×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Space and Science: धरती गोल है कहने पर जिंदा जलाया, वैज्ञानिकों को जेल भेजा, अंतरिक्ष की खोज से जुड़ी 4 दर्दनाक कहानियां

Space and Science: विज्ञान आज इतना आगे बढ़ चुका है कि हमने धरती से लेकर अंतरिक्ष तक के ढेरों रहस्‍यों की खोज कर ली है। हमें पता है कि धरती पर दिन-रात क्‍यों होते हैं, मौसम कैसे बदलते हैं, समय की गणना कैसे की जाती है।

Newstrack
Published on: 26 Aug 2023 6:50 PM IST
Space and Science: धरती गोल है कहने पर जिंदा जलाया, वैज्ञानिकों को जेल भेजा, अंतरिक्ष की खोज से जुड़ी 4 दर्दनाक कहानियां
X
Space and Science (PHOTO: SOCIAL MEDIA )

Space and Science: अगर मैं आपसे कहूं कि धरती गोल है, सूर्य एक तारा है, चंद्रमा उपग्रह है और हमारी प्‍यारी पृथ्‍वी सूर्य के सौर मंडल का एक ग्रह तो आपको कैसा लगेगा। वैसे ही जैसे कोई बताए कि फेसबुक एक सोशल मीडिया है या गौरेया एक पक्षी है।

विज्ञान आज इतना आगे बढ़ चुका है कि हमने धरती से लेकर अंतरिक्ष तक के ढेरों रहस्‍यों की खोज कर ली है। हमें पता है कि धरती पर दिन-रात क्‍यों होते हैं, मौसम कैसे बदलते हैं, समय की गणना कैसे की जाती है। धरती पर जीवन की उत्‍पत्ति कैसे हुई। ऐसे असंख्‍य सवालों के जवाब आज हमारे पास हैं। अब तो हम चांद पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं। चंद्रयान 3 चंद्रमा के रास्‍ते में है और पल-पल की खबर भेज रहा है।

लेकिन जैसे हर यात्रा की कहानी में सिर्फ मंजिल नहीं होती। एक लंबी सड़क भी होती है। वैसे ही विज्ञान की इस विकास यात्रा की कहानी भी सीधी और आसान नहीं है।

एक समय ऐसा भी था, जब सिर्फ ये कहने के लिए कि पृथ्‍वी गोल है, कुछ लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इसी साल जुलाई में कैथलिक चर्च ने पूरी दुनिया से उन ऐतिहासिक अपराधों के लिए माफी मांगी है, जिसके खून से धर्म और चर्च के हाथ रंगे हैं।

विज्ञान की आधुनिक उपलब्धियों को उसके सही अर्थों में समझने और उसकी महत्‍ता को रेखांकित करने के लिए जरूरी है कि हम एक बार उस इतिहास से भी गुजरे लें, जो अनेक दर्दनाक कहानियों का गवाह रहा है।

पहली कहानी: जर्दानो ब्रूनो को शहर के बीचोंबीच जिंदा जलाया

तारीख 17 फरवरी, साल 1600। शहर रोम। उस दिन शहर में सुबह से एक उत्‍सव का सा माहौल था। शहर के बीचोंबीच टाइबर नदी के किनारे बने एक विशालकाय किले में वह कैद था। 8 साल चले लंबे मुकदमे के बाद चर्च ने फैसला सुनाया कि उसके विचार, उसकी लिखी किताबें बाइबिल और चर्च के खिलाफ हैं।

उसके विचार चर्च के प्रति लोगों में अविश्‍वास पैदा कर सकते हैं और समाज में अराजकता फैला सकते हैं। चर्च ने माना कि उसका अपराध इतना बड़ा है कि इसकी सजा सिर्फ मृत्‍युदंड के रूप में दी जा सकती है। और वह मृत्‍युदंड भी उतना ही भयावह था, जो 1600 साल पहले जीजस क्राइस्‍ट को दिया गया था।

चर्च ने उसे सामूहिक रूप से शहर के बीचोंबीच जिंदा जलाने का फरमान सुनाया।

उसका नाम था जर्दानो ब्रूनो। 1548 में इटली के नेपल्‍स के एक छोटे से कस्‍बे नोला में जन्‍मा एक बच्‍चा, जिसे इतिहास में एक महान दार्शनिक और खगोलशास्‍त्री के रूप में दर्ज होना था।

और वह विचार जिसके लिए चर्च ने उसे मृत्‍युदंड दिया था, वह यह था कि अंतरिक्ष का केंद्र पृथ्‍वी नहीं, बल्कि सूर्य है। पृथ्‍वी सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगाती है और चंद्रमा पृथ्‍वी के चारों ओर। धरती चपटी नहीं है। धरती गोल है। खगोल विज्ञान की वह सारी बुनियादी प्रस्‍थापनाएं, जो हमारी आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों का आधार हैं।

दूसरी कहानी: वह किताब जो चर्च के तहखाने में 100 साल दबी रही

यही बातें ब्रूनो से 75 साल पहले निकोलाई कोपरनिकस ने भी कही थीं। मजे की बात ये है कि जिन वेधशालाओं में पहले कोपरनिकस और फिर जर्दानो ब्रूनो ने अनेकों वर्षों तक रात-रात भर जागकर अंतरिक्ष का, सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और तारों की गतिविधियों का अध्‍ययन किया, वह वेधशालाएं चर्च ने ही बनवाई थीं। लेकिन इसके पीछे चर्च की अपनी वजह थी।

संसार की सभी सभ्‍यताओं में समय की गणना का शुरुआती तरीका चंद्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं का अध्‍ययन करना ही था। बाइबिल में लिखा था कि पृथ्‍वी अंतरिक्ष का केंद्र है और सूर्य पृथ्‍वी के चारों ओर चक्‍कर लगाता है।

पृथ्‍वी की केंद्रीयता का सिद्धांत पृथ्‍वी पर मौजूद जीवन और मनुष्‍यों की श्रेष्‍ठता के सिद्धांत से उपजा था। चर्च बुनियादी तौर पर ज्ञान की राह में रोड़ा नहीं था। लेकिन वह उतने ही ज्ञान का हिमायती था, जो उनके धर्मग्रंथ में लिखी बातों को चुनौती न दे।

चर्च को वेधशालाओं और ग्रहों आदि की गति की गणना की जरूरत इसलिए पड़ी कि वह समय का बेहतर आंकलन कर ईस्‍टर की सही तारीख बता सके। लेकिन जब कोपरनिकस ने वास्‍तव में अध्‍ययन और आंकलन शुरू किया, उसे समझ में आया कि सत्‍य तो कुछ और ही था।

चूंकि चर्च के साथ कोपरनिकस के संबंध अच्‍छे थे, इसलिए उन्‍हें कोई दंड नहीं दिया गया, लेकिन उनकी लिखी किताब Commentariolus आने वाले सौ सालों तक प्रतिबंधित रही। चर्च ने अंतरिक्ष विज्ञान की नई खोजों का प्रसार नहीं होने दिया।

चर्च की वेधशाला की लाइब्रेरी में कहीं छिपाकर रखी गई ये किताब Commentariolus ही एक बार जर्दानो ब्रूनो के हाथ लग गई। देर रात, जब सब सो जाते और चारों ओर घुप्‍प सन्‍नाटा पसरा होता, मोमबत्‍ती की रौशनी में ब्रूनो कोपरनिकस की वो किताब पढ़ते। वहीं से वह जिज्ञासा जन्‍मी, जो जर्दानो ब्रूनो को कोपरनिकस के सिद्धांतों को वैज्ञानिक ढंग से साबित करने तक ले गई।

बरसों तक कोपरनिकस की किताब में लिखी बातों को जर्दानो ब्रूनो वेधशाला की छत में बैठकर अपने बनाए टेलिस्‍कोप के सहारे जांचते रहे।

20 साल लंबे परीक्षणों का नतीजा कोपरनिकस के विचारों को आगे बढ़ा रहा था। सूर्य और पृथ्‍वी के साथ चंद्रमा का अध्‍ययन यह साबित कर रहा था कि चंद्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं का कारण यह पृथ्‍वी नहीं, बल्कि सूर्य है। चंद्रमा पृथ्‍वी के चारों ओर घूम रहा है। पृथ्‍वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है। और इन दोनों की गति के चंद्रमा की कलाओं को बदल रही है।

जेम्‍स जॉयस के 1939 में प्रकाशित उपन्‍यास Finnegans Wake में ब्रूनो पर चले मुकदमे और उसके मृत्‍युदंड का विस्‍तृत वर्णन है। जैसाकि जॉयस लिखते हैं, सच पूछो तो चर्च को इस बात से कोई दिक्‍कत नहीं थी कि अंतरिक्ष का केंद्र सूर्य हो या पृथ्‍वी। डर बाइबिल में लिखी बातों के गलत साबित हो जाने का था।

रोमन कैथलिक चर्च का दुनिया के उत्‍तरी हिस्‍से में बढ़ता प्रभाव जिस तरह लोगों के बीच बाइबिल में लिखी बातों को संसार के पहले और अंतिम सत्‍य की तरह पेश करना था, वैज्ञानिक खोजें उस बाइबिल को ही गलत साबित कर रही थीं। चर्च के एकछत्र आधिपत्‍य को बनाए रखने के लिए जरूरी था कि यह बातें आम लोगों तक न पहुंचने पाएं।

तीसरी कहानी: गैलीलियो ने माफी मांग ली, फिर भी जिंदगी जेल में गुजरनी पड़ी

जर्दानो ब्रूनो के बाद उन्‍हीं वैज्ञानिक खोजों को आगे बढ़ाने वाले एक और खगोलशास्‍त्री गैलीलियो गैलीली भी चर्च के क्रोध और आतंक का शिकार हुआ। गैलीलियो ने ब्रूनो और कोपरनिकस की किताबें पढ़ी थीं। विवेक और तर्कबुद्धि कहती थी कि यह बातें सत्‍य हैं। प्रकृति में सबकुछ सापेक्षता के सिद्धांत के साथ गतिशील है। (यह आइंस्‍टाइन का दिया सापेक्षता का सिद्धांत नहीं था।) इसे ऐसे समझें कि हर एक बात दूसरी बात को प्रभावित कर रही है।

ग्रहों की गति समय को, समय मौसम को, मौसम धरती को, धरती जीवन को, जीवन आसपास मौजूद सारी गतियों को। यह सब आपस में एक ऐसे तार से जुड़े हुए हैं कि एक हिस्‍से में हुई मामूली सी हरकत भी बाकी हिस्‍सों की दिशा और प्रभाव को बदल सकती है।

गैलीलियो ने कहा कि ईश्‍वर की भाषा गणित है । क्‍योंकि गणित में हरेक जोड़-गुणा-भाग आखिरी नतीजे को बदल देता है।

गैलीलियो ने अपने हाथों से एक दूरबीन बनाई थी और उसकी मदद से तीन दशकों तक खगोलीय पिंडों का अध्‍ययन किया। यह अध्‍ययन गैलीलियो को उसी नतीजे तक ले गया, जहां कोपरनिकस और ब्रूनो पहुंचे थे। चर्च ने बहुत सालों तक उन पर मुकदमा चलाया। वे 63 साल के थे, जब चर्च ने कहा कि अगर वह सार्वजनिक रूप से माफी मांग लें तो चर्च उन्‍हें माफ कर देगा।

कई सालों से जेल में भीषण यंत्रणाएं झेल चुकने के बाद गैलीलियो में ताकत नहीं बची थी। उन्‍होंने माफी मांगने का फैसला किया। चर्च ने गैलीलियो को पूरी स्क्रिप्‍ट दी थी कि उन्‍हें सार्वजनिक रूप से क्‍या कहना है। यह कि उनके वैज्ञानिक सिद्धांत गलत हैं। पृथ्‍वी ही अंतरिक्ष का केंद्र है। बाइबिल में जो कुछ लिखा है, वो सही है और वो शर्मिंदा है अपने हर सिद्धांत के लिए।

गैलीलियो ने माफी मांग ली, लेकिन चर्च ने उन्‍हें तब भी नहीं छोड़ा। उनकी बाकी जिंदगी जेल में गुजरी।

चौथी कहानी: दुनिया की पहली महिला खगोलशास्‍त्री की हत्या, लाइब्रेरी जला दी

जाते हुए बस एक आखिरी जिक्र हाइपेशिया का भी। कोपरनिकस से भी 1200 साल पहले सन् 350 में अलेक्‍जेंड्रिया में जन्‍मी दुनिया की पहली महिला दार्शनिक और खगोलशास्‍त्री। गणितज्ञ पिता की बेटी। हाइपेशिया ने भी कहा कि अंतरिक्ष का केंद्र सूर्य नहीं, पृथ्‍वी है।

अलेक्‍जेंड्रिया, जो एक समय अपने ज्ञान, सांस्‍कृतिक विरासत और दुनिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी के लिए जाना जाता था, एक दिन वहां जूलियस सीजर आया और रोमन कैथलिक चर्च भी। लाइब्रेरी जला दी गई, हाइपेशिया मार डाली गई। विरासत नष्‍ट कर दी गई।

लेकिन ज्ञान तो उस फीनिक्‍स परिंदे की तरह होता है, जो मरकर भी बार-बार जन्‍म लेता है। जिन्‍हें एक वक्‍त जलाया गया, मारा गया, यंत्रणाएं दी गईं, आज उन्‍हीं के मैमोरियल बने हैं। उनकी कुर्बानियों की याद में, उनकी प्रतिभा के सम्‍मान में किताबें लिखी गई हैं। उनका नाम और उनका काम आज हजारों साल बाद भी जिंदा है। वह इतिहास में अमर हैं।

कैसा लगता है साल 2023 में बैठकर इन कहानियों से गुजरना। यह इंटरनेट और एआई का दौर है। अब हम फैक्‍ट और साइंस की बात करते हैं। मनुष्‍य ने इन 600 सालों में जितना विकास किया है, सबकुछ की बुनियाद में विज्ञान है, वैज्ञानिक सोच और चिंतन है।

जिस लैपटॉप में ये आर्टिकल लिखा जा रहा है और जिस स्‍मार्टफोन में आप इसे पढ़ रहे हैं, सबकुछ विज्ञान की देन है। आज जीवन का कोई ऐसा कोना नहीं, जो विज्ञान से अछूता हो।

लेकिन यह जानना जरूरी है कि आज जब मनुष्‍य चांद तक पहुंच गया है, मंगल पर पानी की खोज कर ली है और ठीक इस वक्‍त जब हमारा चंद्रयान-3 अंतरिक्ष के रास्‍ते में है, इस सबके लिए पूरी मानवता इतिहास के महान वैज्ञानिकों की ऋणी है। वे लोग, जिन्‍होंने सत्‍ता के सामने खड़े होने का साहस दिखाया। सत्‍य के लिए कुर्बानियां दीं।

और जीवन का यह सबसे बुनियादी सबक- सबकुछ हो चुकने के बाद जो बचा रह जाता है, वह सत्‍य है, वह विज्ञान है। वह हमारी मनुष्‍यता है।

( लेखिका विज्ञानी अध्येता हैं।)



\
Newstrack

Newstrack

Next Story