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संवेदना के धागों से बुनी सच्चिदानंद जोशी की पुस्तक ‘जिंदगी का बोनस’ का लोकार्पण

प्रख्यात संस्कृतिकर्मी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डा. सच्चिदानंद जोशी की रम्य रचनाओं की पुस्तक ‘जिंदगी का बोनस’ का

raghvendra
Published on: 25 Feb 2021 2:11 PM IST
संवेदना के धागों से बुनी सच्चिदानंद जोशी की पुस्तक ‘जिंदगी का बोनस’ का लोकार्पण
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photo jindagee ka bonas pustak

नई दिल्ली। प्रख्यात संस्कृतिकर्मी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डा. सच्चिदानंद जोशी की रम्य रचनाओं की पुस्तक ‘जिंदगी का बोनस’ का लोकार्पण इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पद्श्री से अलंकृत व्यंग्यकार अशोक चक्रधर ने किया। इस अवसर मौके पर पद्मश्री से सम्मानित नृत्यांगना शोभना नारायण, भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी, कथाकार अल्पना मिश्र, प्रभात प्रकाशन के प्रभात कुमार विशेष रूप से मौजूद थे।

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समारोह को संबोधित करते हुए आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो.संजय द्विवेदी ने कहा कि लेखक की सह्दयता ने जिंदगी की बहुत साधारण घटनाओं को ‘जिंदगी का बोनस’ बना दिया है, यह किताब संवेदना के धागों से बुनी गई है। लेखक की यही संवेदना, आत्मीयता और आनंद की खोज इस पुस्तक का प्राणतत्व है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि श्री जोशी बहुमुखी प्रतिभासंपन्न और सह्दय व्यक्ति हैं, उनके इन्हीं गुणों का विस्तार इन रम्य रचनाओं में दिखता है। इस संग्रह की एक रचना ‘इफ्तार’ उनकी संवेदना का सच्चा बयान है। श्री जोशी की खासियत है कि वह सबको साथ लेकर चलते हैं, एक अच्छे संगठनकर्ता भी हैं, जहां जाते हैं अपनी दुनिया बना लेते हैं। सबको जोड़ कर रखते हैं।

jindagee ka bonas pustak

दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापक और लेखिका अल्पना मिश्र ने कहा कि इस पुस्तक के बहाने हिंदी साहित्य को एक अनूठा गद्व मिला है। जिसमें ललित निबंध, रिपोर्ताज, कथा, निबंध चारों के मिले-जुले रूप दिखते हैं। इन रम्य कथाओं में विविधता बहुत है और इनका भरोसा एक सुंदर दुनिया बनाने में है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के उपन्यासकार विलियम फॉल्कनर का कहना था कि हर किताब में एक फ्रोजन टाइम होता है। पाठक के हाथ में आकर वह बहने लगता है। घटनाएं जीवंत हो उठती है। इन रचनाओं में जिंदगी के छोटे-छोटे किस्से हैं मगर सरोकार बड़े हैं।

अशोक चक्रधर ने इस कृति को हिंदी साहित्य के लिए बोनस बताया और कहा कि देश की मिली-जुली संस्कृति और संवेदना का इसमें दर्शन है, यही भावना प्रमोदक है। संवेदन तंत्रिका को झंकृत कर जाती है। इनकी कहानियों की प्रेरणा उनके सौंदर्य अनुभूति को दर्शाती है। जब मन-मस्तिष्क सुरम्य हो तभी आप रम्य रचनाएं लिख पाते हैं। ये सारी कहानियां खुशियां प्रदान करती हैं। सकारात्मकता से भरपूर हैं यह कहानियां पहले आपकी चेतना को टटोलती है और फिर बोलती हैं।

jindagee ka bonas pustak

कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रसिद्ध नृत्यांगना शोभना नारायण ने कहा कि लघु कथा के इस संग्रह में चिंतन और मनन दिखाई देता है। सामान्य घटनाओं से निष्कर्ष निकालना और सीख लेना मानवीयता, सूक्ष्मता, सूझबूझ और जीवन जीने का साहस भी इसमें दिखाई देता है। साथ ही साथ रसास्वादन भी है। ये रचनाएं ज्ञानवर्धक भी हैं। कौन किस कहानी से क्या सीख ले जाता है लेखक ने यह सूक्ष्मता दिखाई है। इस मौके पर सच्चिदानंद जोशी ने लेखकीय वक्तव्य दिया और अपनी दो कहानियों का पाठ भी किया। कार्यक्रम का संचालन श्रुति नागपाल और आभार ज्ञापन मालविका जोशी ने किया।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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