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दास्ताने-मोदी: कभी साधु-कभी चाय तो कभी गोधरा कांड, नहीं सुने होंगे ये किस्से

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परचम आज पूरी दुनिया में लहरा रहा है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं जो पीएम मोदी को नहीं जानता है। ये उज्जवल शख्स जिसकी पहचान चायवाले से शुरू होकर देश का प्रधानमंत्री के तक होती है, वो हैं हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दोमोदर दास मोदी।

Vidushi Mishra
Published on: 3 May 2023 11:19 PM IST
दास्ताने-मोदी: कभी साधु-कभी चाय तो कभी गोधरा कांड, नहीं सुने होंगे ये किस्से
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दास्ताने-ए-मोदी: कभी साधु-कभी चाय तो कभी गोधरा कांड, नहीं सुने होंगे ये किस्से

नई दिल्ली : देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परचम आज पूरी दुनिया में लहरा रहा है। दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं जो पीएम मोदी को नहीं जानता है। ये उज्जवल शख्स जिसकी पहचान चायवाले से शुरू होकर देश का प्रधानमंत्री के तक होती है, वो हैं हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी।

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चाय बेचने से शुरू हुआ रोजगार

देश को उन्नति की राह पर पहुंचाने वाले इस शख्स का जन्म सन् 1950 में गुजरात के वडनगर में बेहद साधारण परिवार में हुआ था। साधारण परिवार में जन्में इस बालक के बारे में कोई नहीं जानता था कि कभी देश में अकेले नाम से भी पहचाना जाएगा। पीएम नरेंद्र मोदी 17 सितंबर 2019 को 65 साल के हो गए।

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देश के मोदी का बचपन

शिक्षा के क्षेत्र में नरेंद्र मोदी ने राजनीति शास्त्र में एमए किया। मोदी का बचपन से ही संघ की तरफ बहुत झुकाव था और इसी के साथ गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था।

मोदी बचपन में सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग थे। एक बार मोदी घर के पास के शर्मिष्ठा तालाब से एक घड़ियाल का बच्चा पकड़कर घर लेकर आ गए। इस पर उनकी मां ने कहा बेटा इसे वापस छोड़ आओ। पर नरेंद्र मोदी इस बात पर राजी नहीं हुए।

इसके बाद मां ने समझाया कि अगर कोई तुम्हें मुझसे चुरा ले, तो तुम पर और मेरे पर क्या बीतेगी, जरा सोचो। ये बात नरेंद्र को समझ में आ गई और वो उस घड़ियाल के बच्चे को तालाब में छोड़ आए।

मोदी बचपन से ही भिन्न

गेटअप और स्टाइल के मामले में मोदी बचपन से ही भिन्न थे। वे कभी बाल बढ़ा लेते थे, तो कभी सरदार के गेटअप में आ जाते थे। रंगमंच उन्हें खूब लुभाता था। मोदी स्कूल के दिनों में नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और अपने रोल पर काफी मेहनत भी करते थे।

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वे स्कूल में होनें वाले नाटकों में हिस्सा लेते थे, इसके साथ ही इन्होंने एनसीसी भी ज्वाइन की थी। एक ऐसी कला जो आज भी उनके व्यक्तित्व की पहचान है वो है बोलने की कला। तो इसमें ये बचपन से ही वाद विवाद प्रतियोगिता में हमेशा अव्वल आते थे।

साधु संतों को देखना बहुत अच्छा लगता

नरेंद्र मोदी को बचपन में साधु संतों को देखना बहुत अच्छा लगता था। राज की बात तो ये है कि मोदी खुद संन्यासी बनना चाहते थे। संन्यासी बनने के लिए नरेंद्र मोदी स्कूल की पढ़ाई के बाद घर से भाग गए थे और इस दौरान मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई जगहों पर घूमते रहे और आखिर में हिमालय पहुंच गए और कई महीनों तक साधुओं के साथ घूमते रहे।

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नरेंद्र मोदी का मैनेजमेंट और उनके काम करने के तरीके को देखने के बाद आरएसएस में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने का फैसला लिया गया। इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय कार्यालय नागपुर में एक महीने के विशेष ट्रेनिंग कैंप में बुलाया गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

17 साल की उम्र में मोदी सन् 1967 में अहमदाबाद पहुंचे और उसी साल इन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली। इसके बाद सन् 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए। इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे।

नरेंद्र मोदी वर्ष 1988-89 में भारतीय जनता पार्टी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए। और यहीं से इनकी यात्रा शुरु हो गयी थी। नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की सन् 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए।

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राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी

मोदी को सन् 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया। इसके बाद सन् 1998 में उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया गया। इस पद पर मोदी अक्‍टूबर 2001 तक रहे। फिर सन् 2001 में केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई।

मोदी के सत्ता संभालने के लगभग पांच महीने बाद ही मानों हादसे होने की लाइन सी लग गई हो। पहले गोधरा रेल हादसा, फिर फरवरी 2002 में ही गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ़ दंगे हुए। इन दंगों में करीब हजारों लोगों की जाने चली गई।

गोधरा रेल हादसा

इसके बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौर किया तो उन्होंनें मोदी को 'राजधर्म निभाने' की सलाह दी, जिसे वाजपेयी की नाराजगी के संकेत के रूप में देखा गया।

इन दंगों की वजह से मोदी पर कई आरोप भी लगे कि उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया। फिर बीजेपी से उन्हें पद से हटाने की बात उठी, तो उन्हें तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और उनके खेमे की ओर से समर्थन मिला और वे पद पर बने रहे।

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इसके बाद सन् 2007 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने गुजरात के विकास को मुद्दा बनाया और फिर जीतकर लौटे। फिर सन् 2012 में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात विधानसभा चुनावों में विजयी रहे और अब केंद्र में अपने नेतृत्‍व में सरकार चला रहे हैं।



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Vidushi Mishra

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