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किसान: जिन्होंने कोरोना काल में अपने हौसलों से लिखी कामयाबी की नई इबारत

कृष्णा एवं संकरी कुंटिया आज एक सफल किसान के रुप में अपनी पहचान तो बना चुके हैं, लेकिन वे अभी लंबा सफर तय करना चाहते हैं। कल तक ऑटो चलाकर जीवन बसर करने वाले कृष्णा अब दूसरों को भी ड्रिप खेती के फायदे सिखाते हैं।

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Published on: 31 Dec 2020 4:07 AM GMT
किसान: जिन्होंने कोरोना काल में अपने हौसलों से लिखी कामयाबी की नई इबारत
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कोरोनाकाल में जहां किसानों की फसल को अच्छे दाम नहीं मिल पाए। वहीं सोयाबीन की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई। जिससे किसानों की आर्थिक हालत खस्ता हो गई।

लखनऊ: अगर किसी काम को दिल से करने का जज्बा हो तो हालात और बाधाएं कुछ कर गुजरने के जुनून के आगे घुटने टेक देते हैं। कोरोना काल में क्या आम और क्या ख़ास। सभी के जीवन पर कोरोना महामारी का व्यापक असर पड़ा है।

लॉकडाउन की वजह से कई लोगों की जॉब छूट गई और कुछ लोगों ने तनाव में सुसाइड तक कर लिया। लेकिन इस बुरे दौरे में बड़ी तादाद ऐसी लोगों की भी रही।

जिन्होंने इस मुश्किल घड़ी में भी हार नहीं मानी। आज हम आपको कुछ ऐसे किसानों के बारें में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कोरोना काल में अपने हौसलों से कामयाबी की नई इबारत लिखी है।

Farmer किसान (फोटो:सोशल मीडिया)

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पपीते की खेती से बन गए लखपति

गोविंद कॉग मध्य प्रदेश के बड़वानी जिला मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम लोनसरा के रहने वाले हैं। गोविंद ने कोरोना महामारी की पूर्णबंदी के दौरान पपीते की खेती से मोटा मुनाफा कमाया है और लखपति बन गए हैं।

गोविन्द काग एक प्रगतिशील कृषक हैं। वे पिछले आठ वर्षों से टमाटर, करेला, खीरा जैसी सब्जियों की खेती कर रहे थे। कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन लगा तो इस अवधि में गोविन्द कॉग ने कृषि विज्ञान केंद्र से मार्गदर्शन प्राप्त कर फलों के अंतर्गत पपीता की खेती करने का विचार किया।

केंद्र से तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त कर पपीता की उन्नत किस्म ताईवान-786 का रोपण किया। ड्रिप सिंचाई पद्धति से पपीते के पौधों को लगाया।

पौधों को संतुलित मात्रा में पोषक तत्व दिए तथा इन पौधों से नवंबर माह में फल प्राप्त होने लगे। इस प्रकार चार हजार पौधों को चार एकड़ क्षेत्रफल में लगाया गया था।

उनके उचित प्रबंधन हेतु कृषि विज्ञान केंद्र बड़वानी के वैज्ञानिकों से समय-समय पर तकनीकी सलाह ली। गोविंद कॉग ने बताया कि उन्हें पपीते का कुल उत्पादन 1650 क्विंटल प्राप्त हुआ। इससे उन्हें कुल 10 लाख 73 हजार रुपये की आमदनी हुई।

वहीं उन्होंने फसल उपज पर कुल चार लाख रुपये खर्च किए। कुल मिलाकर उन्हें पपीते की खेती से छह लाख 30 हजार की शुद्ध आय प्राप्त हुई।

Farmer किसान: जिन्होंने अपने बुलंद हौसलों से कोरोना काल में लिखी कामयाबी की नई इबारत(फोटो:सोशल मीडिया)

लॉकडाउन में बना दिया तालाब, अब सलाना कर रहे लाखों की कमाई

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित चिरची गांव के एक किसान दंपत्ति कृष्णा सिंह कुंटिया एवं उनकी पत्नी संकरी कुंटिया ने देश में चले लॉकडाउन के बीच सिंचाई की जरूरत को पूरा करने के लिए डोभा बनाने का निर्णय किया और पति-पत्नी ने मिलकर अपने बुलंद हौसले के बूते इस काम में सफलता पाई।

लगातार पानी की कमी से जूझ रहे इस किसान दम्पत्ति ने लॉकडाउन के दौरान पथरीली जमीन को खोदकर डोभा (छोटा तालाब) बना लिया।

जहां एक ओर दर्जनों मजदूर मिलकर एक डोभा का निर्माण एक माह में करते थे, वहीं यह काम इन दो लोगों ने करीब 45 दिन में पूरा कर लिया। डोभा बनाना इतना भी आसान नहीं था क्योंकि जिस जमीन पर इन्होंने डोभा का निर्माण किया है वह बेहद पथरीली है।

खुदाई के दौरान कई बड़े-बड़े ऐसे पत्थर मिले, जिनको काटकर डोभा बनाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सा लगता था। इन पत्थरों को तोड़ते हुए दोनों घायल भी हुए, लेकिन इन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी।

खेती के लिए अपनी लगन एवं मेहनत को जुनून बनाकर करीब डेढ़ महीने तक दिन रात मेहनत करने के बाद आज उनके चेहरे पर सफलता की मुस्कुराहट देखी जा सकती है।

Farmer किसान: जिन्होंने कोरोना काल में अपने बुलंद हौसलों से लिखी कामयाबी की नई इबारत(फोटो: सोशल मीडिया)

ऑटो चलाना छोड़कर शुरू की खेती

तांतनगर के सखी मंडलों को खेती की तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध कराने वाली आजीविका मिशन की फील्ड थिमेटिक कोर्डिनेटर सुजाता बेक बताती हैं, “कृष्णा कुंटिया पहले ऑटो चलाते थे लेकिन अब माइक्रो ड्रिप सिंचाई की सुविधा मिलने के बाद वह खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं।

कृष्णा लॉकडाउन में डोभा बनाकर किसानों के लिए एक प्रेरणा भी बन चुके हैं। वह आजीविका कृषक मित्र के रुप में काम करके ग्रामीणों को जैविक खेती एवं खेती करने के बारे में प्रशिक्षण भी देते हैं और मदद भी करते हैं।

सब्जी की खेती से हर साल हो रही है एक लाख रूपये से अधिक की इनकम

कृष्णा कुंटिया अपनी आगे की रणनीति बताते हैं, “अब खेती में सिंचाई की बाधा दूर हो जाएगी और हम एक मौसम में हर फसल से करीब 30 से 35 हजार रुपये तक कमा सकेंगे।

पहली बारिश के बाद हमारे डोभे में करीब 5 फीट पानी जमा हो गया है. ड्रिप इरिगेशन के जरिए हमारी फसलें अब लहलाएंगी। वर्तमान में मैं 25 डिसमिल मॉडल में ड्रिप खेती कर रहा हूँ, जिसके लिए मुझे सरकार के झारखंड हॉर्टिकल्चर माइक्रो ड्रिप इरिगेशन परियोजना से मदद भी मिली है।”

कृष्णा एवं संकरी कुंटिया आज एक सफल किसान के रुप में अपनी पहचान तो बना चुके हैं, लेकिन वे अभी लंबा सफर तय करना चाहते हैं। कल तक ऑटो चलाकर जीवन बसर करने वाले कृष्णा अब दूसरों को भी ड्रिप खेती के फायदे सिखाते हैं।

लॉकडाउन के विपरीत हालात में इस किसान दंपत्ति के साहसिक निर्णय एवं कार्य ने आज खेती के क्षेत्र में सफल होने के रास्ते खोल दिए हैं।

कोरोना संकट में ये महिलाएं तुलसी की खेती करके कमा रहीं अच्छा मुनाफा

कोरोनाकाल में जहां किसानों की फसल को अच्छे दाम नहीं मिल पाए। वहीं सोयाबीन की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई। जिससे किसानों की आर्थिक हालत खस्ता हो गई।

लेकिन मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं ने आपदा के दौर में तुलसी की खेती करके अच्छी कमाई की है. समूह से जुड़ी महिलाएं इस औषधीय खेती करके के कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा रही है।

Tulasi किसान: जिन्होंने अपने बुलंद हौसलों से कोरोना काल में लिखी कामयाबी की नई इबारत (फोटो:सोशल मीडिया)

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38 हजार रुपये प्रति एकड़ की कमाई

यह महिलायें प्रति एकड़ से लगभग 38 हजार रूपये का मुनाफा ले रही हैं। महिलाओं ने तुलसी की खेती के महज 90 दिन में प्रति एकड़ 38 हजार 500 रुपये की कमाई की।

वहीं अब ये महिलाएं एक और औषधि फसल अश्वगंधा बोने की तैयारी कर रही हैं। जिससे महिलाओं को एक एकड़ से 50 हजार रुपये तक मुनाफा होने के आसार है।

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के संचालक दिनेश बर्फा का कहना है कि समूह की महिलाओं आपदा को अवसर में तब्दील करके कमाई के अच्छे मौके ईजाद किये हैं।

जहां जिले के अन्य किसानों ने सोयाबीन की फसल उगाई वहीं इन महिलाओं ने तुलसी की खेती की. वहीं अब ये अश्वगंधा की उन्नत खेती की तैयारी कर रही हैं ।

पहले प्रशिक्षण लिया

समूह से जुड़ी इन महिलाओं ने तुलसी की खेती करने से पहले आईटीसी चौपाल सागर से इसका विधिवत प्रशिक्षण लिया। महिलाओं ने औषधीय पौधों की खेती कैसे करें, इससे अच्छी उपज कैसे लें और बाजार में कहां बेचे जैसे विषयों प्रशिक्षण में लिया।

इसके चलते महिलाओं को उन जगहों का भ्रमण कराया गया जहां पहले तुलसी की खेती हो रही है। जहां से महिलाओ ने तुलसी की खेती करने तौर तरीके जाने. बता दें कि पहले महिलाओं के इस तरह के समूह टूट जाया करते थे लेकिन अब एकजुट अपनी आजीविका चला रही है।

Tulasi किसान: जिन्होंने अपने बुलंद हौसलों से कोरोना काल में लिखी कामयाबी की नई इबारत (फोटो:सोशल मीडिया)

अनीता बाई बनी मिसाल

जिले के इछावर के रहने वाली समूह की दीदी अनीता बाई ने 2 एकड़ खेत में तुलसी की खेती की है। यह फसल 90 दिन की अवधि की होती है।

वहीं सूखा सहन करने में सक्षम होती है। एक एकड़ से तुलसी की 350 किलोग्राम की उपज प्राप्त होती है।

जिसमें लागत लगभग 10 हजार तक होती है।

वहीं तुलसी का बाजार मूल्य लगभग 110 रुपये प्रति किलोग्राम है. इस तरह एक एकड़ से 38500 रुपये की कमाई होती है। वहीं अश्वगंधा का बाजार मूल्य 200 रुपये किलो है। जिससे प्रति एकड़ 50 हजार रुपये तक का मुनाफा होता है।

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