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अतीत के झरोखे से झांकते स्‍तूप

स्‍तूप के ऊपरी भाग में हरिमिका से सम्‍बद्ध छत्र चक्रवर्ती बुद्ध को ही दर्शात है। स्‍तूप के अलंकण में भी बुद्ध की प्रतिमा उत्‍कीर्ण है, छत्र अवश्‍य दिखाई देता है। जो भगवान बुद्ध के चक्रवर्ती रूप को व्‍यक्‍त करता है।

SK Gautam
Published on: 19 Jan 2020 1:40 PM IST
अतीत के झरोखे से झांकते स्‍तूप
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दुर्गेश पार्थ सारथी

भारतीय वास्‍तुकला में स्‍तूप बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध स्‍मारक है, परंतु इसकी परंपरा वैदिककाल से ही चली आ रही है। इतिहासकार बताते हैं कि ऋग्‍वेद में हिरण्‍यस्‍तूप का उल्‍लेख मिलता है, जिससे विश्‍व की उत्‍पत्ति मानी गई है। सम्‍यक सम्‍बुद्ध की पूजा स्‍तूप के माध्‍यम से की जाती रही है। इसके द्वारा भगवान बुद्ध को चक्रवर्ती के रूप में अभिव्‍यक्‍त करते हैं तथा धर्मोपदेश एवं वर्षावास के समय एक योगी के स्‍वरूप में देखते हैं।

सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन

स्‍तूप के ऊपरी भाग में हरिमिका से सम्‍बद्ध छत्र चक्रवर्ती बुद्ध को ही दर्शात है। स्‍तूप के अलंकण में भी बुद्ध की प्रतिमा उत्‍कीर्ण है, छत्र अवश्‍य दिखाई देता है। जो भगवान बुद्ध के चक्रवर्ती रूप को व्‍यक्‍त करता है। कलिंग के युद्ध में हुए भीषण रक्‍तपात से अपाहिज हुए अंगहीन, पति विहीन, पुत्रहीन, पिता वहिीन लोगों की तीत्‍कार, सैनिकों के प्रयाण से नष्‍ट हुई फसलों के कारण अकाल का संताप झेलती हुई प्रजा की हाहाकार ने मौर्य सम्राट अशोक के क्रूर हृदय को इस कदर द्रवित कर दिया कि वह रक्‍तपात, सत्‍ता विस्‍तार की लोलुपता छोड़ कर बौद्ध धर्म अपनाकर सत्‍य अहिंसा का परचम उठाकर धर्म के पथ पर प्रचार-प्रसार हेतु निकल पड़ा।

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ऐतिहासिक साक्ष्‍य बताते हैं कि मौर्य सम्राट अशोके ने बौद्ध धर्म को चिरस्‍थायी रूप प्रदान करने के उद्देश्‍य से राजगृह, कुशीनगर सहित अन्‍य स्‍तूपों से तथागत के अवशेषों को निकालकर उन पर चौरासी हजार स्‍तूपों का निर्माण कराया था। स्‍तूपों के निर्माण का चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में उल्‍लेख किया है। कुशीनगर में स्थित बौद्ध मंदिर के पार्श्‍व में लखौरी ईंटो का बना एक स्‍तूप है, जिसे महापरिर्निवार्ण स्‍तूप कहते हैं।

स्‍तूप सारनाथ और नालंदा में ईंटों द्वारा निर्मित

बताया जाता है कि भगवान बुद्ध के शीरर को इसी स्‍थान पर सफेद कपड़े में लपेटकर लोगों के दर्शनार्थ रखा गया था। इस स्‍तूप की ऊंचाई 167 फीट है। ह्वेनसांग ने इस स्‍तूप को देखा था। अशोक द्वारा निर्मित हजारों स्‍तूपों में तक्षशिला और सारनाथ स्थित धर्मराजिका स्‍तूप विशेष रूप से उल्लिखित हैं। जिनके भग्‍नावषेष खुदाई के दौरान प्राप्‍त हुए हैं। ये स्‍तूप सारनाथ और नालंदा में ईंटों द्वारा निर्मित आज भी खड़े रूप में देखे जा सकते हैं।

ऐतिहासिक प्रमाण स्‍पष्‍ट करते हैं कि कुषाणवंशीय राजा कनिष्‍क ने अपने शासनकाल के 18वें वर्ष में कार्तिक मास की शुक्‍लपंचमी के दिन कुषाण वंश की समृद्धि की कामना से एक स्‍तूप बनवाया था। यह स्‍तू मनिक्‍याला के नाम से प्रसिद्ध जो रावल पिंडी (अब पाकिस्‍तान) से बीस मील की दूरी पर स्थित है। इस स्‍तूप की खुदाई से पुरातत्‍ववेत्‍ताओं को एक भस्‍म कलश मिला, जिसमें कई सिक्‍के तथा मोती एक सोने के पात्र में रखे गए थे। वह स्‍वर्ण पात्र तांबे के बरतन में रखा हुआ था, जिसे ढक्‍कन क्षरा बंद कर जीमन की सतह से 10 फीट की ऊंचाई पर स्‍तूप के मध्‍य में रखा गया था।

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स्‍तूप निर्माण शैली के बारे में डॉ: ब्रह्मानंद सिंह कहते हैं कि सारनाथ व कुशीनगर के अनगिनत पुरावशेषों, बौद्ध बिहारों के ध्‍वन्‍सावशेषों के मध्‍य अत्‍यंत शांत, निर्विकार आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता ठोस बेलनाकार पत्‍थर व ईंटों से बना स्‍तूप हो या किसी पिरामिड सा लगने वाले नालंदा या कुशी नगर के स्‍तूप हों। इनकी आकार-प्रकार या निर्माण शैली देश-काल के अनुरूप भिन्‍न-भिन्‍न अवश्‍य है, लेकन इनका लक्ष्‍य एक है साधना, आराधना ।

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