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शर्माइन का सोफा पांडे का! सिर्फ एड में ही नहीं, रियल में देखी कई सदियां
विज्ञापन जिससे लोग आसानी से मार्केट में बिक रही चीजों के उपयोग और उसके इस्तेमाल को देखकर प्रभावित होते हैं और दर्शकों को सामान लेते समय तक विज्ञापन की याद रहती है। टीवी और सोशल मीडिया पर इन दिनों एक विज्ञापन जिसके चर्चें तो खूब हैं ही, इसके साथ ही लोग इस विज्ञापन को देखकर मजे भी करते है।
नई दिल्ली : विज्ञापन जिससे लोग आसानी से मार्केट में बिक रही चीजों के उपयोग और उसके इस्तेमाल को देखकर प्रभावित होते हैं और दर्शकों को सामान लेते समय तक विज्ञापन की याद रहती है। टीवी और सोशल मीडिया पर इन दिनों एक विज्ञापन जिसके चर्चें तो खूब हैं ही, इसके साथ ही लोग इस विज्ञापन को देखकर मजे भी करते है। जीं हां ये नया विज्ञापन है पीडिलाइट के फेविकोल का। टीवी पर जितनी बार भी ये विज्ञापन आता है लोग इसी के साथ गुनगुनाने को मजबूर हो जाते हैं।
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पीडिलाइट का शर्माइन, मिश्राइन विज्ञापन
इस विज्ञापन में एक सोफे पर आधारित कहानी दिखाई गई है। पीडिलाइट फेविकोल ने अपने 60 साल पूरे होने के जश्न में ये नया विज्ञापन लॉन्च किया था।
फेविकोल के क्रिएटिव विज्ञापन हमेशा से लोगों का ध्यान आकर्षित करते रहे हैं। लेकिन इस बार के क्रिएटिव विज्ञापन में तो गजब ही कर दिया। पूरे विज्ञापन में ब्रांड की खासियत बताई गई है।
बस ये बात और है कि जहां कुछ लोग इस विज्ञापन को बेहद पसन्द कर रहे हैं वहीं इस विज्ञापन को काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है। सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने विज्ञापन को जातिवादी बताया है और ये सवाल उठाया कि इसमें शर्माइन, मिसिराइन जैसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया गया है। आखिर ये लोग विज्ञापन में कहना क्या चाहते हैं।कुछ लोग विज्ञापन पर लगी धुन चोरी करने का भी आरोप लगा रहे हैं।
लेकिन इन सब के बाद भी ये विज्ञापन ट्रेंड में है। विज्ञापन में 60 साल तक सोफे के बने रहने की कहानी बेहद रोमांचक है। लेकिन इस विज्ञापन के पीछे सोफे की असली कहानी क्या है यह नहीं पता। अब इस विज्ञापन को बनाने वालों ने सोफे के पीछे की कहानी को साझा किया और बताया कि इसके बनने की प्रेरणा कहां से मिली।
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विज्ञापन के पीछे की पूरी कहानी
विज्ञापनमैन और फिल्ममेकर प्रसून पांडे ने सोफे के पीछे की पूरी कहानी मीडिया से बताई है। प्रसून ने कहा- "तकरीबन एक साल पहले पीडिलाइट के चेयरमैन मधुरकर पारीख और पीडिलाइट के एमडी के बीच एक 1 मिनट की मीटिंग हुई थी।
जिसके बाद ये प्लान किया गया कि अब फेविकोल के नए विज्ञापन की जरूरत है। ये पहली मीटिंग थी। दूसरी मीटिंग 7 महीने बाद हुई। मीटिंग आधे घंटे तक चली। मीटिंग के पहले 10 मिनट में ही विज्ञापन के आइडिया को काफी पसंद और अप्रूव किया गया।"
"हालांकि, फेविकोल के 60 साल के सफर को एक स्क्रिप्ट में दिखाना बेहद ही मुश्किल था। लेकिन 90 सेकेंड की एक फिल्म के लिए के लिए स्क्रिप्ट तैयार की गई और स्क्रिप्ट थी फेविकोल सोफा।
फेविकोल सोफा का आइडिया जितना सिंपल था उतना ही मुश्किल उसे एक्सप्लेन करना था। लेकिन उसकी स्क्रिप्ट को तारीफ की गई। सभी जानते हैं कि फेविकोल की जड़ें भारतीय सिद्धांतों से जुड़ी हुई हैं।"
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लखनऊ से खरीदा था सोफा
आगे प्रसून ने कहा- "जयपुर के पांडे हाउस में एक सोफा था इसी से इस विज्ञापन की प्रेरणा मिली। काउच को मेरे पापा 1946 में लखनऊ से लेकर आए थे। जब ब्रिटिश अपने सामान को बेचकर जा रहे थे। हमारे घर में जो सामान आया था उसमें दो सिंगल चेयर और दो साइड टेबल आई थी। जिसे सोफे में बदला गया। जब ये सोफा आया था तो अलग था, लेकिन बाद में इस सोफे को कई अवतार दिए गए।"
"जब हम स्कूल में थे तो ये ऑरेंज कलर का था। लेकिन जब हमारी बहन की शादी हुई तबू तक इसे कई लुक दिए जा चुके थे। ऐसी और भी कई कहानी हैं जिससे सोफा फिल्म तैयार करने में मदद मिली।"
मीडिया से हुई बातचीत में प्रसुन ने विज्ञापन की पूरी जानकारी साझा की। इस ट्रेंड कर रहे फेविकोल के 90 सेंकेड के वीडियो में ब्रांड के नाम के लिए जबरदस्त स्क्रिप्ट बनाई। जो अब बहुत पसंद की जा रही है।
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