Teachers' Day: भारत की वह पहली महिला शिक्षक, जिन्होंने मुश्किल दौर में भी नहीं मानी हार, महिलाओं को पढ़ाने को उठाए कदम

Teachers' Day 2023: जब भी समाज में शिक्षक की बात की जाए और सावित्रीबाई फुले का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। सावित्रीबाई फुले ने समाज में शिक्षा की राह को उजागर करते हुए स्वयं ही लोगों को पढ़ाना शुरू किया और वह भारत की पहली महिला शिक्षिका भी बनी। लेकिन इनके साथ एक और नाम भी शामिल किया जाता है और वह नाम है फातिमा शेख का।

Ashish Pandey
Published on: 5 Sep 2023 9:11 AM GMT
Teachers Day: भारत की वह पहली महिला शिक्षक, जिन्होंने मुश्किल दौर में भी नहीं मानी हार, महिलाओं को पढ़ाने को उठाए कदम
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Savitribai Phule (photo: social media )

Teachers' Day 2023: एक शिक्षक केवल शिक्षक ही नहीं होता है। वह शिष्य के लिए पथप्रदर्शक होता है, उसके भविष्य को संवारने से लेकर उसे अच्छे संस्कार से परिपूर्ण बनाता है। एक गुरु के बारे में यहां कबीर के दोहे से सहज ही समझा जा सकता है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।

बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय।।

कबीर के इस दोहे से तात्पर्य है कि गुरु और भगवान दोनों ही मेरे सम्मुख खड़े हैं, परन्तु गुरु ने ईश्वर को जानने का मार्ग दिखा दिया है। कहने का भाव यह है कि जब आपके समक्ष गुरु और ईश्वर दोनों विधमान हों तो पहले गुरु के चरणों में अपना शीश झुकाना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान के पास पहुँचने का ज्ञान प्रदान किया है।

यह कथन तो आप सभी ने पढ़ा ही होगा कि “लोगों की सबसे बेहतरीन पुस्तक उनका शिक्षक है।” शिक्षक केवल किताबी ज्ञान ही नहीं होता बल्कि हमें जीवन में एकता और हर अस्तित्व से पहचान कराने में हमारी सहायता करता है। जब भी समाज में शिक्षक की बात की जाए और सावित्रीबाई फुले का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। सावित्रीबाई फूले ने समाज में शिक्षा की राह को उजागर करते हुए स्वयं ही लोगों को पढ़ाना शुरू किया और वह भारत की पहली महिला शिक्षिका भी बनी। लेकिन इनके साथ एक और नाम भी शामिल किया जाता है और वह नाम है फातिमा शेख का। फातिमा शेख भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका थीं। इन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर काम किया व दलित और मुस्लिम महिलाओं, बच्चों को शिक्षित करने की शुरुआत की। यही नहीं इन्होंने 1848 में लड़कियों के लिए अपने देश में पहले स्कूल की स्थापना भी की थी।

फुले से ऐसी हुई थी मुलाकात-

फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके भाई का नाम उस्मान शेख था, जो ज्योतिबाबाई फुले के मित्र थे। निचली जातियों के लोगों को शिक्षित करने के कारण फातिमा शेख और उनके भाई दोनों को समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। जिसके बाद दोनों भाई-बहन सावित्रीबाई फुले से मिले। फातिमा शेख ने उनके साथ मिलकर दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

कई लोगों ने किया विरोध

फातिमा शेख ने अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में बकायदा टीचर्स ट्रेनिंग भी ली थी। इसके बाद वह और सावित्रीबाई दोनों लोगों के बीच जाकर महिलाओं बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती थीं। इस दौरान कई लोग उनका विरोध भी कर रहे थे, लेकिन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और मुश्किलों का सामना करते हुए दोनों ने इस अभियान को जारी रखा। 1856 में सावित्रीबाई जब बीमार पड़ गई तो वह कुछ दिन के लिए अपने पिता के घर चली गईं। उस समय अकेले फातिमा शेख ही सारा लेखा जोखा देखती थीं।

मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को लेकर उठाई थी आवाज-

जब उस समय हमारे पास संसाधनों की कमी थी तब फातिमा शेख ने मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को लेकर अपनी आवाज बुलंद की। हालांकि उस समय ये सब करना इतना आसान नहीं था लेकिन फातिमा शेख ने हिम्मत नहीं हारी और जो ठान लिया उसे कर दिखाया। वो घर-घर जाकर दलितों और मुस्लिम महिलाओं को स्वदेशी पुस्तकालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया करती थीं। इस दौरान उन्हें कई प्रभुत्वशाली वर्गों का भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन अपनी बात पर अड़ी फातिमा शेख ने कभी हार नहीं मानी। फातिमा शेख ने उस समय जो कर दिखाया वह उस परिवेश में कितना मुश्किल था इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन उनका दृढ़ निश्चय ही उन्हें आगे बढ़ने के लिए हौसला देता रहा और उन्होंने वह कर दिखाया जिसके कारण आज भी लोग उन्हें याद करते हैं।

Ashish Pandey

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