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मोदी और आजाद की भावुकता के सियासी मायने, दोनों के आंसुओं से शुरू कयासबाजी

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देने के बाद पीएम मोदी ने मंगलवार को लगातार दूसरे दिन राज्यसभा को संबोधित किया। जम्मू कश्मीर के चार सांसदों को राज्यसभा से विदाई देते समय पीएम मोदी काफी भावुक हो गए।

Shivani Awasthi
Published on: 10 Feb 2021 6:21 AM GMT
मोदी और आजाद की भावुकता के सियासी मायने, दोनों के आंसुओं से शुरू कयासबाजी
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अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली। संसद में कटुता और हंगामे के इस दौर में मंगलवार का नजारा बिल्कुल ही अलग था। मौका था विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई का और इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भावुक हो उठे। वे इतना भावुक हो उठे कि तीन बार उनकी आंखों में आंसू छलक आए। वे अपने चश्मे पर लगा आंसू पूछते रहे और बार-बार पानी भी पीते रहे। इसके बाद जवाब देने का मौका आया तो गुलाम नबी आजाद भी भावुक हो गए और उनकी आवाज भी भर्रा गई।

निश्चित रूप से यह दोनों नेताओं का आपसी जुड़ाव था जिसकी वजह से भावुकता का यह मंजर दिखा मगर पिछले कई वर्षों से जिस तरह संसद में तीखी राजनीति का दौर चल रहा है, उसे देखते हुए अब इस भावुकता के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं।

भाजपा की ओर से क्या है तैयारी

आजाद के अनुभवों का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने यहां तक कहा कि वे उन्हें रिटायर नहीं होने देंगे। अब सियासी हलकों में यह सवाल करने लगा है कि कि क्या यह भावुकता भाजपा की ओर से कांग्रेस में सेंध लगाने की तैयारी है या भाजपा आजाद के जरिए कश्मीर को साधने की तैयारी में जुटी है।

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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देने के बाद पीएम मोदी ने मंगलवार को लगातार दूसरे दिन राज्यसभा को संबोधित किया। जम्मू कश्मीर के चार सांसदों को राज्यसभा से विदाई देते समय पीएम मोदी काफी भावुक हो गए।

सिसकियां लेते हुए पुराने संबंधों की याद

अपने 16 मिनट के भाषण के दौरान पीएम मोदी 12 मिनट तक आजाद पर ही बोलते रहे। इस दौरान वे काफी भावुक हो उठे और यहां तक कि उनकी आंखों में आंसू तक आ गए। इस दौरान उन्होंने अपनी उंगलियों से आंसू पोछे और बार-बार पानी भी पिया। उन्होंने सिसकियां लेते हुए आजाद से अपने संबंधों की याद की।

pm narendra modi

आजाद से अपनी मित्रता का जिक्र करते हुए उन्होंने जम्मू कश्मीर में हुई एक आतंकी घटना की दास्तान सुनाई और बताया कि किस तरह आजाद घाटी में मारे गए गुजरात के लोगों के लिए द्रवित हो उठे थे।

उन्होंने आजाद को अपना खास मित्र बताते हुए कहा कि गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के पहले से ही उनकी आजाद से घनिष्ठता रही है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से मेरा उनसे आग्रह रहेगा कि मन से कभी मत मानें कि वे इस सदन में नहीं है। आपके लिए मेरे द्वार हमेशा खुले रहेंगे।

नहीं होने दूंगा रिटायर

मंगलवार को उच्च सदन में हुई इस घटना ने दो पुराने दोस्तों की दोस्ती पर जमी धूल की चादर को पूरी तरह साफ कर दिया है। अपने संबोधन के दौरान मोदी ने यह भी कहा कि आजाद कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य के रूप में जरूर उच्च सदन से रिटायर हो रहे हैं, लेकिन मेरे लिए उनकी अहमियत हमेशा बरकरार रहेगी।

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मुझे और देश को उनके अनुभव का लाभ मिलता रहेगा और अंत में उन्होंने यह भी कह दिया कि मैं आपको कभी निवृत्त नहीं होने दूंगा। भविष्य के लिए आपको मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं।

आजाद की आंखों में भी छलके आंसू

सदन में विभिन्न नेताओं की ओर से व्यक्त किए गए उद्गारों का जवाब देने के लिए जब आजाद खड़े हुए तो वे भी भावुक हो उठे और उनकी आंखों में भी आंसू छलक आए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने जिस तरह भावुक होकर मेरे बारे में कुछ शब्द कहे हैं, उन्हें सुनकर मैं सोच में पड़ गया हूं कि मैं क्या कहूं।

Ghulam-Nabi-Azad

आजाद ने अपने भाषण के दौरान इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी का नाम लेने के साथ ही अटल जी के साथ अपने पुराने रिश्तों को याद किया और अटल जी की शान में कसीदे पढ़े। उन्होंने वेंकैया नायडू और शरद पवार की प्रशंसा करने के साथ सत्ता पक्ष की ओर से दिए गए सहयोग के लिए भी आभार जताया।

तलाशे जा रहे सियासी मायने

मंगलवार को उच्च सदन में हुई इस घटना के बाद पीएम मोदी की भावुकता और उनकी आंखों में छलके आंसुओं के सियासी मायने तलाशे जाने जा रहे हैं। कोई इसे भाजपा की ओर से कांग्रेस में सेंध लगाने की बड़ी तैयारी बता रहा है तो कोई इसे आजाद के जरिए कश्मीर साधने की तैयारी।

कुछ जानकारों का कहना है कि पीएम मोदी ने गुलाम नबी आजाद को अपने पाले में लाने का उसी तरह प्रयास किया है जिस तरह भाजपा की ओर से कांग्रेस में हाशिए पर जा चुके प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनते वक्त समर्थन के समय किया गया था।

कांग्रेस में हाशिए पर हैं आजाद

आजाद को लेकर सियासी चर्चाएं इसलिए भी शुरू हो गई हैं क्योंकि वे इन दिनों कांग्रेस में हाशिए पर चल रहे हैं। पिछले साल जुलाई महीने के दौरान कांग्रेस में बदलाव की मांग को लेकर चिट्ठी लिखने वाले 23 प्रमुख नेताओं में गुलाम नबी आजाद भी शामिल थे। इसके बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कुछ नेताओं पर भाजपा से सांठगांठ करने का आरोप तक लगा दिया था। बाद में आजाद की ओर से इस्तीफा देने की पेशकश भी की गई थी मगर मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

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ऐसे नेताओं को तोड़ने की भाजपा की तैयारी

कुछ सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा कांग्रेस के ऐसे नेताओं पर निशाना साधने की तैयारी में जुटी हुई है जो अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़े हुए हैं। भाजपा ने हाल में बंगाल में शुभेंदु अधिकारी को तोड़कर ममता बनर्जी को करारा झटका दिया था।

शुभेंदु को ममता का काफी करीबी माना जाता रहा है और उनकी नाराजगी को भुनाने में भाजपा ने तनिक भी देरी नहीं की। भाजपा के पास कश्मीर में कोई बड़ा चेहरा न होने के कारण भी आजाद को लेकर सियासी कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है।

कश्मीर में ली जा सकती है मदद

पीएम मोदी के दिमाग में आजाद को लेकर क्या चल रहा है, यह तो साफ नहीं हो सका मगर यह है जरूर माना जा रहा है कि कश्मीर के हालात सुधारने में सरकार की ओर से आजाद की मदद ली जा सकती है।

वैसे जानकारों का कहना है कि आजाद लंबे समय तक कांग्रेस के मजबूत सिपाही रहे हैं और उन्होंने कांग्रेस के कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम करते हुए महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली है। ऐसे में सियासत के आखिरी दौर में उनके कांग्रेस छोड़ने की संभावना तो नहीं है मगर वे कश्मीर समस्या को सुलझाने में बड़ी जिम्मेदारी जरूर निभा सकते हैं

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