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किसान हुए मालामाल: लेमन ग्रास की खेती बनी वजह, मोदी ने भी की तारीफ

लेमन ग्रास की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त है। उच्च ताप तथा धूप की उपस्थिति से पौधे में तेल की मात्रा बढ़ती है। लगभग सभी प्रकार की भूमि में इसकी खेती की जा सकती है।

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Published on: 27 July 2020 9:42 AM GMT
किसान हुए मालामाल: लेमन ग्रास की खेती बनी वजह, मोदी ने भी की तारीफ
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लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में झारखंड में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही महिलाओं की जमकर तारीफ की। प्रधानमंत्री ने गुमला जिले के बिशुनपुर की रहने वाली महिलाओं का जिक्र करते हुए बताया कि कैसे ये महिलाएं लेमन ग्रास की खेती कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। प्रधानमंत्री ने बताया कि बिशुनपुर इलाके में 30 से अधिक समूह लेमन ग्रास की खेती से जुड़े हुए हैं और अपना जीवन स्तर सुधार रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह लेमन ग्रास चार महीने में तैयार हो जाता है। इससे तेल बनाया जाता है और यह बाजार में ऊंची कीमत पर बिकता है।

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लोग मालामाल हो रहे

झारखंड़ में ही नहीं यूपी के भी संतकबीर नगर और हमीरपुर जैसे कई स्थानों पर लेमन ग्रास की खेती बडे़ स्तर पर की जा रही है। संतकबीरनगर के किसानों के लिए ऊसर-बंजर व कम सिंचाई सुविधा वाली जमीन पर बहुतायत में पाई जाने वाली यह घास कुछ समय तक परेशानी का सबब थी, लेकिन अब इससे तेल निकालकर लोग मालामाल हो रहे हैं। इसकी व्यवसायिक खेती शुरू हो गई है। जिले के हैंसर, पौली व नाथनगर ब्लॉक क्षेत्र के 100 किसान लेमनग्रास की खेती से जुड़े हैं। लेमनग्रास की खेती करने वाले किसानों के मुताबिक प्रति एकड़ बुआई पर 40 हजार रुपये खर्च होते हैं। इसमें से 25 हजार रुपये निराई-गुड़ाई व सिंचाई पर खर्च होना है, जिसका भुगतान किसान को मनरेगा मद से मिल रहा है। शेष 15 हजार रुपये बीज पर खर्च होते हैं, जिसे राज्य जैव ऊर्जा बोर्ड उपलब्ध कराता है।

हर दो महीने बाद घास की कटाई होगी

एक बार बोई गई फसल पांच वर्ष तक काटी जाएगी। हर दो महीने बाद घास की कटाई होगी। नींबू जैसी महक के चलते लेमनग्रास को जानवर इसे नहीं खाते हैं। इसलिए किसानों को इसकी रखवाली की चिंता नहीं करनी पड़ती। सिंचाई की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है, लिहाजा किसान इसे ऐसे खेतों में लगा सकते हैं जिनमें वह अन्य फसलों की बुआई नहीं कर पा रहे हैं। लेमनग्रास से आसवन विधि से तेल निकाला जाता है। इसका उपयोग बर्तन धोने वाले साबुन व वॉशिंग पाउडर के निर्माण में होता है।आइये हम आपको बताते है कि कैसे होती है लेमन ग्रास की खेती

लेमन ग्रास सगंधीय पौधों में एक महत्वपूर्ण पौधा है जिसके पत्तों से तेल निकाला जाता है। इस तेल का उपयोग औषधियों के निर्माण, उच्च कोटि के इत्र बनाने तथा विभिन्न सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है। साबुन निर्माण में भी इसे काम में लाया जाता है। इस तेल का उत्पादन करने का मुख्य कारण इसमें पाया जाने वाला साईंट्रल सांद्रण है। देश में ‘विटामिन ए’ के संश्लेषण के लिए नींबू तेल की मांग काफी है।

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मिट्टी एवं जलवायु

लेमन ग्रास की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त है। उच्च ताप तथा धूप की उपस्थिति से पौधे में तेल की मात्रा बढ़ती है। लगभग सभी प्रकार की भूमि में इसकी खेती की जा सकती है। दोमट उपजाऊ मिट्टी अधिक अच्छी होती है, पर बालू युक्त चिकनी मिट्टी, लेटेराईट व बारानी क्षेत्रों में भी उपजाई जा सकती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके बीज को नर्सरी बनाकर बोया जाता है। पौधों के कुछ बड़े होने पर इन्हें नर्सरी से उखाड़ कर अन्य जगह या खेत में रोपाई करते हैं। एक हेक्टेयर के लिए 04 किलो बीज की जरूरत होती है। पौधे 02 महीने के बाद लगाने लायक हो जाते हैं।

इसको लगाने के लिए पौधों के ऊपरी भाग को जड़ से 15 सेंमी. छोड़कर काट लेते हैं। जड़ों के भाग को अलग कर लेते हैं। लगभग 15 सेमी. गहरे छेदों में कुछ-कुछ दूरी पर लगाया जाता है। लगाने का उत्तम समय वर्षा ऋतु के प्रारंभ में है। पौधों को सिंचाई का साधन रहने पर फरवरी माह में भी रोपाई की जाती है। खेत की तैयारी के समय कम्पोस्ट या गोबर की सड़ी खाद डाली जाती है। रोपाई के एक माह बाद खरपतवार की निकाई-गुड़ाई कर निकाल लिया जाता है। लेमन ग्रास पांच वर्षीय फसल है इसलिए हर कटाई के बाद खाद या उर्वरक देना जरूरी है।

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जल प्रबंधन

लेमन ग्रास के लिए जल की अधिक मात्रा की आवश्यकता नहीं होती है। बरसात में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। रोपाई के पश्चात भूमि में नमी होना जरूरी है। गर्मियों में 10 दिनों के अंतराल पर तथा सर्दियों में 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए।

फसल चक्र

नींबू घास पाँच वर्षीय फसल है। फसल लगाने के बाद 5 वर्ष तक 2.5-3.0 महीने के अंतराल पर कटाई की जाती है। प्रति वर्ष 4-5 कटाई की जा सकती है। पौधों की कटाई भूमि से 10-15 सेंटीमीटर ऊपर से करना चाहिए। अनुपजाऊ भूमि पर फसल 3 साल के बाद बदलना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि से 04 कटाईयों में 150-180 लीटर तेल प्रति वर्ष प्राप्त किया जा सकता है, जो आने वाले वर्षो में बढ़ता है। लेमन ग्रास को काटने के बाद तेल निकाला जा सकता है या फिर 24 घंटे तक सूखने के लिए छोड़ देते हैं। इसके अलावा आसवन विधि से भी तेल निकाला जाता है। तेल निकालने के बाद बचा हुआ लेमन ग्रास कागज बनाने, ईधन के रूप में उपयोग करने तथा उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

रिपोर्ट- मनीष श्रीवास्तव, लखनऊ

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