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चीन को रोकना पड़ेगा: मुसीबत में पड़ सकता है भारत, छूटेगा ताकतवर देश का साथ
बीते सप्ताह श्रीलंका, भारत और जापान के साथ एक संयुक्त साझेदारी समझौते से बाहर निकल गया। बता दें, इस समझौते के जरिए कोलंबो बंदरगाह पर बहुप्रतीक्षित ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ECT) विकसित करना था, पर इस फैसले ने नई दिल्ली और टोक्यो दोनों को हैरान कर दिया है।
कोलंबो: भारत और श्रीलंका के संबंध एक बार फिर से प्रभावित होते नजर आ रहे हैं। हाल ही में हुई दो घटनाओं से ये साफ प्रतीत हो रहा है। बीते सप्ताह श्रीलंका, भारत और जापान के साथ एक संयुक्त साझेदारी समझौते से बाहर निकल गया। बता दें, इस समझौते के जरिए कोलंबो बंदरगाह पर बहुप्रतीक्षित ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ECT) विकसित करना था, पर इस फैसले ने नई दिल्ली और टोक्यो दोनों को हैरान कर दिया है। इसके बाद उसी दिन सेंट्रल बैंक ऑफ़ श्रीलंका (CBSL) ने अमेरिकी डॉलर 400 मिलियन की करेंसी स्वैप फैसेलिटी लौटा दिया। बता दें, श्रीलंका को ये कोविड-19(COVID-19) की महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान अपनी आपातकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए जुलाई 2020 में मिला था।
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रिश्तों पर पकड़ बनाये रखने
दरअसल ईस्ट कंटेनर टर्मिनल(ECT) समझौता दो वर्षों से विवादों में घिरा हुआ है। दो साल पहले नवंबर 2019 में गोटबाया राजपक्षे के श्रीलंका के राष्ट्रपति बनने के बाद और उनके बड़े भाई व पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने अगस्त 2020 के संसदीय चुनावों में अपनी पार्टी को दो-तिहाई जीत के लिए नेतृत्व किया। उस दौरान श्रीलंका से रिश्तों पर पकड़ बनाये रखने और चीन को पीछे करने के लिए भारत आगे बढ़ा।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में गोटबाया राजपक्षे की मेजबानी की। इसके चलते श्रीलंका के विदेश मामलों के मंत्री दिनेश गनवार्डन ने भी रिश्ते को मजबूत करने के लिए नई दिल्ली आए। तभी विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने श्रीलंका को चीन की साजिश न बनने से रोकने के लिए कोलंबो का दौरा किया।
फोटो-सोशल मीडिया
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बौद्ध भिक्षुओं ने किया विरोध
लेकिन श्रीलंकाई सरकार ने दोहराया कि भारत उसका निकटतम पड़ोसी और एक परिवार है, और दूसरी तरफ चीन केवल एक दोस्त है। ईस्ट कंटेनर टर्मिनल(ईसीटी) समझौते से बाहर निकलने के बाद भी पीएम महिंद्रा राजपक्षे ने एक ही रुख को बनाए रखते हुए कहा कि श्रीलंका का भारत के साथ संबंध अभी भी मजबूत है।
ऐसे में श्रीलंका के राजपक्षे ने कहा, 'नहीं, कोई समस्या नहीं होगी। हमारे भारत के साथ स्वस्थ संबंध हैं। इस निवेश परियोजना के बारे में कई विचार हैं। राज्य की संपत्ति बेचना इस सरकार की नीति नहीं है। काफी बौद्ध भिक्षुओं ने इसका विरोध किया।'
इसी कड़ी में सीलोन शिपिंग कॉरपोरेशन (CSC) के पूर्व अध्यक्ष शशि दानतुंज ने कहा कि हालिया घटनाक्रम श्रीलंका की विदेश नीति में बदलाव का इशारा है। कोलंबो से दानतुन्गे ने कहा- 'ईसीटी बहुत महत्वपूर्ण है और किसी के लिए सबसे आकर्षक परियोजना है। स्वाभाविक रूप से श्रीलंका इसे किसी को भी सौंपना नहीं चाहता है लेकिन, इसमें कई अन्य मुद्दे भी शामिल हो सकते हैं।'
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