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मजे में खाओ मीट! अब मिल गया मंगलवार-शनिवार से छुटकारा

बायोमैटेरियल्स एंड टिश्यू इंजीनियरिंग लैबोरेटरी में अनुसंधानकर्ताओं ने मांस के उत्पादन के लिए एक नवीन तकनीक विकसित की है और उत्पादन के लिए पेटेंट कराया है जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक है । मंडल ने कहा, ‘‘तैयार मांस उत्पाद का स्वाद कच्चे मांस जैसा ही रहेगा और इसमें उपभोक्ता की जरूरतों के मुताबिक पोषक तत्व भी होंगे।

SK Gautam
Published on: 26 Aug 2019 3:10 PM IST
मजे में खाओ मीट! अब मिल गया मंगलवार-शनिवार से छुटकारा
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गुवाहाटी: अब जानवरों को काटकर मिलने वाले मांस की जगह अब जानवरों को बिना काटे ही मांस की आपूर्ति हो सकेगी यह कारनामा कर दिखाया है भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी ने जिसमें रिसर्चर्स ने प्रयोगशाला में मांस तैयार किया है जो कि पोषक होने के साथ ही क्रूरता मुक्त भोजन को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा ।

आईआईटी गुवाहाटी के डॉ. बिमान बी. मंडल ने कहा कि प्रयोगशाला में विकसित मांस क्रूरता मुक्त भोजन की दिशा में एक नयी संभावना खोलेगा, साथ ही पर्यावरण एवं पशुओं को भी बचाएगा ।

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उन्होंने बताया कि बायोमैटेरियल्स एंड टिश्यू इंजीनियरिंग लैबोरेटरी में अनुसंधानकर्ताओं ने मांस के उत्पादन के लिए एक नवीन तकनीक विकसित की है और उत्पादन के लिए पेटेंट कराया है जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक है । मंडल ने कहा, ‘‘तैयार मांस उत्पाद का स्वाद कच्चे मांस जैसा ही रहेगा और इसमें उपभोक्ता की जरूरतों के मुताबिक पोषक तत्व भी होंगे।

ऐसे किया जायेगा तैयार

इसे तैयार करने के दौरान बाहरी रसायन जैसे हार्मोन, पशु सेरम, एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल वर्जित किया गया है, इसलिए यह मानकों के हिसाब से सुरक्षित है ।’’

क्योंकि 2050 तक पूरी नहीं हो पाएंगी मांस की ज़रूरत

उन्होंने कहा कि जनसंख्या में तेज वृद्धि के चलते मांस उद्योग खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी दवाब का सामना कर रहा है । मंडल ने संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या संभावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि 2050 तक वर्तमान मांस उद्योग वैश्चिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगा ।

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1 किलो मटन के लिए लगेगा 8,000 लीटर पानी

उन्होंने कहा कि एक किलोग्राम चिकन मीट का उत्पादन करने के लिए लगभग 4,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है और एक किलोग्राम मटन का उत्पादन करने के लिए 8,000 लीटर से अधिक पानी की आवश्यकता होती है ।

मंडल ने कहा कि दुनिया में परिवहन से कुल मिलाकर जितनी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है उससे अधिक बेकार पानी और अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पशुपालन उद्योग से होता है । इसके अलावा, मांस के लिए हर साल अरबों जानवरों को मार दिया जाता है ।



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