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Article 370: 'जम्मू-कश्मीर के भारत में एकीकरण पर कोई विवाद नहीं, पर कई सवाल', SC में संविधान सभा पर बहस में बोले सिब्बल

SC Hearing on Article- 370 Abrogation: केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 तथा अनुच्छेद- 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को संविधान पीठ को भेजा गया था।

Aman Kumar Singh
Published on: 2 Aug 2023 6:11 PM IST (Updated on: 2 Aug 2023 6:29 PM IST)
Article 370: जम्मू-कश्मीर के भारत में एकीकरण पर कोई विवाद नहीं, पर कई सवाल, SC में संविधान सभा पर बहस में बोले सिब्बल
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सुप्रीम कोर्ट और कपिल सिब्बल (Social Media)

SC Hearing on Article- 370 Abrogation: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा (Special status to J&K) देने वाले संविधान के अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार (2 अगस्त) को सुनवाई शुरू की। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ (Constitution Bench) ने बुधवार से इस मामले पर हर दिन सुनवाई करेगी।

इस पीठ में सीजेआई के साथ जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul), जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjeev Khanna), जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gavai) और जस्टिस सूर्यकांत (Justice Suryakant) भी शामिल हैं।आज पहले दिन सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने शीर्ष अदालत के समक्ष कहा कि, 'जम्मू-कश्मीर का भारत में एकीकरण 'निर्विवाद' है, निर्विवाद था और हमेशा निर्विवाद ही रहेगा।'

सिब्बल ने कार्यवाही को बताया 'ऐतिहासिक'

आपको बता दें, कपिल सिब्बल, जो पूर्ववर्ती राज्य को दिए गए स्पेशल स्टेटस को छीनने से संबंधित 2019 के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाले अकबर लोन (Akbar Loan) की ओर से अदालत में पेश हो रहे हैं, ने कार्यवाही को 'ऐतिहासिक' बताया। पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख (Ladakh) में विभाजित करने वाले जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act, 2019) की वैधता पर सवाल उठाया है।

क्या संसद द्वारा अपनाई प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप थी?

सर्वोच्च न्यायालय के सीनियर लॉयर कपिल सिब्बल ने आगे कहा, 'यह कई मायनों में ऐतिहासिक क्षण है। अब जबकि शीर्ष अदालत इस बात का विश्लेषण करेगी कि, 6 अगस्त 2019 को इतिहास को क्यों बदला गया? क्या संसद द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया लोकतंत्र के अनुरूप थी? क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा को चुप कराया जा सकता है? उन्होंने कहा, ये ऐतिहासिक है क्योंकि इसमें 5 साल लग गए। पांच साल से वहां कोई सरकार नहीं है। सिब्बल ने कहा, जो आर्टिकल लोकतंत्र को बहाल करने के लिए था, उसका इस्तेमाल लोकतंत्र को 'अपवित्र' करने के लिए किया गया है, लेकिन क्या ऐसा किया जा सकता है?’

सिब्बल ने बताया सुनवाई क्यों ऐतिहासिक

कपिल सिब्बल ने संविधान पीठ (SC Constitution Bench) से कहा, 'क्या किसी राज्य के गवर्नर ने 28 जून, 2018 को यह पता लगाने की कोशिश किए बिना विधानसभा को निलंबित रखने का फैसला किया कि सरकार बन सकती है? क्या 2018 में विधानसभा का विघटन हो सकता था? उन्होंने कहा, 21 जून, 2018 को आर्टिकल- 356 का उपयोग करने से पहले इन मुद्दों को कभी नहीं उठाया गया या फैसला नहीं लिया गया। इसीलिए यह एक ऐतिहासिक सुनवाई है।'

'संसद नहीं कह सकती हम संविधान सभा हैं'

याचिकाकर्ता की तरफ से पेश कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा, 'आज भारत की संसद किसी प्रस्ताव के जरिये ये नहीं कह सकती कि 'हम संविधान सभा हैं'। सिब्बल कहते हैं, कानून की दृष्टि से भी वे ऐसा नहीं कर सकते। क्योंकि, वे अब संविधान के प्रावधानों के द्वारा संचालित हैं। सरकार को संविधान की मूल विशेषताओं का पालन करना चाहिए। वे आपातकालीन स्थिति, बाहरी आक्रमण को छोड़कर लोगों के मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) को निलंबित नहीं कर सकते। ये भी संविधान के प्रावधानों द्वारा तय है।'

गवर्नर और संसद ने एक सुबह ऐसा करने का फैसला लिया
सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखते हुए कपिल सिब्बल ने कहा, 'अनुच्छेद-370 को अचानक हटा दिया गया। अचानक पार्लियामेंट में केंद्र सरकार ने कहा कि हम ये कर रहे हैं। इस बात की जानकारी किसी को नहीं थी। ना ही कोई परामर्श लिया गया। उन्होंने कहा, राज्य के गवर्नर और संसद ने एक सुबह ऐसा करने का फैसला किया और आर्टिकल-370 को खारिज कर दिया गया। सिब्बल बोले, भारत सरकार और जम्मू- कश्मीर राज्य के बीच यह समझ थी कि हमारी एक संविधान सभा (Constituent Assembly) होगी जो भविष्य की कार्रवाई का निर्धारण करेगी। साथ ही, ये तय करेगी कि अनुच्छेद-370 को निरस्त किया जाना चाहिए या नहीं। वह निर्णय संविधान सभा का था।'
CJI के सवाल पर सिब्बल बोले- फिर तो कोई सवाल ही नहीं

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कपिल सिब्बल से पूछा कि, राज्य की संविधान सभा का कार्यकाल कितना रहा होगा? जवाब में सिब्बल ने कहा, '1951 से 1957 तक।' फिर CJI ने पूछा, 'तो इसलिए, 7 साल के खत्म होने के साथ, संविधान सभा की संस्था ही समाप्त हो गई तो फिर आगे प्रावधान का क्या होगा?' जवाब में सिब्बल ने कहा, '1951-57 के बीच संविधान सभा ये फैसला लेगी।' इस पर सीजेआई ने फिर पूछा, उसके बाद क्या होगा? तब सिब्बल ने कहा कि, इसके बाद तो कोई सवाल ही नहीं है।'
जब संविधान सभा समाप्त हो जाती है तो क्या होता है?

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा, 'जब संविधान सभा समाप्त हो जाती है तो क्या होता है? किसी भी संविधान सभा का जीवन अनिश्चित नहीं हो सकता। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा, 'बिल्कुल सही बात है। संविधान बनने के बाद संविधान सभा का कोई अस्तित्व नहीं रह सकता।' इसके बाद CJI ने पूछा, 'क्या राष्ट्रपति को ऐसा करने से पहले, संविधान सभा की सलाह की आवश्यकता होती है? क्या होता है जब संविधान सभा की भावना समाप्त हो जाती है? कपिल सिब्बल ने जवाब दिया, राष्ट्रपति ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं कर सकते।'
आगे भी जारी रहेगी सुनवाई

सुनवाई आगे भी जारी रहेगी। याचिकाकर्ताओं की पैरवी करने वाले एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा, वह गुरुवार तक अपनी दलीलें जारी रखेंगे। इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि, 'अदालत याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रमुख वकील को सभी पहलुओं पर दलील रखने की अनुमति देगी। बाकी वकील शेष पहलुओं पर दलीलें रख सकते हैं।'

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