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शेरे पंजाब का शेर शाम सिंह अटारीवाला, जानिए इनके बारे में सबकुछ
150 साल बाद भी शाम सिंह अटारी वाले की कुछ निशानियां उनके गांव अटारी में आज भी मौजूद हैं। भारत-पाक सीमा पर बसे कस्बानुमा इस गांव में पहुंचने पर सबसे पहले गांव की शान शाम सिंह अटारी वाला द्वारा बनवाया गया भव्य सरोवर और उनकी समाधि के दर्शन होते हैं।
अमृतसर से जो सड़क लाहौर की तफ जाती है उससे लगभग 25 किमी की दूारी पर स्थित है अटारी गांव। हिंदू- सिख आबादी वाले इस गांव के चारों तफ फैली हरियाली, दूर-दूर तक लहलहाते गेहूं के खेत और गेंदा के फूलों की खेती एक अलग ही आभा बिखेर रहे हैं। दिन चढ़ गया है पर ऐसा लगरहा है जैसे अभी-अभी पौ फटी हो। कोहरे की चादर से ढका आसमान और अपनी रश्मियां बिखेरने को कोहरे की सेना से दो-दो हाथ करता सूरज।
मुख्य मार्ग पर फर्राटा भरती पर्यटकों की टैक्सियां और इन्हीं के बीच से दिखाई देती पल्टन की गाडि़यां और कहीं-कहीं फौजियों के बंकर और बीएसएफ के जवानों के पदचाप, यकीन दिलाते हैं कि देश की सरहद सुरक्षित है। कुछ ऐसा ही आभास होता है सरहद के पास बसे ऐतिहासिक गांव अटारीवाला पहुंचने पर। यह गांव शाम सिंह अटारी वाला गांव होने के कारण पंजाब के इतिहास में अहम स्थान रखता है। शाम सिंह वह सख्शीयत है जिसने जीते जी अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे। शाम सिंह महाराजा रणजीत सिंह के जनरल और समधी दोनो थे।
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महाराजा रणजीत सिंह के सेनानायक थे शाम सिंह
शाम सिंह के पांचवी पीढि़ के हरप्रीत सिंह ने बताया कि महाराजा रणजीत सिंह के दो सेनानायक थे। एक हरि सिंह नलवा और दूसरा खुद शाम सिंह अटारी वाला। इन दोनो सेनायकों के नाम से अफगान और अंग्रेज सैनिक थरथर कांपते थे। उन्होंने बताया कि शाम सिंह की बेटी व महाराजा रणजीत सिंह के पोत्र और कुंवर खड़क सिंह पुत्र नौनिहाल सिंह की शादी इतिहास प्रसिद्ध है। अप्रैल 1886 में हुए इस वैवाहिक कायक्रम में तत्कालीन भारत के लगभग सभी राजाओं-महाराजाओं को बुलाया गया था। यहां तक कि काबुल और ईरान के शासकों को भी इस समारोह में बुलाया गयाा था। आयाजन बहुत भय था और यह उत्सव कइ दिोंतक चलता रहा। सदियां गुजर जाने के बाद भी अमृतसर और लाहौर के लोग नौनिहाल सिंह और शाम सिंह की बेटी की शादी के चर्चा करते नहीं थकते।
18 गोलियां लगी थी जरनैल को
अफगानों और पहाड़ी राओं व अंग्रेजों के खिलाफ कइ जंगेलड़ चुके75 साल के जनैल डोगरा राजाओं के धाोखे का शिकार हो गया। कहा जाता है कि 18 दिसंबर 1845 को अंगेज गर्वनर जनरल लार्ड हार्डिंग के खिलाफ उन्होंने जग लड़ी। इसी जंग मेंब्रिटिश हुकुमत को १७ तोपों के साथ एकहजार सैनिकों का नुकसान उठाना पड़ा था, मारने वाले अंगेज सैनिकों में जलालाबाद का रक्षक कहा जाने वाल जनरल रॉबर्ट सेल भी था। इसके बाद शाम सिंह अटारी ने अंगेाजों के खिलाफ फरवरी 1846 में मुदकी के पास जंग लड़ी। इस जंग में भी अंग्रेजों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन गुलाब सिंह डोगरा ने लाहौर से रसद भेजना बंद कर दिया। जबकि अंग्रेजों से मिल लाल सिंह डोगरा ने सिख सेना को बारूद की जगह राई सप्लाई कर दी। धोखे का शिकार हुए शाम को अंगों की 18 गोलियां लगी और वे 10 फरवरी को वीरगति को प्राप्त हो गए।
अंग्रेज भी गाते थे बहादुरी की गाथा
शाम सिंह अटारीवाला एक ऐसा योद्धा थे जिसे भारतीय ही नहीं बल्कि अंग्रेज हुक्मरान भी उनकी बहादुरी की गाथा सुनते और सुनाते थे। कहा जाता है कि महाराजा का विश्वासपात्र और कुशल सैन्य क्षमता से भरपूर शाम सिंह आटारी जब जंग के मैदान में अग्रिम पंक्ति में रहता तो वह सफद रेशमी वस्त्र पहनता और सफेद घोड़े की सवारी करता था। इसतिहासकार कनिंघम अपनी पुस्तक में लिखता है कि मुदकी की जंग मेंअंग्रेजों की हार निश्चित थी, लेकिन एन वक्त पर डोगराओं की सिखों से दगाबाजी ने इस जंग का रुख ही बदल दिया, जिसमें शाम सिंह को शहादत और अंग्रेजों को पंजाब में अपना साम्राज्य स्थापित करने का मौका।
बरेली, अमृतसर और दिल्ली में बसे हैं वंशज
शाम सिंह के वंशज हरप्रीत सिंह कहते हैं कि हमारे खान के लोग अटारी, अमृतसर, दिल्ली और उत्तर पदेश के रामपुर व बरेली सहित देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों में बसे हैं। वे कहते हैं कि आज हमारे परिवार से 18 कर्नल, तीन ब्रिगेडियर, कैप्टन और मेजर सहित कई सैन्य अफसर भारतीय सेना का गौरव बढ़ा रहे हैं। हरप्रित सिंह कहते हैं कि हमारे पूवर्जजों कनर्ल रामजी व जगजीत सिंह सिद्धू (18 सिख रेजीमेंट) ने 18 चीते, चार शेर व एक हाथी का शिकार कर बर्तानवी सैन्य अफसरों को चौंका दिया था, उस समय उनकी बहादुरी को देखते हुए सेना द्वारा सम्मानित किया गया था।
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आज भी मौजूद हैं निशानियां
150 साल बाद भी शाम सिंह अटारी वाले की कुछ निशानियां उनके गांव अटारी में आज भी मौजूद हैं। भारत-पाक सीमा पर बसे कस्बानुमा इस गांव में पहुंचने पर सबसे पहले गांव की शान शाम सिंह अटारी वाला द्वारा बनवाया गया भव्य सरोवर और उनकी समाधि के दर्शन होते हैं। इसके साथ ही ही उनके दो अन्य साथियों की समाधि व म्यूजियम भी है। इसके अलावा उनकी हवेली के कुछ अवशेष आज भी उस बहादुर योद्धा की दास्तान सुना रहे हैं।