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मणिपुर-त्रिपुरा: 1949 में हुई विलय संधि का विरोध जारी, कई इलाकें बंद

15 अक्टूबर 1949 को हुई विलय संधि को लेकर इन चरमपंथी संस्थानों का कहना है कि यह दिन हम काले दिन के रूप में मनाते हैं। चरमपंथी संस्थानों का ऐसा इसलिए कहना है क्योंकि वह इस संधि को नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि जिस साल में ये संधि हुई, वह एक बुरा दौर था।

Manali Rastogi
Published on: 17 Aug 2023 4:12 PM IST (Updated on: 17 Aug 2023 9:15 PM IST)
मणिपुर-त्रिपुरा: 1949 में हुई विलय संधि का विरोध जारी, कई इलाकें बंद
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इंफाल: मणिपुर के कई इलाकों में लोग आज काफी विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल जब देश आजाद हुआ, तब 21 सितंबर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बन गया। 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्य आयुक्त के अधीन भारतीय संघ में भाग ‘सी’ के राज्य के रूप में शामिल हुआ।

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बाद में इसके स्थान पर एक प्रादेशिक परिषद गठित की गई जिसमें 30 चयनित तथा दो मनोनीत सदस्य थे। हालांकि, मणिपुर की जनता आज भी इस विलय संधि से खुश नहीं हैं। इसलिए वह इसका विरोध कर आजादी के 70 साल बाद इसका विरोध कर रहे हैं।

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दरअसल यहां दो मणिपुर-आधारित चरमपंथी संगठनों समन्वय समिति (CorCom) और अलायंस ऑफ सोशलिस्ट यूनिटी, कंगलिपक (ASUK) ने त्रिपुरा की नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ ट्विप्रा (NLFT) के साथ मिलकर विलय संधि के प्रदर्शन में बंद बुलाया है। यह बंद 12 से 18 घंटों तक प्रभावी रहेगा और यह मणिपुर के कई इलाकों को प्रभावित कर रहा है।

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बता दें, मणिपुर में उग्रवादी संगठनों के बंद के आह्वान पर आज समूचे राज्य में जनजीवन बेहाल है। उग्रवादी संगठनों ने मणिपुर और त्रिपुरा के भारत में विलय की वर्षगांठ के मौके पर विरोधस्वरूप बंद का आह्वान हुआ है। बंद के दौरान सभी दुकानें बंद रही और सार्वजनिक यातायात सेवा स्थगित रही। प्रशासन ने किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए थे।

उग्रवादी संगठनों ने लगाया आरोप

उग्रवादी संगठनों ने एक बयान में आरोप लगाया गया कि दो स्वतंत्र राज्यों मणिपुर और त्रिपुरा को एक संधि के तहत बगैर कोई विशेष दर्जा दिए भारत में विलय कर दिया गया। इसके साथ ही विलय से पूर्व सार्वभौम राजनीतिक स्थिति की उपेक्षा करते हुए इन दोनों राज्यों को सबसे निचले वर्ग के राज्य का दर्जा दिया गया।

15 अक्टूबर 1949 को हुई विलय संधि को लेकर इन चरमपंथी संस्थानों का कहना है कि यह दिन हम काले दिन के रूप में मनाते हैं। चरमपंथी संस्थानों का ऐसा इसलिए कहना है क्योंकि वह इस संधि को नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि जिस साल में ये संधि हुई, वह एक बुरा दौर था।



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