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यहां शहीद के लिए हर रोज लगाया जाता है बिस्‍तर, परोसा जाता है भोजन

यह जान कर हैरानी होगी कि आज से करीब 79 साल पहले लंदन में फंसी के फंदे को चूमने वाले शहीद के लिए क्‍या कोई बिस्‍तर लगाता होगा।

Roshni Khan
Published on: 26 Dec 2019 11:16 AM IST
यहां शहीद के लिए हर रोज लगाया जाता है बिस्‍तर, परोसा जाता है भोजन
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दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: यह जान कर हैरानी होगी कि आज से करीब 79 साल पहले लंदन में फंसी के फंदे को चूमने वाले शहीद के लिए क्‍या कोई बिस्‍तर लगाता होगा। वो भी एक या दो दिन नहीं बल्कि हर रोज बिस्‍तर लगाया जाता है और हर तिसरे दिन चादरें बदली जाती हैं। शहीद के लिए सुबह के नाश्‍ता से लेकर लंच और डिनर के लिए थाली भी लगाई जाती है। जी हां यह हैरान कर देने वाली खबर सच है और ऐसा होता है अमृतसर के सेंट्रल यतीमखाना में।

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अमृतसर-लाहौर रोड (ग्रैंट टैंक रोड) पर स्थित पुतलीघर चौक में 1902 में बने केंद्रीय खालसा यतीमखाना में शहीद ऊधम सिंह पले-बढ़े। यतीम खाना के सुपरिंटेंडेट डॉ. बलबीर सिंह सैनी बताते हैं कि 26 दिसंबर 1899 को संगरूर जिले के सुनाम में जन्‍मे ऊधम सिंह और उनके बड़े भाई मुक्‍ता सिंह को इसी यतीम खाने में रखा गया था। ऊधम सिंह के जन्‍म के दो साल बाद 1901 में उनकी माता का और 1907 में ऊधम सिंह और मुक्‍ता सिंह के सिर से पिता का साया उठ गया। इसके बाद इन दोनों भाईयों को इसी यतीम खाना में रखा गया। करीब दस साल बाद 1917 में ऊधम सिंह के बड़े भाई मुक्‍ता सिंह का इंतकाल हो गया।

13 मार्च 1940 को लंदन में की थी ऊधम सिंह ने की थी जनलर डॉयर की हत्‍या

13 अप्रैल 1919 को रोलेटएक्‍स के विरोध में जलियांवालाबाग 20 हजार से अधिक लोग मौजूद थे। इन लोगों को पानी पिलाने के लिए अनाथ आश्रम के अन्‍य बच्‍चों के साथ-साथ ऊधम सिंह की भी ड्यूटी लगी थी। इस बीच जनरल डयार ने अपने पचास सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग में में प्रवेश किया और निहत्‍थे लोगों पर गोली चलाने का हुक्‍म जारी कर दिया। इस अप्रत्‍याशित घटना में करीब सौ से अधिक लोग मारे गए थे।

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1919 तक यतीमखाने में रहने के बाद ऊधम सिंह अलग-अलग नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका में यात्रा कर 1934 में लंदन पहुंचे और वहां पर 9 एल्‍डरल स्‍ट्रीट कमर्शियर रोड पर रहने लगे। यहां रहते हुए उन्‍होंने अपने मिशन को पूरा करने के उद्देश्‍य से एक कार और छह गोलियां वाली रिवाल्‍वर खरीद। यहां पर रहते हुए उन्‍हों ने जलियांवाला बाग हत्‍याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रॉयल सेंट्रल ऐशियन सोसायटी के नंदन के कॉक्‍सटन हाल में हुए बैठक में माइकल ओडायर को गोलियों से छलनी कर जलियांवाला बाग हत्‍याकांड का बदला लिया। इस घटना के बाद ऊधम सिंह को गिरफ्तार कर उनपर मुकदमा चलाया गया और 31 जुलाई 1940 को नंदन के पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

सर्वधर्म समभाव के प्रतीक भी ऊधम सिंह

ऊधम सिंह के संबंध में इतिहासकार डॉक्‍टर सर्वानंद लिखते हैं वह महान क्रांतिकारी होने के साथ-साथ सर्व धर्म समभाव के प्रतीक भी थे। इसलिए उन्‍होंने अपना नाम बदल कर राम मोहम्‍मद सिंह आजाद रख लिया था। जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों से संबंध रखता है।

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संरक्षित हैं यादें

यतीमखान प्रबंधन ने शहीद ऊधम सिंह की यादों और उनसे जुड़ी वस्‍तुओं को संभाल रखा है। यतीमखाने की उस छोटी सी कोठरी को जिसमें ऊधम सिंह रहा करते थे को संग्रहालय का रूप दे रखा है। इस कमरे में थाली, कटोरी, गिलास, लोटा, चारपाई और उनके दाखिला रजिस्‍टर रखा है जिसमें उनका नाम चढ़ा हुआ था। ये सभी चीजें युवाओं को देशभक्ति की प्रेरणा देती हैं।

प्रबंधन का मानना है कि यहां आज भी शहीद ऊधम सिंह की आत्‍मा आती है। इसलिए हर शाम उनके लिए बिस्‍तर लगाया जाता है। यहीं नहीं उनके लिए खाने की थाली भी रखी जाती है।



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