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पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल, आखिर क्या चाहते हैं नेता
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया है कि क्या केंद्र और राज्य 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे सकते हैं? तमाम राज्य इंदिरा साहनी केस में कोर्ट के फैसले को दरकिनार कर रहे है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब कार्यपालिका और विधायिका पंगु हो जाती है तब न्यायपालिका उम्मीद की किरण बनकर नजर आती है। आरक्षण को लेकर आज देश में जो हालात हो गए हैं उसमें देश की सर्वोच्च अदालत का यह सवाल मायने रखता है कि कितनी पीढ़ियों तक जारी रहेगा आरक्षण।
आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल
वास्तव में देश के संविधान निर्माताओं की मंशा आरक्षण को अनिश्चितकाल के लिए किसी को सौंपे जाने की नहीं थी। इसी वजह से शुरुआत में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को कुछ समय के लिए आरक्षण दिया गया। लेकिन बाद में वोट बैंक तैयार करने के लिए सबको मलाई बांटने के कार्यक्रम के तहत आरक्षण का दायरा बढ़ता चला गया।
क्या केंद्र और राज्य 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे सकते हैं
हालात इतने बिगड़े की हाल में सुप्रीम कोर्ट ने एक सवाल उठाया है कि क्या केंद्र और राज्य 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दे सकते हैं। जबकि इंदिरा साहनी केस के फैसले के मुताबिक असाधारण स्थितियों को छोड़कर आरक्षित सीटों की संख्या 50 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि तमाम राज्य ऐसे हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार कर दिया है।
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छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा 82 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था
राज्यों की ओर देखा जाए तो मौजूदा व्यवस्था में सबसे ज्यादा 82 फीसद आरक्षण छत्तीसगढ़ में है। हरियाणा में 70 फीसदी, तमिलनाडु में 69, झारखंड में 60 और राजस्थान में 54 फीसदी आरक्षण है। शीर्ष अदालत अब इंदिरा साहनी फैसले के 29 साल बाद इस फैसले को बड़ी पीठ के समक्ष भेजने पर विचार कर रही है। 1992 में इस फैसले को नौ जजों की पीठ ने दिया था।
इंदिरा साहनी फैसले की व्यवहारिकता खत्म
महत्वपूर्ण बात यह है कि 15 मार्च से इस पर रोजाना सुनवाई शुरू होने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि इंदिरा साहनी फैसला अब व्यवहारिक नहीं रह गया है। इसलिए उस फैसले को पुनर्विचार के लिए 11 न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया जाए। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की इन दलीलों के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि नौकरियों और शिक्षा में आखिर कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा।
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आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत
क्योंकि सुप्रीम कोर्ट 50 फीसदी अधिकतम आरक्षण की सीमा हटाने की स्थिति में परिणामी असमानता को लेकर चिंतित है। सुप्रीम कोर्ट इस बिन्दु पर भी विचार कर रहा है कि क्या इंदिरा साहनी फैसले में तय की गई आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत है।
पीठ यह जानना चाहती है कि संविधान संशोधनों और सामाजिक आर्थिक बदलावों के मद्देनजर इस मामले का फिर से परीक्षण किया जा सकता है या नहीं। दूसरे यह मामला केवल राज्य से संबंधित नहीं है इसलिए दूसरे राज्यों के विचार जानना भी आवश्यक हैं।
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पीठ के मुताबिक उसके निर्णय का व्यापक प्रभाव होगा। लेकिन 102 वां संविधान संशोधन राज्य की विधायिका को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों का निर्धारण करने वाले कानून को लागू करने से रोकता है। इसके अलवा 103 वें संविधान संशोधन के लिए केंद्र का पक्ष जानना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए दस फीसद आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
ताजा मामला मराठा आरक्षण का
अदालत के समक्ष इस संबंध में सबसे ताजा मामला मराठा आरक्षण का है। जिस पर अदालत ने अंतरिम रोक लगाई हुई है। वरिष्ठ अधिवक्ता वेणुगोपाल का मानना है कि अनुच्छेद 338 बी और 342 ए प्रत्येक राज्य की शक्ति को प्रभावित करते हैं। कोई भी राज्य 2018 के बाद किसी वर्ग को आरक्षण नहीं दे सकता है।
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वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी का भी कहना है कि सभी राज्यों को सुने बिना फैसला नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि फैसले से सभी राज्य प्रभावित होंगे। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल भी इसी मत के हैं कि केवल केंद्र और महाराष्ट्र को ध्यान में रखकर सुनवाई न की जाए।