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कृषि बिलों का विरोध राष्ट्रपति की चौखट तक पहुंचा, अकाली दल ने उठाया ये कदम

कृषि विधेयकों के संसद से पारित होने के बाद विपक्षी बलों का विरोध अब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की चौखट तक पहुंच गया है। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर इन कृषि बिलों को मंजूरी न देने का अनुरोध किया है।

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Published on: 21 Sept 2020 9:08 PM IST
कृषि बिलों का विरोध राष्ट्रपति की चौखट तक पहुंचा, अकाली दल ने उठाया ये कदम
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कृषि बिलों का विरोध राष्ट्रपति की चौखट तक पहुंचा, अकाली दल ने उठाया ये कदम

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: कृषि विधेयकों के संसद से पारित होने के बाद विपक्षी बलों का विरोध अब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की चौखट तक पहुंच गया है। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर इन कृषि बिलों को मंजूरी न देने का अनुरोध किया है। अकाली दल के अलावा अन्य विपक्षी दलों ने भी इन बिलों को किसान विरोधी बताते हुए राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि वे इन पर हस्ताक्षर न करें। लोकसभा से पारित होने के बाद रविवार को किसानों से जुड़े दो बिल राज्यसभा से भी पास हो गए हैं। इसके बाद से ही इसे लेकर विपक्षी दलों का तेवर गरम होता जा रहा है।

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अकाली दल ने की राष्ट्रपति से मुलाकात

शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में सोमवार को पार्टी के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से मुलाकात की। अकाली दल ने राष्ट्रपति से कहा कि राज्यसभा से इन बिलों को जबर्दस्ती पास कराया गया है। इसलिए उन्हें किसान विरोधी इन बिलों पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए।

बिल को वापस संसद भेजने की मांग

राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद बादल ने कहां कि हमने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि उन्हें बिलों पर हस्ताक्षर करने के बजाय फिर से इन्हें संसद को वापस भेज देना चाहिए। अकाली दल ने इन बिलों को लेकर कड़ा रवैया अख्तियार कर रखा है।

बादल पहले ही कह चुके हैं कि जब तक केंद्र सरकार इन बिलों को वापस नहीं लेती है तब तक सरकार से कोई बातचीत नहीं की जाएगी। मोदी सरकार में अकाली दल की प्रतिनिधि हरसिमरत कौर ने इन बिलों पर विरोध जताते हुए मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था।

विपक्षी दलों ने लिखा राष्ट्रपति को पत्र

दूसरी ओर कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि वे इन दोनों प्रस्तावित कानूनों पर हस्ताक्षर न करें। विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रपति को लिखे पत्र में इन बिलों को जोर जबर्दस्ती से पारित कराने का आरोप लगाया गया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने विपक्षी की आवाज को जबरन बंद करके अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया है। सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपति को लिखे पत्र पर एनसीपी, द्रमुक, सपा, तृणमूल कांग्रेस, राजद और वाम दलों सहित अन्य दलों के नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं।

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भारी हंगामे के बीच पास हुए थे बिल

राज्यसभा में रविवार को भारी हंगामे और शोर-शराबे के बीच इन दोनों विधेयकों को ध्वनिमत से मंजूरी दी गई थी। हालांकि इस दौरान विपक्ष की ओर से इतना जमकर हंगामा किया गया कि उच्च सदन की सारी मर्यादा तार-तार हो गई।

विपक्षी सांसद उपसभापति हरिवंश के आसन तक पहुंच गए और उन्होंने बिल की प्रतियां और रूलबुक फाड़ डाली। टेबल पर चढ़ने के साथ ही मार्शल के साथ भी धक्का-मुक्की की गई। सांसदों ने टेबल पर चढ़कर नारेबाजी भी की और इस छीनाझपटी के दौरान उपसभापति का माइक भी टूट गया।

आठ विपक्षी सांसदों पर कार्रवाई

सोमवार को राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही सभापति वेंकैया नायडू ने आठ विपक्षी सांसदों को सदन से पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया। सभापति के इस फैसले के खिलाफ निलंबित सांसदों ने संसद परिसर में गांधी प्रतिमा पर धरना भी दिया।

सभापति ने उपसभापति हरिवंश पर कार्रवाई करने की मांग भी खारिज कर दी है। बारह विपक्षी दलों की ओर से रविवार को हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया था।

ममता ने किया फैसले का विरोध

इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आठ सांसदों को निलंबित करने के सभापति के फैसले पर विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि सभापति का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है और इससे केंद्र सरकार के तानाशाही भरे रवैये का पता चलता है।

ममता ने कहा कि इससे यह भी खुलासा होता है कि केंद्र सरकार का लोकतांत्रिक मूल्यों में तनिक भी विश्वास नहीं है। उन्होंने कहा कि केंद्र की फासिस्ट सरकार के खिलाफ संसद और सड़क पर लड़ाई जारी रहेगी।

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