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40 करोड़ यूजर्स पर आफत, सरकार लेने जा रही ये बड़ा फैसला
सरकार ने इस नये क़ानून में जो प्रावधान किए हैं उसके अनुसार फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और टिकटॉक को सरकारी एजेंसियों द्वारा मांगे जाने पर यूजर की पहचान का खुलासा करना होगा।
नई दिल्ली: सोशल मीडिया और मैसेजिंग एप्स जैसे- फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और टिकटॉक पर यूजर्स की गोपनीयता अब बरक़रार नहीं रह पाएगी। केंद्र सरकार ने इसके लिए नया कानून बनाने का फैसला लिया है। यह कानून जल्द ही आने की संभावना है। सरकार ने इस नये क़ानून में जो प्रावधान किए हैं उसके अनुसार फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और टिकटॉक को सरकारी एजेंसियों द्वारा मांगे जाने पर यूजर की पहचान का खुलासा करना होगा। स्पष्ट है कि नया कानून आने पर देश के करीब 40 करोड़ सोशल मीडिया यूजर्स इससे प्रभावित होंगे।
सरकार का निर्देश होगा सख्ती से लागू
सोशल मीडिया पर फेक न्यूज, चाइल्ड पोर्न, रंगभेद और आतंकवाद संबंधित कंटेंट के प्रचार प्रसार को देखते हुए पूरी दुनिया में उनकी जिम्मेदारी तय करने की कोशिशें हो रही हैं। इसके लिए सोशल मीडिया से संबंधित नियम-कायदे बनाए जा रहे हैं, लेकिन भारत में बन रहा कानून इन सबसे विस्तृत है। इसके तहत सोशल मीडिया कंपनियों को सरकार का निर्देश मानना ही होगा और इसके लिए वारंट या अदालत के आदेश की अनिवार्यता भी नहीं होगी।
पिछले साल दिसंबर में ही आ गया था प्रावधान
भारत सरकार ने सोशल मीडिया से संबंधित दिशानिर्देश दिसंबर, 2018 में जारी किए थे और इस पर आम लोगों से सुझाव मांगे गए थे। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने नए प्रावधानों का विरोध करते हुए इन्हें निजता के अधिकार के खिलाफ बताया था, लेकिन जानकारी के मुताबिक सरकार इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं करने जा रही। प्रस्तावित कानून में सोशल मीडिया कंपनियों को सरकार के आदेश पर 72 घंटे के अंदर पोस्ट का मूल पता करने का प्रावधान किया गया था।
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भारत में करीब 50 करोड़ लोग इंटरनेट का करते हैं उपयोग
उनके लिए कम से कम 180 दिन तक रिकॉर्ड सुरक्षित रखना भी अनिवार्य किया गया था। ये नियम उन सभी सोशल मीडिया कंपनियों के लिए हैं जिनके 50 लाख से ज्यादा यूजर हैं। भारत में करीब 50 करोड़ लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि विदेशी यूजर्स इस कानून के दायरे में आएंगे या नहीं।
झूठी ख़बरें व्हाट्सएप पर ज्यादा वायरल होती हैं
दुनिया भर में सुरक्षा एजेंसियां तकनीकी कंपनियों के रवैये से परेशान हैं, क्योंकि वे सरकारी जांचों में मदद नहीं करतीं। कंपनियां अक्सर यूजर की पहचान बताने या डिवाइस को अनलॉक करने जैसी बातों से इंकार करती हैं। इससे कई मामलों, खासकर आतंकवाद से जूड़े मामलों की जांच प्रभावित होती है।
भारत के लिए इंटरनेट और फेक न्यूज अपेक्षाकृत नई चीजें हैं, लेकिन 2017-18 में व्हाट्सएप पर बच्चा चोरी से संबंधित झूठी खबरें खूब वायरल हुई और नतीजा यह हुआ कि भीड़ की हिंसा में तीन दर्जन से ज्यादा लोगों की जान चली गई।
सरकार के आग्रह पर भी व्हाट्सएप ने निजता के कानून का हवाला देते हुए इन अफवाहों के मूल उद्गम की जानकारी देने से मना कर दिया था। कंपनी ने कहा था कि इससे उसके करीब 40 करोड़ यूजर्स की गोपनीयता खतरे में पड़ जाएगी। कंपनी ने इसकी बजाय फेक न्यूज को रोकने के लिए शोध में सहयोग की बात कही थी।
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नए क़ानून से नाखुश हैं सोशल मीडिया कंपनी
व्हाट्सएप ने इस संबंध में कहा कि वह सुरक्षा के मामले में कोई समझौता नहीं करेगी क्योंकि इससे यूजर्स असुरक्षित महसूस करेंगे। वहीं, टेक कंपनियों और नागरिक अधिकार समूह नए कानून को सेंसरशिप और नई कंपनियों के लिए बोझ बता रहे हैं। उन्होंने इस मामले में केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद को एक लेटर भी भेजा है।
मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि मोजिला और विकीपीडिया नए कानून के दायरे में नहीं आएंगी। ब्राउजर, ऑपरेटिंग सिस्टम, सॉफ्टवेयर विकसित करने वाले प्लेटफॉर्म आदि को इससे बाहर रखा गया है, लेकिन सभी सोशल मीडिया कंपनियों और मैसेजिंग एप के लिए इन्हें मानना अनिवार्य होगा।
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