
उन्होंने कहा - पेट्रोल के मामले में केंद्र राज्यों की तुलना में दोगुना और डीजल पर तीन गुना कमाई कर रहा है।
केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने कहा है कि इस मसले का फॉर्मूला एक ही है। ईंधन को जीएसटी में लाने पर राज्य को होने वाले कर नुकसान की भरपाई की जाए। अगर ऐसा होता है तो हम तैयार हैं। परिषद की बैठक में इस पर चर्चा होने दें। लेकिन मुआवजे पर राज्यों के साथ मिलकर व्यवस्था बनानी होगी।
ईंधन को जीएसटी के दायरे में लाने पर राज्यों को नुकसान नहीं होना चाहिए
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंह देव जीएसटी परिषद की बैठकों में राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका कहना है कि ईंधन को जीएसटी के दायरे में लाने पर राज्यों को नुकसान नहीं होना चाहिए। टैक्स में बराबर हिस्सा मिलने के साथ ही राज्यों को सीजीएसटी में भी अतिरिक्त 41 फीसदी मिले।
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देव ने कहा कि राज्यों को अभी जो राजस्व मिल रहा है, उसमें कमी नहीं आनी चाहिए। अगर छत्तीसगढ़ को ईंधन पर कर से अभी 3,000 करोड़ रुपये मिल रहे हैं तो जीएसटी के तहत यह कम नहीं होना चाहिए और आने वाले वर्षों में यह बढऩा चाहिए।
पेट्रोल-डीजल पर बम्पर कमाई
वहीं पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में तकरीबन 70 फीसदी हिस्सा टैक्स व सेस का होता है। यानी, पेट्रोल और डीजल केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई का एक बड़ा स्रोत है। बीते 3 साल में केंद्र और राज्य सरकारें करीब 14 लाख करोड़ रुपये की कमाई पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कर चुकी हैं।
केंद्र सरकार फिलहाल पेट्रोल पर 32.90 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 31.80 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी ले रही है। मार्च 2020 से अबतक पेट्रोल की खुदरा कीमत 20.29 रुपये प्रति लीटर बढ़ चुकी है। वहीं, डीजल 17.98 रुपये प्रति लीटर महंगा हुआ है। पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में प्रति रुपये इजाफे से सरकारी खजाने में तकरीबन 14 हजार करोड़ रुपये सालाना की बढ़ोतरी होती है।
पेट्रोल-डीजल पर वैट लगाने से कमाई 43 फीसदी बढ़ी
राज्यों को पेट्रोल-डीजल पर वैट लगाने से होने वाली कमाई 5 साल में 43 फीसदी बढ़ी है। वित्त वर्ष 2014-15 में इससे होने वाली कमाई 1.37 लाख करोड़ थी जो 2019-20 में बढ़कर 2 लाख करोड़ पर पहुंच गई। लॉकडाउन के बावजूद चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में वैट से 78 हजार करोड़ की कमाई हुई है।
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पेट्रोलियम प्रोडक्ट पर एक्साइज ड्यूटी लगाकर केंद्र सरकार ने 2019-20 में 3.34 लाख करोड़ रुपए कमाए। मई 2014 में पहली बार जब मोदी सरकार बनी थी तब 2014-15 में एक्साइज ड्यूटी से 1.72 लाख करोड़ कमाई हुई थी, यानी सिर्फ 5 सालों में ही ये दोगुनी हो गई।
मणिपुर में वैट सबसे ज्यादा
पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा वैट मणिपुर लेता है। यहां पेट्रोल पर 36.50 फीसदी और डीजल पर 22.50 फीसदी टैक्स लिया जा रहा है। इससे पहले सबसे ज्यादा वैट राजस्थान में ही था। बड़े राज्यों में तमिलनाडु में वैट कम है। यहां पेट्रोल पर 15 फीसदी और डीजल पर 11 फीसदी टैक्स लिया जाता है। लेकिन पेंच यह है कि यहां वैट के साथ पेट्रोल पर 13.02 रुपए और डीजल पर 9.62 रुपए प्रति लीटर सेस (उपकर) भी वसूला जाता है। ज्यादातर राज्य सेस ले रहे हैं। लक्षद्वीप एक मात्र ऐसा राज्य है जहां वैट नहीं लिया जाता है।