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भारतीयों के शरीर में मिला माइक्रो RNA, कोरोना से लड़ने की देता है ताकत

इस सबके बीच भारतीयों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारतीयों के साथ यूनीक माइक्रो RNA मौजूद है और कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है।

SK Gautam
Published on: 28 March 2020 9:37 AM GMT
भारतीयों के शरीर में मिला माइक्रो RNA, कोरोना से लड़ने की देता है ताकत
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लखनऊ: कोरोना के कारण दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है कई देशों में लॉकडाउन चल रहा है। लोग अपने-अपने घरों में कैद हैं। इस सबके बीच भारतीयों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारतीयों के साथ यूनीक माइक्रो RNA मौजूद है और कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है। यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि राहत पहुंचाने वाला यह तथ्य वैज्ञानिकों के ताजा शोध में उजागर हुआ है।

यह आरएनए अन्य देशों के लोगों में नहीं पाया जाता

शोधकर्ताओं का दावा है कि भारतीयों में एक विशिष्ट और विरला माइक्रो आरएनए मौजूद है। यह वंशानुगत आरएनए (राइबो न्यूक्लिक एसिड) अन्य देशों के लोगों में नहीं पाया जाता है। इसमें कोरोना वायरस की तीव्रता को मंद करने की ताकत है। दिलचस्प बात यह कि मौजूदा कोरोना वायरस भी आरएनए वायरस है।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियिरंग एंड बायो टेक्नोलॉजी दिल्ली की टीम की ओर से कोरोना सार्स-टू पर यह शोध किया गया। इसमें डॉ. दिनेश गुप्ता के नेतृत्व में चार एक्सपर्ट ने पांच देशों के कोरोना मरीजों पर स्टडी की। 21 मार्च को ऑनलाइन जनरल में प्रकाशित रिसर्च पेपर संकट की इस घड़ी में भारतीयों के लिए उम्मीद जगा रहा है।

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केजीएमयू लखनऊ की माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने किया शोध

केजीएमयू लखनऊ की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. शीतल वर्मा के मुताबिक, टीम ने भारत, इटली, यूएसए, नेपाल व चीन के वुहान शहर के मरीजों पर केस स्टडी की। इसमें वुहान के दो मरीज की हिस्ट्री ली गई। सबकी जीन सीक्वेंसिंग की गई। इंटीग्रेटेड सीक्वेंसिंग बेस्ड जीनोम की पड़ताल में भारतीयों में एक माइक्रो आरएनएए (एचएसए-एमआइआर-27-बी) मिला। यह माइक्रो आरएनए अन्य देशों के मरीजों में नहीं मिला।

भारतीयों में मौजूद विशेष माइक्रो आरएनए

भारतीयों में कोरोना के सार्स-टू में एक म्यूटेशन भी देखा गया। इसमें वायरस की सतह पर एक विशेष प्रोटीन मिला। शोध में अनुमान लगाया गया कि भारतीयों में मौजूद विशेष माइक्रो आरएनए सार्स-टू को म्यूटेट कर देता है। इससे वायरस की क्षमता अन्य देशों की अपेक्षा यहां कम हो रही है।

केजीएमयू की डॉ. शीतल वर्मा ने बताया कि एचएसए-एमआइआर-27-बी नामक यह माइक्रो आरएनए अन्य देशों के मरीजों में नहीं मिला। इस शोध ने एक उम्मीद जगाई है। शोध को विस्तार दिया गया है। अब ऑनलाइन सभी देशों के मरीजों का डाटा जुटाया जा रहा है। डब्लूएचओ भी डाटा शेयर कर रहा है। लिहाजा, जल्द कुछ बड़ी उपलब्धि सामने होगी।

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क्या होता है आरएनए..

किसी भी जीवित प्राणी के शरीर में डीएनए की तरह राइबो न्यूलिक एसिड भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आरएनए शरीर में डीएनए के जीन्स को नकल कर के व्यापक तौर पर प्रवाहित करने का काम करता है। इसके साथ ही यह कोशिकाओं में अन्य आनुवांशिक सामग्री पहुंचाने में भी सहायक होता है।

जीन को सुचारू बनाना और उनकी प्रतियां तैयार करना, विभिन्न प्रकार के प्रोटीनों को जोड़ने का काम करना भी इसकी अहम जिम्मेदारी है। आरएनए का स्वरूप एक सहस्नाब्दी यानी एक हजार वर्षो में बहुत कम बदलता है। अतएव इसका प्रयोग विभिन्न प्राणियों के संयुक्त पूर्वजों की खोज करने में भी किया जाता है।

शोध को विस्तार

शोध में सिस्टमेटिक जीन लेवल म्यूटेशन एनॉलिसिस व बायो इंफॉरमेटिक टूल्स का प्रयोग किया गया। नतीजे देखकर कई एक्सपर्ट पर अब आगे अध्ययन की जरूरत बता रहे हैं। बता दें कि शोध को विस्तार दे दिया गया है।

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