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वरदान था सूर्यग्रहण: अर्जुन की ऐसे बचाई थी जान, फिर पूरी की थी ये प्रतिज्ञा

इस साल का पहला और आखिरी सूर्यग्रहण रविवार को लगा। इसके बाद अगला सूर्यग्रहण 25 अक्टूबर 2022 को भारत में दिखेगा।

Roshni Khan
Published on: 21 Jun 2020 11:36 AM IST
वरदान था सूर्यग्रहण: अर्जुन की ऐसे बचाई थी जान, फिर पूरी की थी ये प्रतिज्ञा
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नई दिल्ली: इस साल का पहला और आखिरी सूर्यग्रहण रविवार को लगा। इसके बाद अगला सूर्यग्रहण 25 अक्टूबर 2022 को भारत में दिखेगा। सूर्यग्रहण के दौरान उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में चंद्रमा ने सूर्य को 98.6 फीसदी तक ढक दिया जिससे सूर्य कंगन के आकार में दिखा। ज्योतिष ग्रंथों में इसे कंकणाकृति सूर्यग्रहण कहा गया है। भारत के प्राचीन ग्रंथों में भी सूर्यग्रहण का जिक्र मिलता है और सूर्यग्रहण से कई पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं। महाभारत में भी सूर्यग्रहण से जुड़ी एक कहानी मिलती है। इससे पता चलता है कि सूर्यग्रहण के कारण ही धनुर्धर अर्जुन के प्राण बचे थे।

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अभिमन्यु को सातवें चरण में घेर कर मारा

महाभारत की इस कहानी के अनुसार अभिमन्यु गजब का योद्धा था और उसे चक्रव्यूह भेदने की कला आती थी। चक्रव्यूह के छह चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जब आखिरी सातवें चरण में पहुंचा तो उसे दुर्योधन व जयद्रथ आदि सात महारथियों ने घेर लिया। कौरव पक्ष के इन योद्धाओं ने मिलकर अभिमन्यु के रथ के घोड़ों को मार दिया। इसके बाद अभिमन्यु ने अपने रथ के पहिए को रक्षा कवच बनाया और दाएं हाथ से तलवारबाजी में जुटा रहा मगर यह बचाव ज्यादा देर तक नहीं चल सका। कौरव पक्ष के महारथियों ने अभिमन्यु की तलवार तोड़ने के साथ ही उसके रथ का पहिया भी चकनाचूर कर दिया।

युद्ध के मैदान में अभिमन्यु पूरी तरह निहत्था हो गया था। युद्ध के नियमों के मुताबिक अभिमन्यु पर वार नहीं किया जाना चाहिए था मगर पीछे से जयद्रथ ने अभिमन्यु पर तलवार से जोरदार हमला किया। अभिमन्यु के शरीर से रक्त की धारा बह निकली। इसके बाद कौरव पक्ष के सात महारथियों ने उस पर तलवार से अनेक वार किए जिससे अभिमन्यु रण क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गया।

खबर मिलते ही अर्जुन ने की प्रतिज्ञा

अभिमन्यु को इस तरह मारे जाने की खबर मिलने के बाद अर्जुन के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने अगले दिन सूर्य के ढलने तक जयद्रथ का वध न कर पाने पर आत्मदाह की प्रतिज्ञा कर ली। अर्जुन की प्रतिज्ञा की खबर सुनकर जयद्रथ भयभीत हो गया और वह अगले दिन युद्ध क्षेत्र में जाने को तैयार नहीं था। दुर्योधन और कौरव पक्ष के अन्य योद्धाओं ने उसे समझाया कि पूरी सेना तुम्हें चारों ओर से घेर कर खड़ी रहेगी और अर्जुन को तुम तक पहुंचने ही नहीं देगी। इस बात को सुनने के बाद जयद्रथ किसी तरह युद्ध के मैदान में जाने को तैयार हुआ और दूसरे दिन फिर युद्ध शुरू हो गया।

कौरव सेना ने कर रखी थी जयद्रथ की घेरेबंदी

युद्ध के मैदान में जयद्रथ के आते ही अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से रथ को जयद्रथ की ओर ले चलने का अनुरोध किया। अर्जुन का रथ जयद्रथ की ओर चल तो जरूर पड़ा, लेकिन कौरव सेना अर्जुन को जयद्रथ तक नहीं पहुंचने दे रही थी। भगवान सूर्य अपनी गति से अस्ताचल की ओर बढ़ रहे थे जिससे अर्जुन की चिंता भी बढ़ती जा रही थी।

श्रीकृष्ण ने अपनी माया से पैदा किया भ्रम

ऐसी विकट स्थिति के बीच भगवान श्रीकृष्ण को यह बात समझ में आ गई कि जयद्रथ का वध ऐसे असंभव है। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को ढक दिया जिससे सूर्यग्रहण जैसा भ्रम पैदा हो गया। कौरव सेना यह जानकर झूम उठी कि सूर्यास्त हो गया है और अब अर्जुन को आत्मदाह करना पड़ेगा और महाभारत युद्ध में कौरव पक्ष की जीत सुनिश्चित हो जाएगी।

सूर्य के फिर चमकने पर अर्जुन ने गांडीव उठाया

सूर्य के छिप जाने के बाद धनुर्धर अर्जुन अपना गांडीव धनुष रखकर आत्मदाह करने के लिए आगे बढ़े। युद्ध के मैदान में जयद्रथ ने भी अर्जुन को उनकी प्रतिज्ञा की याद दिलाई और आत्मदाह करने के लिए कहा। इसी बीच भगवान श्रीकृष्ण ने सूर्य से बादलों का आवरण हटा दिया। सूर्य के फिर चमकने से जयद्रथ सहित पूरी कौरव सेना ने एक बार फिर घबराहट फैल गई। जयद्रथ भागने की कोशिश करने लगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अब देर करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने अर्जुन से तुरंत अपना गांडीव उठाने और प्रतिज्ञा पूरी करने को कहा। अर्जुन ने तुरंत अपना गांडीव उठा लिया।

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फिर इस तरह मारा गया जयद्रथ

अर्जुन के गांडीव उठाते ही श्रीकृष्ण ने उन्हें याद दिलाया कि जयद्रथ को अपने पिता से वरदान प्राप्त है कि उसका सिर भूमि पर गिराने वाले के सिर में धमाका हो जाएगा और उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। उन्होंने अर्जुन से ऐसे बाण चलाने को कहा जिससे जयद्रथ का सिर सौ योजन दूर तपस्या कर रहे उसके पिता की गोद में जाकर गिरे।

अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने के मुताबिक ऐसा ही दिव्य बाण चलाया और जयद्रथ का सिर धड़ से कटकर सौ योजन दूर तपस्या कर रहे उसके पिता की गोद में जाकर गिरा। पिता की गोद से जयद्रथ के सिर के भूमि पर गिरते ही दोनों के सिर में धमाका हुआ और इस तरह जयद्रथ का अंत हुआ और अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने में कामयाब हुए।

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