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मुंबई बम ब्लास्ट: जिंदगियां बचाने वाले जांबाज मेजर, जाने क्या है पूरी कहानी
मुंबई बम धमाके में ढाई सौ से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी और आठ सौ से ज्यादा लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। ऐसे में मेजर बसंत जाधव जिन्होंने हजारों लोगों की जान बचाई तो वहीं दूसरी तरफ कीर्ति अजमेरा इस बम धमाकों के चश्मदीद गवाह हैं और आज भी उस त्रासदी को झेल रहे हैं।
मुंबई: साल 1993 की तारीख 12 मार्च शुक्रवार का दिन भारत की सबसे बड़ी आर्थिक नगरी मुंबई के लिए एक काला दिन था। मुंबई में इस दिन हुए बम धमाकों से पूरा देश हिल उठा था। यह सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी कि यह बम धमाका सिर्फ एक नहीं था बल्कि 12 सीरियल बम धमाकों को आतंकवादियों ने अंजाम दिया था। 28 साल पहले हुए इन बम धमाकों की आज बरसी है। इस बम धमाकों में सैकड़ों लोग मौत के मुंह में समा गए और हज़ारों लोग घायल हो गए थे। लेकिन एक ओर जहां मौत का सौदा करने वाले दरिंदे आतंकवादी अपने मंसूबे में कामयाब हो गए तो वहीं दूसरी तरफ जिंदगियां बचाने वाले मसीहा भी होते हैं। यहां हम आपको दो ऐसे ही जांबाजों के बारे में बताएंगे जिनका सीधा ताल्लुक इस घटना से था।
मुंबई के अतीत का वो बदनुमा दाग
मुंबई के अतीत का वो बदनुमा दाग है, जिसे शायद ही कभी मिटाया जा सके। 28 साल पहले आज ही के दिन देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में सिलसिलेवार तरीके से एक दो नहीं, इस बम धमाके में ढाई सौ से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी और आठ सौ से ज्यादा लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। ऐसे में मेजर बसंत जाधव जिन्होंने हजारों लोगों की जान बचाई तो वहीं दूसरी तरफ कीर्ति अजमेरा इस बम धमाकों के चश्मदीद गवाह हैं और आज भी उस त्रासदी को झेल रहे हैं।
मेजर वसंत जाधव ने हजारों लोगों की जान बचाई
75 साल के रिटायर्ड मेजर वसंत जाधव ने अपनी जान की परवाह किए बिना हजारों लोगों की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई थी। मेजर वसंत जाधव ने 12 मार्च 1993 के दिन प्रशासन के एक अनुरोध पर, बिना अपनी जान की परवाह किए देशहित के काम मे लग गए। धमाके वाले दिन मेजर वसंत जाधव की ड्यूटी मुंबई एयरपोर्ट पर लगाई गई थी। प्रशासन की तरफ से मेजर को यह जिम्मेदारी दी गई कि वो बॉम्बे बम स्क्वायड टीम का नेतृत्व करें और एक्सप्लोसिव मटेरियल की पहचान करें। बम स्क्वायड टीम का नेतृत्व करते मेजर जाधव ने कई ऐसे हैंड ग्रेनेड ढूंढ़ निकाला, जिससे कि हजारों लोगो की जान बचाई गई।
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मेजर वसंत जाधव के पास आया एक गुमनाम फोन
मेजर जाधव की जिम्मेदारी यहीं नहीं खत्म हुई, बल्कि हमले के 2 दिन बाद यानी कि 14 मार्च 1993 को उनके पास एक फोन आता है। फोन पर उनसे कहा जाता है कि दादर स्टेशन के बाहर एक लावारिस स्कूटी मिली है। पुलिस को लग रहा है इसमें कुछ विस्पोटक पदार्थ है। इसीलिए वो जल्द से जल्द दादर स्टेशन पहुंचे। मेजर जाधव ने दादर स्टेशन पहुंचकर पाया कि लावारिस स्कूटर में एक-दो नही, बल्कि 12 किलो आरडीएक्स रखा हुआ है, जिसे अगर समय रहते हुए नहीं निकाला गया तो हजारों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती हैं।
12 किलो आरडीएक्स को डिफ्यूज किया मेजर जाधव ने
3 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद मेजर जाधव में उस पूरे 12 किलो आरडीएक्स को डिफ्यूज कर दिया। मेजर जाधव के इस शौर्य भरे काम को देखते हुए, उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार में जाधव को बधाई दी थी। उनके ग्रुप के सभी मेंबर को आगे चलकर किसी ना किसी तरह सम्मानित किया गया। मेजर को एक तरफ जहां अपने ग्रुप के सभी मेंबर के सम्मानित होने पर गर्व है, वहीं दूसरी तरफ उनको यह भी लगता है कि सरकार से कहीं ना कहीं उनको उस तरह का सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हकदार हुआ करते थे।
कीर्ति अजमेरा आज भी मुंबई बम धमाकों का दंश झेल रहे हैं
कीर्ति अजमेरा सैकड़ों लोगों में एक ऐसे शख्स हैं, जो 28 साल पहले हुए इस सीरियल बम ब्लास्ट का शिकार हो गए थे। लगभग तीन दशक से लगातार कष्ट की जिंदगी जीने वाले इस बहादुर आदमी ने अपने इलाज में अब तब करीबन 60 लाख रुपये खर्च कर डाले हैं, लेकिन उन्हें अब तक सरकार की तरफ से किसी भी तरीके की सहायता राशि प्राप्त नहीं हुई है। धमाके वाले दिन अजमेरा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सामने खड़े थे, जहां धमाका हुआ। बम धमाके से अजमेरा का शरीर कांच के टुकड़ों से छलनी हो गया था। गंभीर से रूप से घायल अजमेरा अब तक 60 से ज्यादा बार अपना ऑपरेशन करा चुके हैं, जिसमें करीबन अब तक 60 लाख से ज्यादा का खर्च आया है।
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बंबई स्टॉक एक्सचेंज के परिसर के पास हुए धमाकों का शिकार
उस काले दिन को याद करते हुए अजमेरा ने बताया कि 'मैं मानता हूं कि सरकार उस मुआवजे को देने में पूरी तरह नाकाम रही, जो मुझे मिलना चाहिए था।' उस दर्दनाक हादसे को याद करते हुए उन्होंने बताया, '12 मार्च, 1993 को मैं बंबई स्टॉक एक्सचेंज में काम कर रहा था, जहां मैं मौत से बचने में कामयाब रहा। बंबई स्टॉक एक्सचेंज के परिसर में प्रवेश करने से पहले ही धमाका हो गया। हालांकि धमाके के बाद मैं बेहोश हो गया था।' उन्होंने कहा, 'जब मैं होश में आया तो चारों तरफ बिखरे खून दिखाई दिए और सड़क पर कई क्षत-विक्षत शरीर के टुकड़े पड़े थे।'
अब तक नहीं मिल पाया मुआवजा
उस हादसे को याद करते हुए उन्होंने बताया कि 'मुझे एक टैक्सी से जीटी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वे मुझे भर्ती नहीं कर सके, क्योंकि वहां पर कोई बेड ही खाली नहीं था। अस्पताल दो बम धमाकों के बीच में स्थित था। धमाके में घायल हुए एक शख्स की मौत के बाद मुझे बेड मिला। मैं भाग्यशाली था कि मुझे जल्दी से अस्पताल पहुंचाया गया और मुझे एक खाली बेड मिल गया। अजमेरा बताते हैं कि पिछले तीन दशक से में अपने साथ-साथ उन तमाम ब्लास्ट विक्टिम के लिए सरकार से मुआवजे की मांग करते आ रहा हूं, लेकिन, मेरी इस अपील का सरकारी तंत्र पर कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है।
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यह सरकार के लिए शर्मनाक है।
अजमेरा का कहना है कि, 'मुझे अब पैसे की जरूरत नहीं है, लेकिन मैं देखना चाहता हूं कि सरकार मुझे मेरी मुआवजा राशि कब तक देती है। सवाल यह नहीं है कि मैं अमीर हूं या गरीब। यह सरकार के लिए शर्मनाक है। देश में ऐसे बहुत से पीड़ित हैं जो मेरी तरह ऐसे हादसों के शिकार हुए और वे अपना इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं। मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे मेरे परिवार और दोस्तों का पर्याप्त सहयोग मिला। मैंने इलाज के दौरान आने वाले खर्च को वहन कर लिया।'
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