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जीडीपी घटने से अर्थव्यवस्था को इतने करोड़ का नुकसान, जनता पर होगा सीधा असर
कोरोना काल में देश की जीडीपी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। चालू वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी में 10 से 11 प्रतिशत तक गिरावट देखने को मिल सकती है। कहने का मतलब ये है कि देश की आमदनी उतनी ही कम होगी।
नई दिल्ली: कोरोना काल में देश की जीडीपी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। चालू वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी में 10 से 11 प्रतिशत तक गिरावट देखने को मिल सकती है।
कहने का मतलब ये है कि देश की आमदनी उतनी ही कम होगी। अर्थव्यवस्था के मौजूदा आंकड़े के हिसाब 10 प्रतिशत की गिरावट आने पर 20 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। आमदनी कम होगी तो खर्च भी कम होगा, खर्चा घटने से तमाम गतिविधियों पर असर होगा।
अर्थव्यवस्था के मुख्य तौर पर तीन हिस्से हैं जिन्हें विभिन्न रूप में आय होती है। पहला- श्रमिक, वेतन भोगी तबका। दूसरा- उद्योगपति (छोटे, बड़े सभी मिलाकर) और तीसरा- सरकार जो टैक्स लेती है।
उदाहरण के तौर पर 100 रुपये की आय है तो इसमें से 60- 65 प्रतिशत श्रमिक, वेतनभोगी तबके को जाता है। 20 से 25 प्रतिशत सरकार को और 15 से 20 प्रतिशत उद्योगपति कमाता है। यदि अर्थव्यवस्था में 10 प्रतिशत की गिरावट आती है तो इसी अनुपात में सबकी कमाई कम होगी।
रुपए के लेनदेन की फोटो(साभार -सोशल मीडिया)
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बिजली की खपत इस साल भी कम
देश के पूर्व केन्द्रीय वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने एक इंटरव्यू में बताया कि बिजली की खपत पिछले साल इस दौरान कम थी और उसके मुकाबले इस साल भी अभी कम ही है।
जीएसटी के आंकड़े सामान्य स्तर पर नहीं पहुंचे हैं। सेवा क्षेत्र में भी गिरावट है। इस लिहाज से दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में 12 से 15 प्रतिशत का संकुचन रहेगा।
तीसरी तिमाही में यह कुछ सुधरेगा फिर भी चार से पांच प्रतिशत की गिरावट रह सकती है और चौथी तिमाही में कहीं जाकर यह सामान्य हो पाएगा। इस लिहाज से कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2020- 21 में जीडीपी में 10 से 11 प्रतिशत की गिरावट रह सकती है।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि मुझे नहीं लगता कि नोटबंदी का असर अभी भी है। नोटबंदी के बाद के वर्षों में आर्थिक वृद्धि में सुधार आया है। नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर अस्थायी असर रहा।
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नोटबंदी का असर अस्थायी ही रहा
अर्थव्यवस्था में असंगठित, अनौपचारिक गतिविधियों का बड़ा हिस्सा था। इसमें ज्यादातर भुगतान नकद में होता रहा है। करीब 25 से 30 प्रतिशत अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का भारी असर पड़ा। लेकिन इसका एक असर यह भी हुआ कि असंगठित क्षेत्र का काफी कारोबार संगठित क्षेत्र में होने लगा और उनमें लेन-देन औपचारिक प्रणाली में परिवर्तित हुआ। इस प्रकार नोटबंदी का असर अस्थायी ही रहा है।
जीडीपी पर आगे अपनी बात रखते हुए कहा कि जहां तक मेरी सोच है कि पहली तिमाही में पूंजी निवेश में भारी कमी आई है, उस तरफ ध्यान देना चाहिए। सरकार को सबसे पहले तीन क्षेत्रों में आगे बढ़कर काम करना चाहिए। लॉकडाउन और कारोबार बंद होने से सूक्ष्म, लघु उद्योगों को बड़ा झटका लगा है। देश में कुल मिलाकर करीब 7.5 करोड़ सूक्ष्म, लघु, मझोले उद्यम (एमएसएमई) हैं। सरकार को उनकी सहायता करनी चाहिए।
शक्तिकांता दास की फोटो(साभार-सोशल मीडिया)
एमएसएमई में एक बड़ा वर्ग है जो अछूता है, सरकार को उन्हें सीधे अनुदान देना चाहिए
आत्मनिर्भर भारत के तहत जो योजनाएं पेश की गईं हैं, उनका लाभ 40- 45 लाख को ही मिल रहा है। एमएसएमई में एक बड़ा वर्ग है जो अछूता है, सरकार को उन्हें सीधे अनुदान देना चाहिए।
दूसरा वर्ग करीब 10- 12 करोड़ कामगारों का है जिनके पास कोई काम नहीं रहा, उनका रोजगार नहीं रहा, उनकी मदद की जानी चाहिए। तीसरे- सरकार को समग्र अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न ढांचागत क्षेत्रों में पूंजी व्यय बढ़ाना चाहिए। कई क्षेत्रों में नीतिगत समस्याएं आड़े आ रही हैं, उन्हें दूर किया जाना चाहिए।
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