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छाया की तरह रहते थे गांधी के साथ, ऐसे थे महादेव देसाई

15 अगस्त, 1942 को जब महादेव देसाई का असमय निधन हुआ। उनकी सांसे थम चुकी थी, तब महात्मा गांधी ने अत्यंत उत्तेजना के साथ तेज स्वर से महादेव! महादेव! कहकर उन्हें आवाज दी। महात्मा गांधी का यह व्यवहार अप्रत्याशित था।

SK Gautam
Published on: 1 Jan 2021 4:28 PM IST
छाया की तरह रहते थे गांधी के साथ, ऐसे थे महादेव देसाई
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छाया की तरह रहते थे गांधी के साथ, ऐसे थे महादेव देसाई

अखिलेश तिवारी

उन्हें महात्मा गांधी की छाया कहा जाता था। कहा यह भी जाता है कि वह महात्मा गांधी के मन में क्या चल रहा है यह जानते थे। लगभग 22 साल की उम्र में महात्मा गांधी का साथ हासिल करने वाले महादेव देसाई ने बाद में पूरा जीवन उनके निजी सचिव के तौर पर बिताया। 15 अगस्त, 1942 को जब महादेव देसाई का असमय निधन हुआ। उनकी सांसे थम चुकी थी, तब महात्मा गांधी ने अत्यंत उत्तेजना के साथ तेज स्वर से महादेव! महादेव! कहकर उन्हें आवाज दी। महात्मा गांधी का यह व्यवहार अप्रत्याशित था।

कई लोगों को अटपटा भी लगा कि देह त्याग चुके महादेव को, महात्मा गांधी इस तरह से क्यों आदेश दे रहे हैं। इस बारे में जब बाद में लोगों ने महात्मा गांधी से चर्चा की तो गांधी ने कहा कि मुझे ऐसा लगा कि यदि महादेव में जरा भी प्राण शक्ति बाकी है और वह अपनी आंखें खोल दे, मेरी आवाज सुन ले, मेरी ओर देख ले तो मैं उसे कहूंगा कि उठ जाओ, उसने अपने जीवन में कभी मेरी बात नहीं काटी। मुझे विश्वास था कि अगर उसने मेरे शब्द सुन लिए तो मौत को भी हरा कर वह उठ खड़ा हो जाएगा।

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25 साल साल तक महात्मा गांधी के साथ रहे साए की तरह

महात्मा गांधी की जिंदगी से जुड़ा यह किस्सा बताता है कि महादेव देसाई किस तरह उनके जीवन के लिए अपरिहार्य बन चुके थे। लगभग 25 साल साल तक वह महात्मा गांधी के साथ साए की तरह चलते रहे। उनके छोटे-छोटे काम से लेकर सारे बड़े काम, बड़ी मीटिंगें भी महादेव के बगैर पूरी नहीं होती थी। महात्मा गांधी ने महादेव को जब अपना निजी सचिव बनने का प्रस्ताव दिया तो उनसे कहा कि 2 साल से मुझे जिस व्यक्ति की तलाश थी वह तुमसे मिलकर खत्म हो गई ।

तुमसे पहले मैंने इतना खुलकर इतने विश्वास के साथ केवल 3 व्यक्तियों से बातचीत की है -मिस्टर पोलक, मिस सेल्शिन और मगनलाल। मिस्टर पोलक वह व्यक्ति हैं जो दक्षिण अफ्रीका में गांधी के अन्यतम सहयोगी रहे। मिस सेल्शिन भी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के दौरान गांधी की निजी सचिव के तौर पर काम करती रही। मगनलाल वह व्यक्ति हैं जो उस समय भी महात्मा गांधी के निजी सचिव हुआ करते थे । गांधी के इस कथन पर महादेव ने कहा कि मैंने तो आपको अपने बारे में इतना कुछ बताया भी नहीं है। आपको मेरे पर इतना विश्वास कैसे हो चला। इस पर गांधी ने उनसे कहा कि मिस्टर पोलक को मैंने 5 घंटों के भीतर पहचान लिया था।

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गुजरात में जन्म हुआ था महादेव देसाई का

एक जनवरी अट्ठारह सौ 92 को गुजरात के सरस कस्बे में जन्म लेने वाले महादेव देसाई के पिता हरि भाई प्राइमरी स्कूल के शिक्षक थे। गुजराती साहित्य के मर्मज्ञ हरि भाई बाद में विशेष ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य पद से रिटायर हुए। मां जमुना बाई सुघड़ और समझदार महिला थी। महादेव से पहले उनके तीन बच्चे शैशवावस्था में चल बसे थे । इसलिए उन्होंने सदस्य के सिद्ध नाथ महादेव मंदिर में प्रार्थना की कि अगर उनकी अगली संतान जीवित रही तो पुत्री होने पर उसका नाम पार्वती और पुत्र होने पर महादेव नाम रखेंगे। उनकी यह प्रार्थना ईश्वर ने सुनी और महादेव का जन्म हुआ।

महादेव को अपने गांव के अंग्रेजी स्कूल के अंग्रेजी भाषा के शिक्षक से बहुत कुछ सीखने को मिला। उनकी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ मजबूत बनी। इसका उन्हें अपने जीवन में आगे चलकर हमेशा लाभ मिलता रहा। एलएलबी की पढ़ाई के दौरान महादेव ने ओरिएंटल ट्रांसलेटर्स ऑफिस में प्रशिक्षण लेना शुरू किया। अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी तीनों भाषाओं में उनकी दक्षता स्वीकार्य हो चुकी थी । उन्हें मराठी भी अच्छी आती थी। लोकमान्य तिलक ने बर्मा के मांडले जेल में जब अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'गीता रहस्य ' लिखी तो उसकी पांडुलिपि भी सेंसर से परीक्षण के लिए महादेव देसाई के पास ही आई। बाद में उन्होंने अपने मित्र व जीवनीकार नरहर पारीक के साथ मिलकर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की विभिन्न कृतियों 'चित्रांगदा' 'विदाई अभिशाप ' और 'प्राचीन साहित्य' इत्यादि का गुजराती में अनुवाद भी किया।

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महात्मा गांधी ने किराए के मकान में अपना आश्रम शुरू किया

महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात अप्रैल, 1915 के बाद हुई जब गांधी ने अहमदाबाद के कोचरब में एक किराए के मकान में अपना आश्रम शुरू किया। गांधी ने आश्रम की नियमावली का एक मसौदा तैयार किया। लोगों से अपील की कि वह इस पर अपनी राय और आलोचना से उन्हें अवगत कराएं। महादेव देसाई और नरहर पारीक ने आश्रम नियमावली को लेकर अपना पत्र गांधी को भेजा नियमों की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि आश्रम में ब्रह्मचर्य को अनिवार्य कर देने से बुराइयां बढ़ेगी। हथकरघा पर ज्यादा जोर देने से देश के आर्थिक विकास में बाधा पहुंचेगी। अपने पत्र में उन्होंने यह भी अपेक्षा की कि महात्मा गांधी उन्हें पत्र का जवाब न दें बल्कि अगर उचित लगे तो उन्हें चर्चा के लिए बुला भेजें।

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एक कार्यक्रम में गांधी से दोनों की मुलाकात हुई

कई दिनों तक उन्हें गांधी की ओर से इसका कोई जवाब नहीं मिला। बाद में एक कार्यक्रम में गांधी से दोनों की मुलाकात हुई । महात्मा गांधी जब लौटकर जाने लगे तो लगभग दौड़ते हुए दोनों उनके पास पहुंचे और उनसे पूछा कि क्या आपको हमारा पत्र मिला । गांधी ने उनसे कहा कि क्या आप लोगों ने कोई पत्र लिखा था । क्या करते हैं आप लोग? महादेव ने बताया कि वकालत की प्रैक्टिस करते हैं। इस पर गांधी ने उनसे इंडियन ईयर बुक के ताजा तरीन संस्करण के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि नहीं मेरे पास तो नया संस्करण नहीं है, पुराना है।

इस पर गांधी ने कहा कि जब मैं अपनी दाढ़ी खुद बनाता था तो उसके आधुनिकतम औजार अपने पास रखता था ।आप इसी तरह से वकालत की प्रैक्टिस करते हैं । बातचीत करते हुए दोनों लोग गांधी के साथ उनके आश्रम पहुंचे । गांधी ने उनका पत्र निकाला और लगभग डेढ़ घंटे तक उनसे चर्चा की। महादेव की जीवनी में नरहर ने लिखा है कि वापस लौटते हुए एलिस ब्रिज पर महादेव ने उनसे कहा कि नरहरि मेरा तो आधा मन बन गया है कि मैं जाऊं और इस आदमी के चरणों में बैठ जाऊं।

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महात्मा गांधी ने जब महादेव को लताड़ लगाई

इसके बाद लॉर्ड मुरली मार्ले की पुस्तक 'आन कंप्रोमाइज' के अनुवाद का दायित्व महादेव को मिला । अनुवाद के बाद महादेव ने अपना काम गांधी को दिखाया तो गांधी ने उसे पूरी तरह से नकार दिया। गांधी ने महादेव कि इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने लॉर्ड मोर्ले को बहुत महान बताया है । अंग्रेजी के लच्छेदार शब्दों का बार-बार इस्तेमाल करने के लिए भी उन्होंने महादेव को लताड़ लगाई। इन सब का महादेव पर गहरा असर हुआ। धीरे-धीरे महादेव खुद ब खुद गांधी के करीब आने लगे। मिलना जुलना बढ़ा तो गांधी ने उनसे निजी सचिव बनने का प्रस्ताव किया है।

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मैं तो बस उनकी छाया की तरह उनके साथ रहना चाहता हूं।

गांधी के प्रस्ताव को जब महादेव ने स्वीकार कर लिया तो उनके पिता हरि भाई रास्ते की बाधा बन गए। वह नहीं चाहते थे कि महादेव गांधी के साथ जाएं। क्योंकि वह समझते थे कि महादेव अत्यंत सुकुमार हैं, उन्हें शारीरिक श्रम की आदत नहीं है इसलिए वह गांधी के साथ काम नहीं कर पाएंगे। इसके अलावा वह यह भी चाहते थे कि महादेव पहले समाज में अपनी अलग पहचान हासिल कर लें ।

महादेव ने उनसे कहा कि मैं महानता हासिल करने की महत्वाकांक्षा से गांधी जी के साथ नहीं जाना चाहता हूं । मैं तो बस उनकी छाया की तरह उनके साथ रहना चाहता हूं । उनसे सीखना चाहता हूं। उन के सानिध्य में अधिक से अधिक ज्ञान हासिल करना चाहता हूं । जहां तक नाम और सम्मान की बात है तो गांधीजी के पास है ही। फिर मुझे इसकी क्या चिंता करनी है।

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महादेव अपनी जिद में गांधी जी के साथ चंपारण चले आए

इसके बाद महादेव अपनी जिद में गांधी जी के साथ चंपारण चले आए । लेकिन उनके पिता बेहद नाराज और दुखी थे इसलिए वह पिता को मनाने के लिए वापस गुजरात चले गए। बताते हैं इसके बाद उन्होंने दो बार चंपारण वापस लौटने की कोशिश की लेकिन उनके पिता तैयार नहीं हुए। आखिरकार उनकी भावना को देखते हुए पिता हरि भाई ने भी अनुमति दे दी और महादेव सीधे चंपारण में गांधी के पास पहुंच गए। इसके बाद वह 1942 तक गांधी के साथ ही साए की तरह लगे रहे और भारत के स्वाधीनता इतिहास में गांधी की तरह ही अमर हो गए।

(यह लेखक के अपने विचार हैं )

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