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सामाजिक कार्यों ने दी नुपूर को अनोखी पहचान

आज वह वैश्विक स्तर की एक टीचर, मोटिवेशनल स्पीकर, मेंटल हेल्थ कौंसिलर एवं समाजसेवी हैं। पिछली सदी में मुर्शिदाबाद के एक छोटे से गांव में जन्मी इस लड़की की पृष्ठभूमि अत्यंत साधारण थी।

Dharmendra kumar
Published on: 6 Jan 2020 2:53 PM GMT
सामाजिक कार्यों ने दी नुपूर को अनोखी पहचान
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मयंक शर्मा

मुम्बई: आज वह वैश्विक स्तर की एक टीचर, मोटिवेशनल स्पीकर, मेंटल हेल्थ कौंसिलर एवं समाजसेवी हैं। पिछली सदी में मुर्शिदाबाद के एक छोटे से गांव में जन्मी इस लड़की की पृष्ठभूमि अत्यंत साधारण थी। एक परम्परागत ब्राह्मण परिवार में जन्मी नूपुर तिवारी एक दिन इतना लबा सफर तय करेगी शायद तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा। लेकिन इस असाधारण प्रतिभा की धनी लड़की ने मुर्शिदाबाद के एक गांव से कोलकता और कोलकता से जापान तक का कामयाब सफर तय किया। साधारण सी पृष्ठभूमि की इस असाधारण सी लड़की ने आगे चलकर बहुत से असाधारण काम किए। उसने न सिर्फ जापान बल्कि अफ्रीका और श्रीलंका जैसे देशों में भी बहुत से सामाजिक कार्य किए और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अनगिनत लोगों को संभाला। उनके कार्यों को संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी सराहा।

अब नुपूर काफी सयानी हो चुकी हैं और वह खुद भी एक मां हैं। वे भारतीय संस्कृति में रचे बसे प्राचीन विचार 'वसुधैव कुटुंबकम' की दृष्टि से सोचती है। 'हील टोकियो' की संस्थापक नूपुर तिवारी 2003 से जापान में रह रही हैं। नूपुर ने जापानी कम्पनी मित्सुबिशी में एक वरिष्ठ कार्यकारी के रूप में कार्य करने के लिए जापान के शिकोकू शहर के लिए 2003 में कोलकता से उड़ान भरी और फिर धीरे-धीरे विश्व पटल पर छा गईं।

योग के जरिये भारतीय संस्कृति को पहचान दी

योग उनके हृदय में बचपन में बचपन से ही रचा बसा हुआ था। योग उनके परम्परागत परिवार के लिए एक सांस्कृतिक देन के सामान था। जापान की रोबोटिक जीवन शैली में जब उन्होंने लोगों में तनाव देखा तो उन्होंने योग को लोगों के समक्ष एक समाधान के रूप में रखा। दरअसल नूपुर को जापान में रहते हुए एक और बात नागवार गुजर रही थी। उन्हें महसूस हुआ कि बौद्ध धर्म एवं अन्य सांस्कृतिक एकरूपताओं की वजह से जापान एवं भारत की संस्कृति में काफी समानताएं हैं। फिर भी जापान में लोग भारत को जानते तक नहीं हैं। तभी नूपुर ने ठान लिया कि मैं यहां योग के माध्यम से जापानी लोगों का भारतीय संस्कृति से परिचय करवाऊंगी।

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उन्होंने स्वेच्छा से बिना किसी लाभ की शर्त पर लोगों एवं विभिन्न संस्थानों के साथ योग शिविर शुरू किए। वे कुछ स्कूलों में अंग्रेजी एवं अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध की कक्षाएं लिया करती थीं। उन्होंने इन स्कूलों में स्वैच्छिक योग शिविर भी प्रारम्भ कर दिए। धीरे-धीरे वहां के लोग योग को अपनाने लगे और अधिक से अधिक लोग इस माध्यम से नूपुर से जुडऩे लगे। उन्होंने योग को लोगों के समक्ष मानव जीवन की समस्यायों के समाधान के रूप में रखा। दरअसल आज नूपुर की जापान में पहचान ऐसी भारतीय महिला की बन गयी है कि उन्हें कई बार अनऑफिशियल ब्रांड एम्बेसडर ऑफ इंडिया भी कहा जाने लगा है।

समाजसेवा से सीधा जुड़ाव

नूपुर योग और शिक्षा के माध्यम से जापान में लोगों का जीवन रूपांतरित कर रही थीं, लेकिन 2015 में कुमामोटो भूकंप ने उनके जीवन को समाज सेवा से सीधे जोड़ दिया। इस भूकंप ने क्यूशू में एक बड़े क्षेत्र को तबाह कर दिया। नूपुर बताती हैं कि इस प्राकृतिक आपदा को देखकर मैं हैरान रह गई। मैं सोच रही थी कि मैं इन लोगों की कैसे मदद कर सकती हूं, जिन्होंने मुझ जैसे अजनबी को इतना प्यार दिया है। यहां रहने वाले लोगों का सबकुछ बर्बाद हो चुका था। लोगों के बीच तनाव इतना बढ़ चुका था कि वे आत्महत्या करने तक को सोचने लगे थे।

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भूकंप से बेहाल लोगों की जिंदगी बदल दी

पैसे से उनकी तात्कालिक सहायता के अलावा भी मैं कुछ करना चाहती थी। मैंने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाना चाहिए जिससे इन लोगों के बर्बाद हो चुके जीवन को एक बार फिर संवारा जा सके। मैंने कुमामोटो में चैरिटी योग शिविर शुरू किए जिससे भूकंप में अपना सबकुछ खो चुके बेहाल लोगों के जीवन को बदला जा सके। योग, ध्यान, आत्मचिकित्सा अभ्यासों के माध्यम से मैंने उन्हें नए सिरे से जीवन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही साथ मैंने स्वैच्छिक दान कार्यक्रम भी चलाए जिससे होने वाली आय से बर्बाद हो चुके लोगों के घरों के पुनर्निर्माण को धन मुहैया कराया गया। नूपुर के इन कार्यक्रमों ने कुमामोटो के क्यूशू क्षेत्र को संभलने में काफी मदद की।

संयुक्त राष्ट्र संघ से मिली मान्यता

संयुक्त राष्ट्र संघ ने नूपुर तिवारी के इन प्रयासों को काफी सराहा और उन्हें मान्यता भी मिली। आगे चलकर श्रीलंका एवं अफ्रीका के कई हिस्सों को जब प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा तब संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें वहां भी योग और उपचार अभियान आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार योग से हुई एक शुरुआत ने देश और दुनिया को दुरुस्त और तंदुरुस्त रखने के लिए नूपुर के समक्ष कई और आयाम खोल दिए। अब वह एक शिक्षक एवं योग प्रशिक्षक के अतिरिक्त एक वैश्विक स्तर की समाजसेवी के रूप में भी स्थापित हो चुकी थीं। लोगों को प्रेरित करने के लिए मोटिवेशनल स्पीचेस के लिए भी उन्हें आमंत्रित किया जाने लगा। अब उन्हें विश्व पटल पर एक टीचर, मोटिवेशनल स्पीकर, मेंटल हेल्थ कौंसिलर एवं समाजसेवी के रूप जाना जाने लगा।

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हील टोकयो की स्थापना

अभी तक नूपुर अपने सभी सामाजिक कार्य व्यक्तिगत सत्ता या इकाई के रूप में ही कर रही थीं, लेकिन काम का दायरा फैलने के बाद उन्होंने इसे व्यवस्थित रूप देना आवश्यक समझा और यहीं से नींव पड़ी हील टोकयो की। 2017 में उन्होंने हील टोकयो की स्थापना की। हील टोकयो को नूपुर ने योग, सकारात्मक उपचार की सीमाओं के भीतर नहीं बांधा है। वो कहती हैं कि जब मैं खुद सीमाओं में बंधकर नहीं रह सकती तो मेरी संस्था भला कैसे ऐसा कर सकती है। हम हील टोकयो के माध्यम जितना कुछ इस वसुधैव कुटुंबकम के लिए कर सकते हैं, करेंगे। हम जल्द ही टोकयो में वल्र्ड पीस पर एक इवेंट आयोजित कर रहे हैं।

भारत की ओर बढ़ते कदम

नूपुर का कहना है कि हील टोकयो के लिए काम करते हुए और उसके पहले भी मुझे कई बार ऐसा लगता था कि मेरी मातृभूमि मुझे पुकार रही है और यह पुकार मुझे बार-बार अपने देश के लिए भी अधिक से अधिक काम करने के लिए प्रेरित करती थी। मैं यहां के वंचित, निराश्रित बच्चों की शिक्षा के लिए अधिकतम सुविधाएं मुहैया करना चाहती हूं।

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2017 से उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिया। वे यहां के कई राज्यों में स्कूलों के लिए कॉपी, किताबें एवं अन्य स्टेशनरी मुहैया कराने लगीं। आपदाओं के दौरान मुंबई और ओडिशा में उन्होंने काम किया। उन्होंने ओडिशा में फेनी चक्रवात के दौरान एक ही दिन में योग इवेंट से 60000 रुपये इकट्ठे किये और मुख्यमंत्री सहायता कोष में दान दे दिए। मुंबई में 2017 में उन्होंने बाढ़ राहत के लिए काम किया। बंगाल के कई स्कूलों को भी बहुत सी सुविधायें मुहैया करवाईं। गुरुग्राम में पिछले वर्ष नए साल पर निराश्रितों को कम्बल बांटे और अन्य सुविधाएं भी मुहैया कराईं।

अलीगढ़ में वंचितों के लिए स्कूल

नूपुर बताती हैं कि पिछले दिनों मुझे एक परिचित के माध्यम से पता चला कि उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक महिला झुग्गियों के बीच निराश्रित बच्चों को पढ़ा रही है। वह स्वेच्छा से उन बच्चों के लिए मेहनत तो कर रही है, लेकिन उसके पास संसाधनों का अभाव है। मैं अलीगढ़ गई और जाकर देखा कि वहां क्या चल रहा है। अब हील टोकयो ने इस स्कूल को गोद ले लिया है, हील टोकयो के फंड से इस स्कूल को पूरी तरह से पुनर्निर्मित किया गया है। अलीगढ़ के इस स्कूल में आज झुग्गियों के 110 बच्चे उपयुक्त शिक्षा पा रहे हैं।

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इस स्कूल में अब दो अतिरिक्त कमरे हैं, दीवारों पर जीवंत रंग रोगन और पेंट है। आधुनिक डिजिटल कक्षाएं भी अब इन वंचितों के लिए उपलब्ध हैं। हील टोकयो के माध्यम से ही छात्रों को सभी किताबें, स्टेशनरी, ड्रेस और उचित भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। योग और ध्यान को भी पाठ्यक्रम से जोड़ा गया है। नूपुर बताती हैं कि अलीगढ़ के इस स्कूल का अनुभव अभूतपूर्व रहा। जब मैं वहां उन बच्चों के बीच खड़ी थी तो मुझे एक अलग तरह का गर्व महसूस हो रहा था। इस सपने के साथ कि ये बच्चे भी किसी दिन अपनी आने वाली पीढिय़ों को प्रेरित करेंगे।

वंचितों के सशक्तिकरण के लिए प्रयासरत

कोलकता के साल्ट लेक क्षेत्र में भी हील टोकयो वंचितों के लिए एक स्कूल लेकर आ रहा है। बंगाल की ग्रामीण महिलाओं के लिए एक सशक्तिकरण कार्यक्रम की योजना पर भी काम चल रहा है। नूपुर बताती हैं कि बंगाल की ये योजनाएं मेरी मां के नाम समर्पित हैं जिन्हें हमने हाल ही में खो दिया है। नूपुर के मुताबिक मैं केवल सकारात्मकता के पोषण में विश्वास रखती हूं। मैं सभी विश्ववासियों को सामान रूप से स्थापित देखना चाहती हूं। मेरा मानना है कि अगर मैं अपने जैसी सौ नूपुरों को प्रेरित कर सकूं तो वे कल और एक हजार को प्रेरित कर सकती हैं, जिससे सम्पूर्ण विश्व में खुशी और सकारात्मकता की एक लहर सी फैल सकती है।

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