TRENDING TAGS :
Sahir Ludhianvi: जाने कितने फलक पर जीने के मजबूर हुए थे साहिर
Sahir Ludhianvi: साहिल लुधियानवी का जन्म 8 मार्च, 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में हुआ था। हालांकि इनके पिता बहुत धनी थे । पर माता-पिता में अलगाव होने के कारण उन्हें माता के साथ रहना पड़ा । गरीबी में गुज़र करना पड़ा।
Sahir Ludhianvi: यह तो आम है कि जहां न पहुँचे रवि , वहाँ पहुँचे कवि। पर हम आप को बताते हैं कि एक कवि, एक साहित्यकार को अपने ज़िंदगी में कितने फलक पर जीना पड़ता है। जीवन के जितने राग होते हैं। सब में कवि/ साहित्यकार को जीने की विवशता होती है। अपनी बात को साबित करने के लिए हम एक ऐसे नाम को चुनते हैं, जो परिचय का मोहताज किसी को लिए नहीं है। इनका असली नाम अब्दुल हयी और तखल्लुस (कलमी नाम) साहिर है।पर आप सब उन्हें साहिल लुधियानवी के नाम से जानते होंगे।
Also Read
उनका जन्म 8 मार्च, 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में हुआ था। हालांकि इनके पिता बहुत धनी थे । पर माता-पिता में अलगाव होने के कारण उन्हें माता के साथ रहना पड़ा । गरीबी में गुज़र करना पड़ा। साहिर की शिक्षा लुधियाना के खा़लसा हाई स्कूल में हुई। सन् 1939 में जब वे गवर्नमेंट कालेज के विद्यार्थी थे तभी अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ । जो कि असफल रहा। कॉलेज़ के दिनों में वे अपने शेरों के लिए मशहूर हो गए थे। अमृता इनकी प्रशंसक बनी। लेकिन अमृता के घरवालों को यह रास नहीं आया क्योंकि एक तो साहिर मुस्लिम थे और दूसरे गरीब। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कालेज से निकाल दिया गया। जीविका चलाने के लिये उन्होंने तरह तरह की छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं। हालाँकि अमृता प्रीतम से उनका इश्क़ मुंबई के मायानगरी में आने के बाद भी जारी रहा। इश्क़ की दुनिया में साहिब और अमृता की भी तमाम कहानियाँ पसरी हुई हैं। साहिर ने एक दार्शनिक कवि, एक खिन्न कवि, एक समर्पित कवि, एक संतुष्ट कवि, एक प्रेमिका से समझौता करने वाले कवि, उदास कवि,निश्चित कवि, एक सांसारिक कवि, एक देश प्रेमी कवि, एक विद्रोही कवि,एक निराशावादी कवि, एक मानवतावादी कवि, एक छेडछाड करने वाला कवि, एक धर्म निरपेक्ष कवि, एक याद ताज़ा करने वाला कवि के साथ कई अन्य स्तर पर ज़िंदगी जी है। तभी तो इनसे जुड़ी रचनाएँ करने में कामयाब हुए है।
एक दार्शनिक कवि :
मैं पल दो पल का शायर हूँ
पल दो पल मेरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जवानी है
मुझसे पहले कितने शायर आए और आकर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए, कुछ नग्में गा कर चले गए
वो भी एक पल का किस्सा थे, मैं भी एक पल का किस्सा हूँ
कल तुम से जुदा हो जाऊँगा, वो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं पल दो पल का शायर हूँ..
कल और आयेंगे नग्मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले
मुझसे बेहतर कहनेवाले, तुमसे बेहतर सुननेवाले
कल कोई मुझको याद करे, क्यों कोई मुझको याद करे
मसरूफ जमाना मेरे लिए, क्यों वक्त अपना बर्बाद करे
मैं पल दो पल का शायर हूँ..
एक खिन्न कवि :
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि ज़िन्दगी तेरी ज़ुल्फ़ों की नर्म छाँव में
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरी ज़ीस्त का मुक़द्दर है
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी
अजब न था के मैं बेगाना-ए-अलम रह कर
तेरे जमाल की रानाईयों में खो रहता
तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीमबाज़ आँखें
इन्हीं हसीन फ़सानों में महव हो रहता
पुकारतीं मुझे जब तल्ख़ियाँ ज़माने की
तेरे लबों से हलावट के घूँट पी लेता
हयात चीखती फिरती बरहना-सर, और मैं
घनेरी ज़ुल्फ़ों के साये में छुप के जी लेता
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
के तू नहीं, तेरा ग़म, तेरी जुस्तजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िन्दगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं
ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी रह्गुज़ारों से
महीब साये मेरी सम्त बढ़ते आते हैं
हयात-ओ-मौत के पुरहौल ख़ारज़ारों से
न कोई जादह-ए-मंज़िल न रौशनी का सुराग़
भटक रही है ख़लाओं में ज़िन्दगी मेरी
इन्हीं ख़लाओं में रह जाऊँगा कभी खोकर
मैं जानता हूँ मेरी हमनफ़स मगर फिर भी
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
एक समर्पित कवि :
मेरे दिल में आज क्या है
तू कहे तो मैं बता दूँ
तेरी ज़ुल्फ़ फिर सवारूँ
तेरी माँग फिर सजा दूँ
मेरे दिल में आज क्या है..
मुझे देवता बनाकर तेरी चाहतों ने पूजा
मेरा प्यार कह रहा है
मैं तुझे खुदा बना दूँ
मेरे दिल में आज क्या है..
कोई ढूँढ्ने भी आए तो हमें ना ढूँढ़ पाए
तू मुझे कहीं छुपा दे
मैं तुझे कहीं छुपा दूँ
मेरे दिल में आज क्या है..
मेरे बाज़ुओं मे आकर तेरा दर्द चैन पाए
तेरे गेसुओं मे छुपकर
मैं जहाँ के ग़म भुला दूँ
तेरी ज़ुल्फ़ फिर सवारूँ
तेरी माँग फिर सजा दूँ
मेरे दिल में आज क्या है..
एक जीवन से संतुष्ट कवि :
माँग के साथ तुम्हारा मैंने, मांग लिया संसार
दिल कहे दिलदार मिला, हम कहें हमें प्यार मिला – 2
प्यार मिला हमें यार मिला, एक नया संसार मिला – 2
आस मिली अरमान मिला
जीने का सामान मिला
मिल गया एक सहारा, आ हा हा हा
माँग के साथ तुम्हारा …
दिल जवां और रुत हंसीं, चल यूँही चल दें कहीं – 2
तू चाहे ले चल कहीं, तुझ पे है मुझको यकीं – 2
जान भी तू है दिल भी तू ही
राह भी तू मंज़िल भी तू ही
और तू ही आस का तारा, आ हा हा हा
माँग के साथ तुम्हारा …
एक प्रेमिका से समझौता करने वाला कवि :
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
तअ'ल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों
एक उदास कवि :
जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला
हमने तो जब कलियाँ माँगी काँटों का हार मिला
खुशियों की मंज़िल ढूँढी तो ग़म की गर्द मिली
चाहत के नग़मे चाहे तो आहें सर्द मिली
दिल के बोझ को दूना कर गया जो ग़मखार मिला
हमने तो जब...
बिछड़ गया हर साथी देकर पल दो पल का साथ
किसको फ़ुरसत है जो थामे दीवानों का हाथ
हमको अपना साया तक अक्सर बेज़ार मिला
हमने तो जब...
इसको ही जीना कहते हैं तो यूँ ही जी लेंगे
उफ़ न करेंगे लब सी लेंगे आँसू पी लेंगे
ग़म से अब घबराना कैसा, ग़म सौ बार मिला
हमने तो जब...
एक निश्चित कवि :
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया
जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
एक असांसारिक कवि :
ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया,
ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया,
ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
हर इक जिस्म घायल, हर इक रूह प्यासी
निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
यहाँ इक खिलौना है इसां की हस्ती
ये बस्ती हैं मुर्दा परस्तों की बस्ती
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
जवानी भटकती हैं बदकार बन कर
जवान जिस्म सजते है बाज़ार बन कर
यहाँ प्यार होता है व्यापार बन कर
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है
वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है
जहाँ प्यार की कद्र कुछ नहीं है
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
जला दो इसे फूक डालो ये दुनिया
जला दो, जला दो, जला दो
जला दो इसे फूक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है .
एक देशप्रेमी कवि :
ये देश है वीर जवानों का
अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना
ये देश है दुनिया का गहना
यहाँ चौड़ी छाती वीरों की
यहाँ भोली शक्लें हीरों की
यहाँ गाते हैं राँझे होय
यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में
मस्ती में झूमें बस्ती में
पेड़ों में बहारें झूलों की
राहों में कतारें फूलों की
यहाँ हँसता है सावन होय
यहाँ हँसता है सावन बालों में
खिलती हैं कलियाँ गालों में
कहीं दंगल शोख जवानों के
कहीं कर्तब तीर कमानों के
यहाँ नित-नित मेले होय
यहाँ नित-नित मेले सजतें हैं
नित ढोल और ताशे बजते हैं
दिलबर के लिये दिलदार हैं हम
दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
मैदां में अगर हम डट जाएं
मुश्किल है के पीछे हट जाएं
एक विद्रोही कवि :
ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवां ज़िन्दगी के
कहां हैं, कहां है, मुहाफ़िज़ ख़ुदी के
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
ये पुरपेच गलियां, ये बदनाम बाज़ार
ये ग़ुमनाम राही, ये सिक्कों की झन्कार
ये इस्मत के सौदे, ये सौदों पे तकरार
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
ये सदियों से बेख्वाब, सहमी सी गलियां
ये मसली हुई अधखिली ज़र्द कलियां
ये बिकती हुई खोखली रंग-रलियां
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
वो उजले दरीचों में पायल की छन-छन
थकी-हारी सांसों पे तबले की धन-धन
ये बेरूह कमरों में खांसी की ठन-ठन
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
ये फूलों के गजरे, ये पीकों के छींटे
ये बेबाक नज़रें, ये गुस्ताख फ़िकरे
ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
यहां पीर भी आ चुके हैं, जवां भी
तनोमंद बेटे भी, अब्बा, मियां भी
ये बीवी भी है और बहन भी है, मां भी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
मदद चाहती है ये हव्वा की बेटी
यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी
पयम्बर की उम्मत, ज़ुलयखां की बेटी
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कुचे, ये गलियां, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं
एक निराशावादी कवि :
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बेदिली से हम
मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
अपनों से पेश आए हैं बेगानगी से हम
लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
उभरेंगे एक बार अभी दिल के वलवले
गो दब गए हैं बार-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी से हम
गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम
अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशिय्यत कि आज तक
दुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामुशी से हम
एक मानवतावादी कवि :
अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम
सब को सन्मती दे भगवान
इस धरती का रूप न उजड़े
प्यार की ठंडी धूप न उजड़े
सबको मिले सुख का वरदान
माँगों का सेंदूर ना छूटे
माँ बहनों की आस ना टूटे
देह बिना भटके ना प्राण
ओ सारे जग के रखवाले
निर्बल को बल देनेवाले
बलवानों को दे दे ज्ञान
एक धर्मनिरपेक्ष कवि :
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है
जिस इल्म ने इंसानों को तक़्सीम किया है
इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है
तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हम ने इसे हिन्दू या मुसलमान बनाया
क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती
हम ने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया
जो तोड़ दे हर बंद वो तूफ़ान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है
इंसाँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है
क़ुरआन न हो जिस में वो मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है
तू अम्न का और सुल्ह का अरमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
एक छेड़छाड़ करनेवाला कवि :
ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं
तुझे मालूम नहीं
तू अभी तक है हंसीं
और मैं जवाँ
तुझपे क़ुरबान मेरी जान मेरी जान
ये शोखियाँ ये बाँकापन
जो तुझ में है कहीं नहीं
दिलों को जीतने का फ़न
जो तुझ में है कहीं नहीं
मैं तेरी आँखों में पा गया दो जहाँ
ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं..
तू मीठे बोल जान-ए-मन
जो मुस्कुरा के बोल दे
तो धडकनों में आज भी
शराबी रंग घोल दे
ओ सनम मैं तेरा आशिक़-ए-जाबिदाँ
ऐ मेरी ज़ोहरा ज़बीं...
एक याद ताज़ा करनेवाला कवि :
ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात
एक अंजान हसीना से मुलाकात की रात
ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी ...
हाय वो रेशमी ज़ुल्फ़ों से बरसता पानी
फूल से गालों पे रुकने को तरसता पानी
दिल में तूफ़ान उठाते हुए
दिल में तूफ़ान उठाते हुए हालात की रात
ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी ...
डर के बिजली से अचानक वो लिपटना उसका
और फिर शर्म से बलखाके सिमटना उसका
कभी देखी न सुनी ऐसी हो
कभी देखी न सुनी ऐसी तिलिस्मात कि रात
ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी ...
सुर्ख आंचल को दबाकर जो निचोड़ा उसने
दिल पे जलता हुआ एक तीर सा छोड़ा उसने
आग पानी में लगाते हुए
आग पानी में लगाते हुए जज़बात कि रात
ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी .
मेरे नग़्मों में जो बसती है वो तस्वीर थी वो
नौजवानी के हसीं ख़्वाब की ताबीर थी वो
आस्मनों से उतर आई थी जो रात की रात
ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी ...